क्या बेंगलुरु पेयजल के संकट का सामना कर रहा है?

क्या बेंगलुरु पेयजल के संकट का सामना कर रहा है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश के कई इलाकों की तरह बेंगलुरु में भी साल दर साल बारिश में कमी दर्ज होती रही है. इसका सर्वविदित कारण है जंगलों का दायरा सीमित होना. जानते सब हैं, पर इसे रोकने के लिए कोई कुछ नहीं करता. पिछले मानसून में बारिश बेहद कम हुई और अब आने वाली बारिश में कम से कम तीन माह का और इंतजार है. पता नहीं, वह बारिश आयेगी भी या नहीं और अगर आयेगी तो धरा का प्यास बुझा पायेगी या नहीं? मनुष्य ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ में अपने लिए यही भवितव्य रचा है. भूजल के नवीकरण के समस्त उपायों पर सीमेंट बिछा दिया गया है और बादलों को आकर्षित करने वाले जंगल क्रमशः नष्ट होते रहे हैं. और, इस पर यह बेशर्म तर्क कि बारिश न हो तो हम क्या करें, यह तो प्राकृतिक आपदा है. धरती का पानी सूख गया है और बेंगुलुरु की नजदीकी नदियों- अर्कावती और वृषभावती- में जल नहीं है. ये नदियां आज इस महानगर का कचड़ा ढोने को विवश हैं. कावेरी दूर है, पर वही है, जिससे अब भी बेंगलुरु की सूखी हलक में थोड़ी-सी नमी बची हुई है.

पेयजल का संकट ऐसा विकट है कि बेंगलुरु के कई इलाकों में हर रोज नहीं, अपितु एक दिन बीच कर जल की आपूर्ति हो पा रही है. महानगर में जल के असंयमी उपयोगों को अवैध घोषित किया जा चुका है ताकि जल की बर्बादी को रोका जा सके. बेंगलुरु के जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड की मानें, तो महानगर को सामान्य तौर पर प्रतिदिन 210 करोड़ लीटर जल की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें केवल 145 करोड़ लीटर प्रतिदिन की ही आपूर्ति कावेरी से हो पा रही है. नगर निकाय इसे प्राकृतिक आपदा मानता है, जबकि यह असल में दीर्घकालिक तौर पर जल निकायों के कुप्रबंधन का परिणाम है.

कहा जाता है कि 1961 तक यहां 262 झीलें थीं, जिनमें 81 ही बची हैं. भू-माफियाओं और सरकारी गठजोड़ ने रियल इस्टेट के धंधे को बढ़ाने के चक्कर में झीलों को एक-एक कर भर दिया और उन पर अट्टालिकाएं बना ली गयीं. सरकारी नीतियां विकास और उन्नति के नाम पर जीवन की मूलभूत आवश्यकता पानी की उपलब्धता के प्रश्न को ही सिरे से भूल गयी, जिसकी भयंकर परिणति सामने है. हालत बदतर होती जा रही है क्योंकि बची हुई झीलें भी सूखने की कगार पर हैं.

जिस तरह से आधुनिकता के नाम पर सीमेंट के जंगल घनीभूत हो रहे हैं, नदियां नालियां बना दी जा रही हैं और भूमिगत जल के नवीकरण के सभी उपायों को समाप्त कर दिया जा रहा है, वह दिन दूर नहीं है कि पूरी मानव जाति आर्थिक रूप से संपन्न होकर भी अकाल के चपेट में आकर हाहाकार करेगी. क्या यह जरूरी नहीं है कि हम अब भी चेत जाएं? हाल में मानव जाति को दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन के उदाहरण ने आगाह किया था.

वहां 2014 से ही जल संकट गंभीर होने लगा था, लोगों ने दूरगामी उपायों पर ध्यान नहीं दिया और तात्कालिक जुगाड़ों से जल की आपूर्ति करते रहे. नतीजा यह निकला कि 2021 आते-आते केप टाउन पूरी तरह जलविहीन हो गया. संपन्नता के सारे प्रतिमान मखौल बन गये और बिना पानी के जन-जीवन बेकल हो उठा.

बेंगलुरु भी केप टाउन की ही राह पर है. इससे उबरने के लिए हमें तात्कालिक उपाय नहीं, स्थायी उपायों पर ध्यान देना चाहिए. और, केवल यही नहीं, हमें पूरे देश में समग्रता के साथ दूरगामी लक्ष्यों को साधते हुए सुनियोजित तरीके से नगरों, महानगरों और गांवों में जल की व्यापक आपूर्ति और व्यवस्था के लिए अभी से कमर कस लेनी चाहिए, ताकि जल संकट का भयावह चेहरा हमें नहीं देखना पड़े. केप टाउन से हमने सबक नहीं लिया, अब कम से कम बेंगलुरु से ही कुछ सीखें और मानव जाति के भविष्य की रक्षा करें. हमें मानवता के हक में बेंगलुरु की पुकार सुननी ही होगी.

एक महानगर केवल लोगों का जमघट नहीं होता, न ही यह केवल व्यापार, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और आधुनिकता के समस्त सूचकों का कोरा प्रदर्शन होता है. हमें भूलना नहीं चाहिए कि एक महानगर समग्र राष्ट्र के सामूहिक स्वप्नों और आकांक्षाओं के एक प्रत्यक्ष उद्गार के रूप में धीरे-धीरे पनपता है और समय के साथ विशाल होता जाता है. महानगरों का विस्तार जितना ऐश्वर्यों में होता है, उतनी ही उससे यह आशा होती है कि यह अपने रहवासियों के जीवन को सुगम, सहज और संतुष्ट रखेगा. बेंगलुरु कर्नाटक की राजधानी और दक्षिण भारत की सबसे बड़ी व देश की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाला महानगर है.

इसकी धड़कनों में एक करोड़ से अधिक लोगों के सीने की धक-धक शामिल है. धन, संपदा और वैभव की कोई कमी नहीं है बेंगलुरु में. व्यापारिक, व्यावसायिक व रिहायशी अट्टालिकाएं हैं यहां और भांति-भांति के बाजारों व उद्यानों से सजा हुआ है यह महानगर. सड़कों व सेतुओं के संजाल से जुड़े हुए हैं इसके मार्ग. आधुनिक परिवहन की सहज उपलब्धता से लैस बेंगलुरु वैश्विक व्यावसायिक संपर्कों व संबंधों का सघन तानाबाना संभाले हुए है और अर्वाचीन प्रौद्योगिकी के वैभव के केंद्र में रहते हुए भी आजकल अकालग्रस्त जीवन जीने को अभिशप्त है. समस्त भौतिकताएं भी इस प्यासे महानगर को श्रीहीन बनाने से नहीं बचा पा रही हैं.

Leave a Reply

error: Content is protected !!