सड़कों पर किसान आंदोलन क्यों हो रहा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने केंद्र सरकार के साथ एक अनिर्णायक बैठक के बाद अपना ‘चलो दिल्ली’ मार्च शुरू किया है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) की कानूनी गारंटी किसानों के विरोध प्रदर्शन का प्राथमिक कारण है। इसके अलावा, किसानों द्वारा स्वामीनाथन आयोग (2006) की अनुशंसाओं को लागू करने के साथ-साथ कृषि ऋण माफी की भी मांग की जा रही है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):

  • परिचय:
    • MSP किसानों की उपज के लिये सरकार की ओर से एक गारंटीशुदा कीमत है।
    • MSP भारत सरकार द्वारा कृषि उत्पादकों को कृषि कीमतों में किसी भी तेज़ गिरावट के विरुद्ध बीमा प्रदान करने के लिये बाज़ार हस्तक्षेप का एक रूप है।
    • भारत में MSP सरकार द्वारा निर्धारित एक मूल्य स्तर है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसानों को उनकी कृषि उपज के लिये न्यूनतम मूल्य प्राप्त हो सके, जिससे उनकी आय सुरक्षित रहे और कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिले।
  • MSP के अंतर्गत शामिल फसलें:
    • सरकार 22 निर्दिष्ट फसलों के लिये MSPs और गन्ने के लिये ‘उचित एवं लाभकारी मूल्य’ (Fair and Remunerative Prices- FRP) की घोषणा करती है। इन निर्दिष्ट फसलों में खरीफ मौसम की 14 फसलें, रबी की 6 फसलें और दो अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं।
    • फसलों की सूची इस प्रकार है:
      • अनाज (7): धान, गेहूँ, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी
      • दालें (5): चना, अरहर/तूर, मूंग, उड़द और मसूर
      • तिलहन (8): मूंगफली, रेपसीड/सरसों, तोरिया, सोयाबीन, सूरजमुखी के बीज, तिल, कुसुम बीज और नाइजरसीड
      • कच्चा कपास
      • कच्चा जूट
      • खोपरा
      • छिलका रहित नारियल
      • गन्ना (FRP)
      • VFC (Virginia flu-cured) तंबाकू
    • वर्तमान में, 23 फसलों के लिये MSP अधिसूचित किया जाता है, लेकिन खरीद गेहूँ और धान के लिये की जाती है, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आवश्यकताओं को पूरा करती है।

MSP की गणना:

  • सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs & Prices- CACP) द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर इसकी घोषणा करती है, जिसमें MSP निर्धारित करने के लिये तीन प्रमुख सूत्रों का विवरण दिया गया है:
    • A2: किसी विशेष फसल के उत्पादन में किसान की लागत। इसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक, पट्टे पर ली गई भूमि, किराये पर प्राप्त श्रम, मशीनरी और ईंधन पर व्यय जैसे कई इनपुट शामिल होते हैं।
    • A2+FL: किसान की लागत और पारिवारिक श्रम का मूल्य।
    • C2: एक व्यापक लागत, जिसमें A2+FL लागत के साथ स्वामित्व वाली भूमि के अनुमानित किराये का मूल्य तथा निश्चित पूंजी पर ब्याज, पट्टे पर ली गई भूमि के लिये भुगतान किया गया किराया शामिल है।
  • सरकार दावा करती है कि MSP अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर तय किया गया है, लेकिन वह इस लागत की गणना A2+FL के 1.5 गुना के रूप में करती है।

MSP पर कानून की मांग:

  • कृषि की वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करना:
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से यह गारंटी मिलती है कि किसानों को उनकी उपज के लिये न्यूनतम मूल्य मिलता रहेगा, बाज़ार के उतार-चढ़ाव से उनकी रक्षा होगी और उनके निवेश एवं श्रम पर उचित प्रतिफल सुनिश्चित होगा।
    • MSP कृषि उपज का न्यूनतम मूल्य है जो कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाए रखने के लिये आवश्यक है। यदि किसानों को यह भी नहीं मिला तो वे कर्ज में डूब जाएँगे।
  • किसानों पर कर्ज का बोझ कम करना:
    • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, किसी किसान परिवार पर औसत कर्ज का बोझ 1 लाख रुपए से अधिक है। यह स्थिति तब है जब केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को 3.36 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी प्रदान कर रही हैं।
    • किसानों पर कुल बकाया कर्ज 31 मार्च 2014 को 9.64 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2021-22 में 23.44 लाख करोड़ रुपए हो गया।
    • MSPs में न्यूनतम वृद्धि और घोषित MSPs प्राप्त नहीं होने के कारण किसानों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है।
    • यदि किसान को अपनी उपज वादे किये गए MSP से कम कीमत पर बेचनी पड़े तो फिर MSP किसानों के लिये अर्थहीन हो जाता है। इसलिये MSP की कानूनी गारंटी ज़रूरी है।
  • किसानों की आजीविका में सहायता:
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से लाखों किसानों की आजीविका को समर्थन देने में मदद मिलेगी, विशेषकर छोटे और हाशिये पर स्थित किसानों को, जो बाज़ार की अनिश्चितताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
    • देश की लगभग 50% आबादी की आजीविका कृषि और कृषि से संबंधित गतिविधियों पर निर्भर करती है।
  • जोखिम न्यूनीकरण:
    • किसी भी व्यवसाय को अत्यधिक गर्मी, बाढ़, आग, पाला, असामयिक वर्षा जैसे इतने सारे अप्रत्याशित कारकों एवं जोखिमों से नहीं जूझना पड़ता। किसान अपनी आय के बारे में अनिश्चित और आशंकित बने रहते हैं। MSP किसान को कर्ज और दिवालियापन से बचाता है। इसलिये, इसे कानूनी गारंटी प्रदान करने के रूप में सुरक्षित करने की आवश्यकता है।
    • प्राकृतिक आपदाएँ और बाज़ार की शक्तियाँ किसानों को नुकसान पहुँचा रही हैं। जलवायु परिवर्तन खेती की जटिलता को बढ़ा रहा है। किसान को मौसम और बाज़ार की शक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता।
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से एक सुरक्षा जाल प्राप्त होता है, जिससे प्रतिकूल बाज़ार स्थितियों के दौरान किसानों के लिये आय हानि का जोखिम कम हो जाता है।
  • बाज़ार की खामियों को संबोधित करना:
    • उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिये सस्ता अनाज उपलब्ध कराने का भार केवल किसानों पर नहीं डाला जा सकता। प्रायः यह स्थिति होती है कि जब किसान अपनी उपज कम कीमत पर बेच रहे होते हैं, तब भी उपभोक्ता उन्हें अत्यधिक दरों पर खरीद रहे होते हैं। यह स्थिति बिचौलियों के कारण बनती है, जिन्हें विनियमित करने की आवश्यकता है।
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से किसानों को प्रत्यक्ष रूप से गारंटीकृत मूल्य प्रदान कर इन समस्याओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • कृषि विकास को बढ़ावा:
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से किसानों को मूल्य स्थिरता और आय सुरक्षा प्रदान कर कृषि उत्पादन में निवेश के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। इससे कृषि विकास को बढ़ावा मिलेगा और देश की समग्र खाद्य सुरक्षा में योगदान होगा।
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से पर्यावरण-अनुकूल और संसाधन-कुशल फसलों के लिये मूल्य प्रोत्साहन प्रदान कर संवहनीय कृषि पद्धतियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • असमानताओं को हल करना:
    • शांता कुमार समिति ने वर्ष 2015 में निष्कर्ष दिया कि समर्थन मूल्य योजना से केवल 6% किसानों को लाभ प्राप्त हुआ।
    • अकेले वर्ष 2019-20 में ही गेहूँ की कुल खरीद में केवल तीन राज्यों– पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश की 85% हिस्सेदारी रही।
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से किसानों को प्रत्यक्ष रूप से एक सार्वभौमिक मूल्य की गारंटी प्रदान कर इन समस्याओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने पर केंद्रित किसान-केंद्रित नीतियाँ गरीबी उन्मूलनग्रामीण विकास और सामाजिक समावेशन में योगदान करती हैं।

MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने में मौजूद प्रमुख चुनौतियाँ:

  • वित्तीय बोझ:
    • MSP पर फसलों की खरीद के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है और ऐसे खरीद कार्यों को बनाए रखने से सरकारी वित्त पर दबाव पड़ सकता है।
    • MSP के लिये बजटीय आवंटन को बुनियादी ढाँचे के विकास, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और रक्षा व्यय जैसे अन्य आवश्यक व्यय के साथ संतुलित करना एक चुनौती है।
    • मांग और आपूर्ति पक्ष के कारकों द्वारा समर्थित नहीं होने पर इस तरह का कानूनी रूप से गारंटीकृत MSP उपयोगी सिद्ध नहीं होगा।
  • निवेश को हतोत्साहित करने वाला:
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करना कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को, विशेष रूप से MSP के तहत शामिल फसलों के मामले में, हतोत्साहित कर सकता है।
    • निजी हितधारक उन क्षेत्रों में निवेश करने में संकोच कर सकते हैं जहाँ मूल्य निर्धारण में सरकारी हस्तक्षेप हो, जिससे नवाचार और आधुनिकीकरण के प्रयास सीमित हो जाएँगे।
  • जल संकट का गहराना:
    • धान और गन्ना जैसी MSP समर्थित फसलें जल की अधिक खपत करती हैं, जिससे उन क्षेत्रों में जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है जहाँ उनकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से जल-गहन फसलों की खेती को बढ़ावा मिलने के रूप में जल की कमी की समस्या बढ़ सकती है, जिससे फसल पैटर्न और भी विकृत हो सकता है।
  • गैर-MSP फसलों की उपेक्षा:
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से गैर-MSP फसलों की उपेक्षा हो सकती है, जिससे पौष्टिक खाद्य फसलों, दालों और तिलहनों की खेती में कमी होगी।
    • इसका विशेष रूप से भेद्य आबादी के बीच खाद्य सुरक्षा, आहार विविधता और पोषण संबंधी परिणामों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी:
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से MSP-समर्थित फसलों के लिये उच्च खरीद मूल्य की स्थिति बन सकती है, जिससे वे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाएँगे।
    • घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप विशेष रूप से उच्च MSP दरों वाली फसलों के लिये निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो सकती है।
  • व्यापार विवाद:
    • MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से आयातक देशों के साथ व्यापार विवाद उत्पन्न हो सकता है, विशेष रूप से यदि सरकार MSP की कीमतों को बनाए रखने के लिये सब्सिडी या अन्य प्रकार का समर्थन प्रदान करती है।
    • इस तरह के विवादों के परिणामस्वरूप प्रतिशोधात्मक उपाय, टैरिफ या ट्रेड बैरियर्स जैसी स्थिति बन सकती है, जिससे निर्यात की मात्रा एवं बाज़ार पहुँच प्रभावित हो सकती है। कानूनी रूप से गारंटीकृत उच्च MSP के साथ भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा।

आगे की राह

  • संतुलित कृषि मूल्य निर्धारण नीति: MSP और प्रत्यक्ष आय सहायता योजनाओं जैसे तंत्रों के माध्यम से कृषि उपज के लिये लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिये सरकार को कृषि मूल्य निर्धारण नीति में एक उपयुक्त बदलाव लाना चाहिये।
    • स्वामीनाथन समिति की अनुशंसाओं को लागू करना: आयोग ने अनुशंसा की है कि MSP को उत्पादन की भारित औसत उत्पादन लागत (weighted average cost of Production) से कम से कम 50% अधिक होना चाहिये, जिसे वह C2 लागत के रूप में संदर्भित करता है।
    • MSP मानदंड का विस्तार: MSP निर्धारित करते समय किसान द्वारा अपने परिवार के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर किये गए औसत व्यय को भी शामिल किया जाना चाहिये।
    • मूल्य अंतराल भुगतान (Price Deficiency Payments- PDP): इसमें सरकार को किसी भी फसल की भौतिक रूप से खरीद या स्टॉकिंग नहीं करनी होती बल्कि किसानों को केवल बाज़ार मूल्य और MSP के बीच के अंतर का भुगतान करना होता है, यदि बाज़ार मूल्य MSP से कम हो। ऐसा भुगतान उनके द्वारा निजी व्यापारी को बेची गई फसल की मात्रा पर निर्भर होगा।
  • किसानों की आय बढ़ाना:
    • सरकार को न केवल कृषि गतिविधियों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) के दायरे में लाना चाहिये, बल्कि दैनिक मज़दूरी की वृद्धि भी करनी चाहिये।
    • फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किया जाए और उच्च-मूल्य एवं जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों को बढ़ावा दिया जाए।
    • पोस्ट-हार्वेस्ट हानियों को कम करने और किसानों के लिये मूल्य प्राप्ति में सुधार करने के लिये खेत से बाज़ार संपर्क, भंडारण सुविधाओं एवं बाज़ार सूचना प्रणाली सहित कृषि विपणन अवसंरचना को सुदृढ़ किया जाए।
  • कृषि अवसंरचना में निवेश:
    • कृषि उत्पादकता और बाज़ार पहुँच बढ़ाने के लिये सिंचाई सुविधाओं, सड़कों, विद्युतीकरण और भंडारण क्षमताओं जैसे ग्रामीण अवसंरचना क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए।
    • अनुसंधान एवं विकास, विस्तार सेवाओं और आधुनिक कृषि आदानों एवं प्रक्रियाओं तक पहुँच के माध्यम से कृषि में प्रौद्योगिकी के अंगीकरण तथा नवाचार को बढ़ावा दिया जाए।
    • उत्पादन जोखिमों को कम करने और बाज़ार के उतार-चढ़ाव के प्रति प्रत्यास्थता में सुधार करने के लिये छोटे किसानों को ऋण, बीमा एवं अन्य वित्तीय सेवाओं तक पहुँच की सुविधा प्रदान की जाए।
  • भूमि एवं जल प्रबंधन में सुधार करना:
    • प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, मृदा क्षरण को रोकने और जलवायु परिवर्तन के प्रति कृषि प्रत्यास्थता को बढ़ाने के लिये संवहनीय भूमि एवं जल प्रबंधन प्रक्रियाओं को क्रियान्वित किया जाए।
    • ड्रिप सिंचाईवर्षा जल संचयन और जल-दक्षता वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाकर कुशल जल उपयोग को बढ़ावा दिया जाए।
  • किसानों को सशक्त बनाना:
    • सामूहिक सौदेबाजी, बाज़ारों तक पहुँच और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भागीदारी को सक्षम करने के लिये किसान संगठनों, सहकारी समितियों और उत्पादक समूहों को सुदृढ़ किया जाए।
  • सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना:
    • फसल की विफलता, प्राकृतिक आपदाओं या बाज़ार के असंतुलन जैसे संकट के दौरान कमज़ोर कृषक परिवारों को आय एवं आजीविका सहायता प्रदान करने के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल एवं बीमा योजनाओं का विस्तार किया जाए।
  • शासन में सुधार:
    • कृषि विकास और किसान कल्याण में बाधक बनने वाली नौकरशाही बाधाओं, भ्रष्टाचार एवं बाज़ार विकृतियों को कम करने के लिये शासन एवं नियामक ढाँचे में सुधार किया जाए।

निष्कर्ष:

भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिये भारत में किसानों की आवश्यकता को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है। कृषि में निवेश करने और किसानों का कल्याण सुनिश्चित करने के माध्यम से भारत अपने सभी नागरिकों के लिये अधिक प्रत्यास्थी एवं समृद्ध भविष्य का निर्माण कर सकता है।

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