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लैंगिक असमानता सूचकांक क्या है? - श्रीनारद मीडिया

लैंगिक असमानता सूचकांक क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

UNDP द्वारा अपनी मानव विकास रिपोर्ट 2023-24 में लैंगिक असमानता सूचकांक (Gender Inequality Index- GII), 2022 जारी किया गया है।

  • GII में, भारत 0.437 स्कोर के साथ 193 देशों में से 108वें स्थान पर है।

लैंगिक असमानता सूचकांक क्या है?

  • परिचय: GII तीन आयामों का उपयोग करते हुए लैंगिक असमानता का एक समग्र मीट्रिक है: प्रजनन स्वास्थ्यसशक्तीकरण और श्रम बाज़ार
    • यह इन क्षेत्रों में महिला और पुरुष उपलब्धियों के बीच असमानता के कारण मानव विकास क्षमता में अंतर को दर्शाता है।
    • GII मान 0 (समानता) से 1 (अत्यधिक असमानता) तक होता है।
      • कम GII मान महिलाओं और पुरुषों के बीच कम असमानता तथा अधिक GII मान महिलाओं एवं पुरुषों के बीच अधिक असमानता को को इंगित करता है।

आयाम और संकेतक: 

  • भारत की प्रगति:
    • लैंगिक असमानता सूचकांक- 2021 में भारत 0.490 स्कोर के साथ 191 देशों में से 122वें स्थान पर रहा। 
    • वर्तमान डेटा GII वर्ष 2021 की तुलना में GII वर्ष 2022 पर 14 रैंक का उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
    • पिछले 10 वर्षों में, GII में भारत की रैंक लगातार बेहतर हुई है, जो देश में लैंगिक समानता हासिल करने में प्रगतिशील सुधार का संकेत देती है।

नोट: 

  • मातृ मृत्यु अनुपात: प्रति 100,000 जीवित शिशुओं के जन्म पर गर्भावस्था से संबंधित कारणों से होने वाली मृत्यु की संख्या।
  • किशोर जन्म दर: संबंधित आयु वर्ग में प्रति 1,000 महिलाओं पर 10-14 अथवा 15-19 वर्ष की महिलाओं में जन्म की वार्षिक संख्या।
  • श्रम बल भागीदारी दर: कामकाजी उम्र की आबादी (15 वर्ष और उससे अधिक उम्र) का अनुपात, जो या तो काम करके या सक्रिय रूप से काम की तलाश हेतु श्रम बाज़ार से जुड़े हुए है, कामकाजी उम्र की आबादी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।

भारत में लैंगिक असमानता से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • लैंगिक हिंसा: भारत में महिलाओं और लड़कियों को अमूमन घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, दहेज़ संबंधी हिंसा तथा ऑनर किलिंग सहित विभिन्न प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है।
    • ये मुद्दे लैंगिक असमानता परिदृश्य में प्रमुख रूप से योगदान देते हैं।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग एक-तिहाई महिलाओं को शारीरिक अथवा यौन हिंसा का सामना करना पड़ा।
  • शिक्षा तक असमान पहुँच: शिक्षा पहुँच में सुधार के प्रयासों के बावजूद, नामांकन, प्रतिधारण और शिक्षा पूर्णता दर के मामले में लड़कों तथा लड़कियों के बीच असमानताएँ अभी भी मौजूद हैं।
    • सांस्कृतिक मानदंड, आर्थिक बाधाएँ और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ अमूमन लड़कियों की शिक्षा को बाधित करती हैं।
  • अवैतनिक श्रम: भारत में महिलाएँ अमूमन घरेलु काम, बच्चों की देखभाल और बुजुर्गों की देखभाल करने जैसे कई अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है तथा अन्य कार्यों की तुलना में कम महत्त्व दिया जाता है जो उनकी आर्थिक निर्भरता एवं समय की गरीबी (Time Poverty) में योगदान देता है।
  • लैंगिक वेतन अंतराल: भारत में महिलाओं को सामान्यतः पुरुषों की भाँति समान कार्य के लिये पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है जो एक गंभीर लैंगिक वेतन अंतराल को दर्शाता है।
    • यह वेतन अंतराल विभिन्न क्षेत्रों और रोज़गार के स्तरों पर प्रचलित है।
    • विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत में पुरुष श्रम आय का 82% अर्जित करते हैं जबकि महिलाओं को इसका मात्र 18% प्राप्त होता है।
  • बाल विवाह: बाल विवाह लड़कियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, उन्हें शैक्षिक और आर्थिक अवसरों से वंचित करता है तथा उनके स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों के प्रति सुभेद्य बनाता है।
    • UNESCO के अनुसार विश्व की तीन में से एक बालिका वधु का संबंध भारत से है।
      • बाल वधुओं में 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियाँ शामिल हैं जिनकी पहले से ही शादी हो चुकी है और साथ ही इसमें वे सभी उम्र की महिलाएँ भी शामिल हैं जिनका पहला विवाह बचपन में हुआ था।
    • बाल विवाह का प्रचलन वर्ष 2006 में 47% था जो वर्ष 2019-21 (NFHS-5) के दौरान घटकर लगभग आधा, 23.3% हो गया।
      • हालाँकि आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, झारखंड, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में बाल विवाह का प्रचलन राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

लैंगिक समानता को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार की पहल क्या हैं? 

  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बालिकाओं की सुरक्षा, अस्तित्व एवं शिक्षा सुनिश्चित करता है।
  • महिला शक्ति केंद्र का लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं को कौशल विकास और रोज़गार के अवसरों के माध्यम से सशक्त बनाना है।
  • राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना बच्चों के लिये सुरक्षित वातावरण प्रदान करती है, जिससे महिलाओं को रोज़गार प्राप्त करने में सक्षम बनाया जाता है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को मातृत्व लाभ प्रदान करती है।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना महिलाओं के नाम के तहत आवास सुनिश्चित करती है।
  • सुकन्या समृद्धि योजना बैंक खातों के माध्यम से लड़कियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है।
  • वर्ष 2005 से जेंडर बजट को भारत के केंद्रीय बजट का हिस्सा बना दिया गया है और साथ ही इसमें महिला समर्पित कार्यक्रमों एवं योजनाओं के लिये धन आवंटन भी शामिल है।

निर्भया फंड फ्रेमवर्क देश में महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से पहल के कार्यान्वयन के लिये एक गैर-व्यपगत कॉर्पस फंड प्रदान करता है।

वन स्टॉप सेंटर हिंसा की शिकार महिलाओं के लिये चिकित्सा एवं कानूनी सहायता तथा परामर्श सहित एकीकृत सेवाएँ प्रदान करते हैं।

संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023 लोकसभा, राज्य विधानसभाओं तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिये सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिसमें SC और ST के लिये आरक्षित सीटें भी शामिल हैं।

महिलाओं के लिये पंचायती राज संस्थाओं में 33% सीटें पहले से ही आरक्षित हैं।

विज्ञान ज्योति कार्यक्रम का उद्देश्य लड़कियों को STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित) में उच्च शिक्षा के साथ-साथ करियर बनाने के लिये प्रोत्साहित करना है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ महिलाओं की भागीदारी कम है ताकि सभी क्षेत्रों में लिंग अनुपात को संतुलित किया जा सके।

स्टैंड-अप इंडिया, महिला ई-हाट, उद्यमिता एवं कौशल विकास कार्यक्रम (ESSDP) तथा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी अन्य पहल महिला उद्यमियों को बढ़ावा देती हैं।

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट (विश्व आर्थिक मंच):

  • ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स सालाना चार प्रमुख आयामों (आर्थिक भागीदारी एवं अवसर, शैक्षिक प्राप्ति, स्वास्थ्य एवं अस्तित्व, तथा राजनीतिक सशक्तीकरण) में लैंगिक समानता की वर्तमान स्थिति और विकास को मापता है।
    • यह सबसे लंबे समय तक चलने वाला सूचकांक है, जो वर्ष 2006 में अपनी स्थापना के बाद से समय के साथ इन अंतरालों को कम करने की दिशा में प्रगति की निगरानी करता है।
    • जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर था।

आगे की राह

  • व्यापक कानूनी सुधार: लिंग आधारित हिंसा, बाल विवाह और कार्यस्थल भेदभाव से संबंधित मौजूदा कानूनों को मज़बूत करना तथा लागू करना।
    • न्यायमूर्ति वर्मा समिति (2013) की सिफारिशों के अनुसार भारतीय न्याय संहिता में वैवाहिक बलात्कार से संबंधित प्रावधानों का परिचय।
  • लिंग-संवेदनशील शिक्षा: लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, रूढ़िवादिता को चुनौती देने और लड़कियों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करने हेतु स्कूलों तथा कॉलेजों में लिंग-संवेदनशील पाठ्यक्रम एवं नीतियाँ लागू करना।
  • फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म: फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन मार्केटप्लेस तक पहुँच को बढ़ावा देना तथा सुविधा प्रदान करना जहाँ गृहिणियाँ सामग्री लेखन, ग्राफिक डिज़ाइन, वर्चुअल सहायता, सोशल मीडिया प्रबंधन एवं ऑनलाइन ट्यूशन जैसे क्षेत्रों में अपने कौशल व सेवाएँ प्रदान कर सकती हैं।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य के लिये सहायता: महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अवैतनिक देखभाल कार्यों को पहचानने और महत्त्व देने तथा घरों के भीतर साझा ज़िम्मेदारियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। देखभाल और घरेलू ज़िम्मेदारियों में पुरुषों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • समान वेतन और कार्यस्थल नीतियाँ: समान कार्य नीतियों के लिये समान वेतन लागू करना, नेतृत्व पदों में लिंग विविधता को बढ़ावा देना और कार्यस्थल नीतियों को लागू करना जो कार्य-जीवन संतुलन तथा उत्पीड़न एवं भेदभाव से मुक्त सुरक्षित कार्य वातावरण का समर्थन करते हैं।
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