अमीन सयानी ने अपने आवाज से रेडियो को शिखर पर पहुंचा दिया,कैसे?

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देश में रेडियो प्रसारण के 100 साल पुरे होने पर अमीन सयानी का जाना दुखद रहा

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बीते करीब 70 बरसों से सबको मंत्रमुग्ध करने वाली अमीन सयानी की जादुई आवाज अब शांत हो गयी. अमीन सयानी अपनी मखमली आवाज और शानदार अंदाज की बदौलत खुद तो रेडियो के पहले स्टार बने ही, उस रेडियो को भी उन्होंने लोकप्रिय कर दिया, जो उन दिनों ज्यादा नहीं सुना जाता था. मेरा सौभाग्य रहा कि अमीन सयानी से मेरे बरसों संबंध रहे.

मैंने उनके कई बार इंटरव्यू भी किये. मुलाकातों के अलावा फोन पर भी उनसे और उनके पुत्र राजिल से बातचीत होती रहती थी. अभी गत 21 दिसंबर को उनके 91वें जन्मदिन पर मैंने उन्हें बधाई दी, तो सोचा नहीं था कि ठीक दो महीने बाद वह दुनिया को अलविदा कह देंगे. समस्याओं के बावजूद अमीन सयानी इन दिनों भी अपने काम को समर्पित रहते थे.

अपने सुपर हिट कार्यक्रम बिनाका गीत माला की यादों को लेकर ‘सारेगामा कारवां’ भी उन्होंने कुछ बरस पहले तैयार किया था. कोरोना के बाद उनका दफ्तर जाना छूट गया, पर घर पर वे काम करते रहते थे. इन दिनों वे एक बड़ा काम अपनी आत्मकथा लिखने का भी कर रहे थे. पिछले तीन-चार दिन से उनको सांस की तकलीफ कुछ ऐसी हुई कि उन्हें अस्पताल दाखिल कराना पड़ा, जहां 21 फरवरी को सुबह 10 बजे उन्होंने दम तोड़ दिया.

इसे संयोग कहें या कुछ और, जब देश में रेडियो प्रसारण के 100 साल हुए हैं, उन्होंने तभी इस दुनिया से रुखसत ली. अमीन सयानी का जन्म 21 दिसंबर 1932 को मुंबई में हुआ था. इनके भाई हामिद सयानी ऑल इंडिया रेडियो के अंग्रेजी ब्रॉडकास्टर थे. इनकी मां कुलसुम उन दिनों एक साहित्यिक पत्रिका ‘रहबर’ निकालती थीं. उस दौर के कई बड़े साहित्यकार इनके घर आते रहते थे. अमीन सयानी की जिंदगी पर तीन लोगों का प्रभाव सबसे ज्यादा रहा, जिनमें उनकी मां और भाई के अलावा महात्मा गांधी थे. मां और भाई को वे अपना गुरु मानते थे.

अमीन सयानी ने मुझे एक बार बताया था कि वे सिर्फ सात साल के थे, जब उनके भाई उन्हें चर्च गेट पर ऑल इंडिया रेडियो के ऑफिस ले गये थे. तभी से उन्हें रेडियो से प्यार हो गया. पहले उन्होंने ग्वालियर जाकर सिंधिया स्कूल में पढ़ाई की. फिर मुंबई लौटकर कॉलेज में दाखिला लिया. तभी उन्हें पता लगा कि रेडियो सीलोन हिंदी फिल्मी गीतों के प्रस्तावित कार्यक्रम के लिए एक एंकर की तलाश में है. वे इसके लिए एंकर को सिर्फ 25 रुपये प्रति कार्यक्रम दे रहे थे,

इसलिए कोई बड़ा नाम तैयार नहीं हुआ. ऐसे में अमीन को मौका मिल गया. साल 1952 में बिनाका गीत माला शुरू होते ही लोकप्रिय हो गया. कार्यक्रम को और दिलचस्प बनाने के लिए अमीन ने लोकप्रियता के हिसाब से गीतों को रैंकिंग देनी शुरू कर दी. रैंकिंग का यह पहला कार्यक्रम था. सयानी प्रति सप्ताह लोगों से बात कर, आसपास लोगों का रुझान देख और श्रोताओं के पत्रों के आधार पर तय करते थे कि कौन-सा गीत किस पायदान पर है. यह श्रोताओं को इतना पसंद आया कि प्रति सप्ताह 50-60 हजार पत्र आने लगे. इससे रेडियो सीलोन की लोकप्रियता भी कई देशों तक पहुंच गयी.

इधर उन दिनों ऑल इंडिया रेडियो पर फिल्म गीतों के प्रसारण पर पाबंदी थी. लेकिन रेडियो सीलोन की लोकप्रियता देख इस कार्यक्रम को विविध भारती पर शुरू कर दिया गया, जिससे विविध भारती के श्रोताओं में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी. अमीन सयानी ने तब अपने इस कार्यक्रम में फिल्मी सितारों के इंटरव्यू शुरू किये, तो वे सोने पर सुहागा साबित हुए. मुझे याद है कि वे उन दिनों मीना कुमारी, नर्गिस, रफी तथा लता मंगेशकर के इंटरव्यू करते थे, तो समा बंध जाता था. उनका सितारों से बात करने का अंदाज कुछ ऐसा था कि श्रोताओं को लगता था कि वे भी साथ बैठे हैं.

अमीन सयानी ने अपने कार्यक्रमों, आवाज और अंदाज से रेडियो को एक बड़ा शिखर दिया. कुछ और शानदार आवाजें भी तब रेडियो के लिए कार्यक्रम करती थीं, लेकिन अमीन सयानी का कोई सानी नहीं था. इसलिए रेडियो कार्यक्रम हों या जिंगल्स, सभी जगह सबसे ज्यादा मांग अमीन सयानी की ही रहती थी.

उस दौर में अमीन सयानी के ‘एस कुमार का फिल्मी मुकदमा’, ‘सैरिडिन के साथी’ और ‘सितारों की पसंद’ सहित कुछ और कार्यक्रम भी लोकप्रिय हुए. सयानी की एक बड़ी बात यह थी कि वे मुस्लिम होते हुए सभी धर्मों को मानते थे. उन्होंने कश्मीरी पंडित लड़की रमा से प्रेम विवाह किया. लेकिन शादी के बाद ना रमा का नाम बदला और ना धर्म. उनकी जिंदगी की बहुत-सी बातें उनकी आत्मकथा से भी सामने आयेंगी. उनका कार्यक्रम में बहनों और भाइयों कहने का मोहक अंदाज तो भुलाये नहीं भूलेगा.

 

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