भाषाई सर्वेक्षण का महत्त्व क्या है?

भाषाई सर्वेक्षण का महत्त्व क्या है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संपूर्ण भारत में एक भाषाई सर्वेक्षण की योजना बना रहा है। इसका उद्देश्य देश की भाषाई विविधता को प्रदर्शित करने के लिये एक व्यापक ‘भाषा एटलस’ को निर्मित करना है।

भारत भाषाई रूप से कितना विविधतापूर्ण है?

  • ऐतिहासिक जनगणना रिकॉर्ड:
    • भारत का पहला और सबसे विस्तृत भाषाई सर्वेक्षण (LSI) सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा किया गया था जो वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ था।
    • वर्ष 1961 की भारत की जनगणना में भारत में बोली जाने वाली 1,554 भाषाएँ दर्ज की गईं।
      • वर्ष 1961 की जनगणना भाषाई आँकड़ों के संबंध में सर्वाधिक विस्तृत थी। इस जनगणना में प्रत्येक बोली जाने वाली भाषा को रिकॉर्ड में शामिल किया गया था।
    • वर्ष 1971 के बाद से, 10,000 से भी कम व्यक्तियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं को भारतीय जनगणना से हटा दिया गया, जिससे 1.2 मिलियन लोगों की मूल भाषाएँ दर्ज नहीं की गई हैं।
      • यह बहिष्कार जनजातीय समुदायों पर असंगत रूप से प्रभाव डालता है, जिनकी भाषाएँ प्राय:आधिकारिक रिकॉर्ड से अनुपस्थित होती हैं।
    • भारत अब आधिकारिक तौर पर भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 22 भाषाओं को मान्यता देता है।
      • वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों स्पष्ट हैं कि 97% आबादी इन आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक भाषा बोलती है।
      • इसके अतिरिक्त वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 99 गैर-अनुसूचित भाषाएँ हैं और लगभग 37.8 मिलियन लोग इनमें से किसी एक भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में पहचानते हैं।
        • 121 भाषाएँ ऐसी हैं जो भारत में 10,000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं।
  • भारत में बहुभाषावाद:
    • भारत विश्व के सबसे अधिक भाषाई विविधता वाले देशों में से एक है, यह विविधता भारतीयों को बहुभाषी होने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है, जिसका अर्थ है संचार में एक से अधिक भाषाओं का उपयोग करने में सक्षम होना है।
      • भारत, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 25% से अधिक जनसंख्या दो भाषाएँ बोलती है, जबकि लगभग 7% तीन भाषाएँ बोलते हैं।
      • अध्ययनों से पता चलता है कि युवा भारतीय अपनी बुज़ुर्ग पीढ़ी की तुलना में अधिक बहुभाषी हैं और साथ ही 15 से 49 वर्ष की आयु की लगभग आधी शहरी आबादी दो भाषाएँ बोलती है।

प्रस्तावित भाषाई सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • सर्वेक्षण भारत में भाषाओं तथा बोलियों की संख्या की गणना करने पर केंद्रित होगा, जिनमें वे भाषाएँ और बोलियाँ भी शामिल हैं जो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं।
  • इसका उद्देश्य राज्य और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर डेटा एकत्र करना है, जिसमें बोली जाने वाली सभी भाषाओं की ऑडियो रिकॉर्डिंग को डिजिटल रूप से संग्रहीत करने की योजना सम्मिलित है।
  • इसमें बोली जाने वाली सभी भाषाओं की ऑडियो रिकॉर्डिंग को डिजिटल रूप से संग्रहीत करने का भी प्रस्ताव है।
  • सर्वेक्षण में हितधारकों में विभिन्न भाषा समुदायों के साथ-साथ संस्कृति, शिक्षा, जनजातीय कार्य मंत्रालय और अन्य शामिल हैं।

भाषाई सर्वेक्षण का महत्त्व क्या है?

 

  • सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण:
    • भाषाई सर्वेक्षण भाषाओं, बोलियों और लिपियों की पहचान करने एवं उनका दस्तावेज़ीकरण करने में मदद करते हैं, जिससे सांस्कृतिक धरोहर तथा भाषाई विविधता का संरक्षण होता है।
  • नीति निर्धारण:
    • भाषाई सर्वेक्षणों का डेटा नीति निर्माताओं को विभिन्न समुदायों की भाषाई आवश्यकताओं के बारे में सूचित करता है, जिससे शिक्षा, शासन और सांस्कृतिक मामलों में भाषा-संबंधी नीतियों के निर्माण में सुविधा होती है।
  • शिक्षा योजना:
    • विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं के बारे में ज्ञान शैक्षिक कार्यक्रमों को डिज़ाइन करने में मदद करता है जो विविध भाषाई पृष्ठभूमि को पूरा करते हैं, समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।
  • सामुदायिक सशक्तीकरण:
    • भाषाई सर्वेक्षण भाषाई अल्पसंख्यकों और हाशिये पर रहने वाले समुदायों को उनकी भाषाओं को पहचानने एवं मान्य करके, उनके सामाजिक-आर्थिक व सांस्कृतिक कल्याण में योगदान देकर सशक्त बनाते हैं।
  • शोध और दस्तावेज़ीकरण:
    • भाषाई सर्वेक्षण शोधकर्त्ताओं, भाषाविदों और मानवविज्ञानियों के लिये भाषा विकास, बोली-विज्ञान एवं भाषा संपर्क घटना का अध्ययन करने वाले मूल्यवान संसाधनों के रूप में कार्य करते हैं।
  • बहुभाषावाद को बढ़ावा:
    • भाषाई विविधता की समृद्धि के बारे में जागरूकता बढ़ाकर, भाषाई सर्वेक्षण बहुभाषावाद को बढ़ावा देते हैं और किसी की भाषा व सांस्कृतिक पहचान पर गर्व की भावना को बढ़ावा देते हैं।

भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • आठवीं अनुसूची:
    • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की आधिकारिक भाषाओं की सूची है। इसमें आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त 22 भाषाएँ शामिल हैं।
      • असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
    • आठवीं अनुसूची में वर्तमान में छह शास्त्रीय भाषाएँ भी शामिल हैं:
      • तमिल (वर्ष 2004 में घोषित), संस्कृत (वर्ष 2005), कन्नड़ (वर्ष 2008), तेलुगु (वर्ष 2008), मलयालम (वर्ष 2013) और उड़िया (वर्ष 2014)।
    • भारतीय संविधान का भाग XVII अनुच्छेद 343 से 351 तक भारत की आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
  • संघ की भाषा:
    • अनुच्छेद 120: संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 210: अनुच्छेद 120 के समान लेकिन राज्य विधानमंडल पर लागू होता है।
    • अनुच्छेद 343: देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा घोषित करता है।
    • अनुच्छेद 344: राजभाषा पर एक आयोग और संसद की समिति की स्थापना करता है।
  • क्षेत्रीय भाषाएँ:
    • अनुच्छेद 345: राज्य विधायिका को राज्य के लिये कोई भी आधिकारिक भाषा अपनाने की अनुमति देता है।
    • अनुच्छेद 346: राज्यों के बीच तथा राज्यों और संघ के बीच संचार के लिये आधिकारिक भाषा निर्दिष्ट करता है।
    • अनुच्छेद 347: यह अनुच्छेद निमित्त मांग किये जाने पर राष्ट्रपति को राज्य के जन समुदाय के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा को मान्यता प्रदान करने की अनुमति देता है।
  • विशेष निदेश:
    • अनुच्छेद 29: यह अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है। इसके अनुसार नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि अथवा संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार है।
      • यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक को केवल धर्म, नस्ल, जाति अथवा भाषाई कारकों के आधार पर राज्य द्वारा वित्त पोषित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता है।
    • अनुच्छेद 350: यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी शिकायत/व्यथा के निवारण के लिये प्रत्येक व्यक्ति को संघ अथवा राज्य में प्रयुक्त किसी भी भाषा में अभ्यावेदन देने का अधिकार है।
      • अनुच्छेद 350A: यह अनुच्छेद राज्यों को भाषाई अल्पसंख्यक समूहों से संबंधित बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराने के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने का निर्देश देता है।
      • अनुच्छेद 350B: यह अनुच्छेद भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक विशेष अधिकारी का प्रावधान करता है जिसे संविधान के तहत भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित मामलों की जाँच करने का कार्य सौंपा जाता है।

भारत की भाषाई विविधता के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भाषाई प्रभुत्व:
    • राजनीतिक और सामाजिक रूप से कुछ भाषाओं का अन्य भाषाओं पर प्रभुत्व, भाषाई विविधता के लिये खतरा उत्पन्न करता है। अधिक राजनीतिक और आर्थिक शक्ति से संबंधित भाषाएँ अल्पसंख्यक भाषाओं को प्रभावित कर सकती हैं जिससे उनके अस्तित्व के संबंध में खतरा बढ़ सकता है।
    • भारत में भाषाई विविधता के सम्मुख प्रमुख चुनौतियों में से एक हिंदी को एक प्रमुख भाषा के रूप में समझना है जिसके कारण इसे गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में अधिरोपित करने का प्रयास किया जाता है।
  • पहचान की राजनीति और तनाव:
    • भाषाई विविधता कुछ विशेष संदर्भों में पहचान की राजनीति और तनाव को बढ़ावा दे सकती है जिससे भाषाई नीतियों तथा अधिकारों के संबंध में भाषाई वर्गों के बीच संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
    • कुछ भाषाओं को अधिरोपित करने अथवा विशेषाधिकार प्रदान करने का प्रयास भाषाई अल्पसंख्यकों के बीच प्रतिरोध और अशांति को बढ़ावा दे सकता है जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं।
  • संरक्षण प्रयासों का अभाव:
    • सरकारों और संस्थानों के संरक्षण प्रयासों तथा समर्थन की कमी के कारण कई स्वदेशी एवं जनजातीय भाषाएँ विलुप्त होने की कगार पर हैं।
    • पर्याप्त प्रलेखीकरण और इनको बढ़ावा देने के प्रयसों के बिना इन भाषाओं का पतन हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप भाषा से संबंधित समुदाय अथवा समूह की सांस्कृतिक विरासत तथा पहचान का ह्रास हो सकता है।
  • अपर्याप्त भाषा शिक्षा नीतियाँ:
    • शिक्षा नीतियों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने और संरक्षित करने पर अपर्याप्त ज़ोर से युवा पीढ़ी के बीच संबद्ध भाषा के संबंध में दक्षता तथा इसका उपयोग प्रभावित हो सकता है।
    • शैक्षणिक संस्थानों में सीमित संख्या में भाषाओं पर ध्यान देने से देश में मौजूद भाषाई विविधता की उपेक्षा हो सकती है।
  • शहरीकरण और वैश्वीकरण:
    • तेज़ी से शहरीकरण, वैश्वीकरण और प्रमुख संस्कृतियों का प्रभाव स्वदेशी भाषाओं तथा संस्कृतियों के क्षरण में योगदान कर सकता है।
    • जैसे-जैसे युवा पीढ़ी प्रमुख भाषाओं और संस्कृतियों की ओर बढ़ रही है, क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़े पारंपरिक ज्ञान, रीति-रिवाजों तथा सांस्कृतिक प्रथाओं के खोने का खतरा है।
  • अल्पसंख्यक भाषाओं में संसाधनों तक सीमित पहुँच:
    • अल्पसंख्यक भाषाओं में अक्सर अपनी-अपनी भाषाओं में साहित्य, मीडिया और प्रौद्योगिकी जैसे संसाधनों का अभाव होता है।
    • संसाधनों तक यह सीमित पहुँच अल्पसंख्यक भाषाओं के विकास और संरक्षण में बाधा डालती है, जो उन्हें विलुप्त होने के प्रति संवेदनशील बना रहा है।

आगे की राह

  • ऐसी नीतियाँ लागू करें जो हिंदी और अंग्रेज़ी के साथ क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दें। यह सुनिश्चित करने के लिये बहुभाषी शिक्षा को प्रोत्साहित करें कि छात्र अपनी मूल भाषा तथा व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा में कुशल हों।
    • बहुभाषावाद और क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण के लिये समर्थन सुनिश्चित करने हेतु शैक्षिक नीतियों की समीक्षा तथा संशोधन करें।
  • क्षेत्रीय भाषाओं के लिये मानक स्थापित करें और मौखिक इतिहास संरक्षण, भाषाई अनुसंधान तथा डिजिटल अभिलेखागार के माध्यम से लुप्तप्राय भाषाओं के दस्तावेज़ीकरण एवं संरक्षण के प्रयासों का समर्थन करें।

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