आम आदमी के संस्मरण ह सुरता के पथार
सुरता के पथार’ : भोजपुरी के पहिला आत्मकथा
जे फूल मतिन बने में फुलाइल आ बने में झर गइल
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भोजपुरी के नामी लेखक शारदानन्द प्रसाद के लिखल आत्मकथा ‘सुरता के पथार’ पढ़नी ह। आज़ादी के पहिले आ बाद क ज़माना आ भोजपुरिया गाँव-समाज के जीवन क एगो मुकम्मल तस्वीर आपन एही आत्मकथा में उहाँ के खींच दिहले बानीं। शारदानन्द बाबू भोजपुरी में ‘पुरइन’, ‘बाकिर’, ‘का कहीं’ लेखा आपन कविता-संग्रह आ ‘सुबहिता’ लेखा कहानी-संग्रह ख़ातिर त जनलें जान, उहाँ के भोजपुरिया समाज के खेलन प ‘खेल-खेलाड़ी आ ओकर बोल’ लेखा शोध से भरपूर कितबियो लिखले रहनीं।
शारदानन्द बाबू सुरता के पथार क सुरुआत आज़ादी के बीस बरिस पहिले 1925-30 के ज़माना के सीवान ज़िला से कइले बानीं। उहाँ के जिनगी के संघर्ष आ घोर निरासा के घरी उनकर जीवट के बानगी एही आत्मकथा में जगहे-जगह मिलेले। अभी माई के दूधो न छूटल रहे कि उहाँ के माई के निधन भईल, बाबूजी त पहिलहिं दुनिया छोड़ दिहले रहलें। अइसन बखत में मय नात-रिस्तेदार लोग मुंह फेर लिहलस त शारदानन्द बाबू के बुआ आ बहिन उहाँ के पालन-पोसन कईलें। जहाँ खाईला आ रहला के ठेकान ना होखे उहाँ पढ़ाई-लिखाई त बहुत दूर के कौड़ी रहे। एगो अध्याय के नामे बा ‘बनला के सार बहुत मिलेले बिगरला के बहनोई बने के केहु ना चाहेला।’ बाकिर उहाँ के पढ़ाई के लगन के आगे कुल्ही बाधा धीरे-धीरे होत गइलीं स आ उहाँ के प्राइमरी से हाईस्कूल आ फिर इंटर कॉलेज आ कॉलेज ले पहुँचली।
उहाँ के इ सगरी संघर्ष एही किताब में दर्ज़ बा। उहाँ के आपन जिनगी के संवारे वाला लोगन के बड़ा मन से एही किताब में इयाद कइले बानीं। उ चाहे उनकर बहिन आ बुआ होखें, सुशील भाई होखें चाहे उहाँ के स्कूल में पढ़ावे वाला मास्टर आ मौलवी लोग। आगे चलिके उहाँ के खुदे अध्यापक बनलीं आ पचरुखी में ‘साहित्यायन’ लेखा सांस्कृतिक संस्था बनावे आ हिंदी-भोजपुरी-संस्कृत साहित्य सम्मेलन के आयोजन में जोगदान कइलीं। उहाँ के इ आत्मकथा पढ़िके हमरा के बिहारे के एगो आउरी शिक्षक श्याम नारायण मिश्र के लिखल आत्मकथा ‘अध्यापकीय जीवन का गुणनफल’ के इयाद आइल।
आपन गाँव गौरी, बुआ के गाँव रामपुर, दरौली, पचरुखी क हवाल उहाँ के बिस्तार से एही किताब में लिखले बानीं। इहे ना खेंढ़ायँ लेखा नजीके के गाँव आ उहाँ के रामाजी लेखा भक्त संतन क हवाल भी उहाँ के दिहले बानीं, जे भगवान राम के दुलहा रूप में दरसन करत रहीं’। बियाह, बारात, भिखारी ठाकुर के नाच, गाँव के रामलीला, मैरवा के मेला के साथे ताजिया उठला के सजीव बरनन उहाँ के कइले बानीं। इहे ना निकरी झरही लेखा नदियो एही आत्मकथा के हिस्सा बाड़ीं स।
इतिहास के उ दौर आ आज़ादी के लड़ाई के झलकियो एही किताब में जगहे-जगह बा। सन बयालीस के भारत छोड़ो आंदोलन में शारदा बाबू खुदे शामिल रहलीं आ मैरवा रेलवे स्टेशन पे रेलवे लाइन उखाड़लो में उहाँ के भागीदार रहलीं।
मैरवा के हरिराम हाईस्कूल से पास होखला के बाद उहाँ के डीएवी इंटर कॉलेज (सीवान) में दाख़िला लिहलीं। जहाँ के प्रिंसिपल ओ घरी नामी इतिहासकार बी॰बी॰ मिश्रा रहलें, जे भारत के मध्यम वर्ग पे आपन ऐतिहासिक किताब लिखले बानीं। सन पचास में एकइस बरिस के उमिरे में शारदा बाबू मैरवा हाईस्कूल में अध्यापकी सुरु क दिहलीं। ओकरा बाद उहाँ के छपरा से पढ़ाई कइलीं आ फेर पचरुखी के गांधी स्मारक विद्या मंदिर में मास्टर भइलीं आ बिद्या के जोत जगावे के काम लगातार कइलीं। पढ़े आ गुने जोग आत्मकथा बा ‘सुरता के पथार’।
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