आदर्श आचार संहिता लोकतंत्र के लिये एक दिशा सूचक का कार्य करती है

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव 2024 के लिये मतदान की तारीखों की घोषणा के साथ आदर्श आचार संहिता (MCC) लागू हो गई है, जो चुनावी शासन के एक महत्त्वपूर्ण पहलू को चिह्नित करती है।

MCC क्या है और इसका विकास क्या है?

  • परिचय:
    • MCC एक सर्वसम्मत दस्तावेज़ है। राजनीतिक दल स्वयं चुनाव के दौरान अपने आचरण को नियंत्रित रखने और संहिता के भीतर काम करने पर सहमत हुए हैं।
    • यह चुनाव आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत दिये गए जनादेश को ध्यान में रखते हुए मदद करता है, जो उसे संसद और राज्य विधानमंडलों के लिये स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों की निगरानी एवं संचालन करने की शक्ति देता है।
    • MCC चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की तारीख से परिणाम की घोषणा की तारीख तक चालू रहता है।
    • संहिता लागू रहने के दौरान सरकार किसी वित्तीय अनुदान की घोषणा नहीं कर सकती, सड़कों या अन्य सुविधाओं के निर्माण का वादा नहीं कर सकती और न ही सरकारी या सार्वजनिक उपक्रम में कोई तदर्थ नियुक्ति कर सकती है।
  • MCC की प्रवर्तनीयता:
    • हालाँकि MCC के पास कोई वैधानिक समर्थन नहीं है, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा इसके सख्त कार्यान्वयन के कारण पिछले दशक में इसे ताकत मिली है।
      • MCC के कुछ प्रावधानों को भारतीय दंड संहिता 1860दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 जैसे अन्य कानूनों में संबंधित प्रावधानों को लागू करके लागू किया जा सकता है।
  • MCC का विकास:
    • केरल चुनाव के लिये आचार संहिता अपनाने वाला पहला राज्य था। वर्ष 1960 में राज्य में विधान सभा चुनावों से पहले, प्रशासन ने जुलूस, राजनीतिक रैलियों और भाषणों जैसे चुनाव प्रचार के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को शामिल करते हुए एक मसौदा संहिता तैयार की।
    • वर्ष 1974 में ECI ने एक औपचारिक MCC जारी किया और साथ ही इसके कार्यान्वयन की निगरानी के लिये ज़िला स्तर पर नौकरशाही निकाय भी स्थापित किये गए। वर्ष 1977 से पूर्व MCC केवल राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों का मार्गदर्शन करती थी। 
    • वर्ष 1979 में निर्वाचन आयोग के संज्ञान में आया कि सत्तारूढ़ दल सार्वजनिक स्थानों पर एकाधिकार स्थापित करने और विज्ञापन के लिये सार्वजनिक धन का उपयोग कर सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। निर्वाचन आयोग ने सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों से संबंधित इस मुद्दे का समाधान करने हेतु MCC में संशोधन किया।
    • संशोधित MCC के सात भाग शामिल थे, जिनमें से एक भाग निर्वाचन की घोषणा के उपरांत सत्तारूढ़ दलों के व्यवहार से संबंधित था।
      • भाग I: उम्मीदवारों और पार्टियों के लिये सामान्य अच्छा व्यवहार।
      • भाग II और III: सार्वजनिक बैठकों और जुलूसों से संबंधित नियम।
      • भाग IV और V: मतदान के दिन और मतदान केंद्रों पर व्यवहार के लिये दिशा-निर्देश।
    • MCC में वर्ष 1979 के बाद से कई अवसरों पर संशोधन किया गया। इसमें नवीनतम संशोधन वर्ष 2014 में किया गया था।

MCC से संबंधित प्रमुख उपबंध:

  • सामान्य आचरण:
    • कोई दल अथवा उम्मीदवार ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो भिन्न-भिन्न जातियों और समुदायों, चाहे वे धार्मिक या भाषायी हों, के बीच विद्यमान मतभेद को और अधिक बिगाड़े अथवा परस्‍पर घृणा उत्पन्न करे अथवा उनके बीच तनाव उत्पन्न करे
      • इसी प्रकार, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123(3) लोगों के बीच शत्रुता या घृणा को बढ़ावा देने के लिये धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के उपयोग और इसे एक राजनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं देती है।
    • जब राजनीतिक दलों की आलोचना की जाए तो वैयक्तिक हमलों से बचते हुए उसे उनकी नीतियों और कार्यक्रम, विगत रिकॉर्ड तथा कार्य तक ही सीमित रखा जाएगा।
  • बैठक और जुलूस:
    • पार्टियों को किसी भी बैठक के स्थान और समय के बारे में स्थानीय पुलिस अधिकारियों को समय पर सूचित करेंगे ताकि पुलिस पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था कर सके।
    • यदि दो अथवा दो से अधिक उम्मीदवार एक ही मार्ग से जुलूस निकालने की योजना बनाते हैं, तो राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करने के लिये पहले से संपर्क कर लेना करना चाहिये ताकि जुलूस में आपसी टकराव न हो।
    • राजनीतिक दलों के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वालों को पुतले ले जाने और जलाने की अनुमति नहीं है।
  • मतदान के दिन:
    • केवल मतदाताओं और चुनाव आयोग से प्राप्त वैध पास वाले लोगों को ही मतदान केंद्रों में प्रवेश करने की अनुमति है।
    • मतदान केंद्रों पर सभी अधिकृत पार्टी कार्यकर्त्ताओं को उपयुक्त बैज अथवा पहचान-पत्र दिया जाना चाहिये।
      • उनके द्वारा मतदाताओं को दी जाने वाली पहचान पर्चियाँ सादे (सफेद) कागज़ पर होंगी और उनमें कोई प्रतीक, उम्मीदवार का नाम अथवा दल का नाम नहीं होगा।
      • चुनाव आयोग पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करेगा जिनके पास कोई भी उम्मीदवार चुनाव के संचालन के संबंध में समस्याओं की रिपोर्ट कर सकता है।
  • दल सत्ता में:
    • MCC द्वारा वर्ष 1979 में सत्ता में रहे दल के आचरण को विनियमित करते हुए कुछ प्रतिबंध लागू किये। मंत्रियों को आधिकारिक दौरों को चुनाव कार्य के साथ नहीं जोड़ना चाहिये अथवा इसके लिये आधिकारिक मशीनरी का उपयोग नहीं करना चाहिये।

MCC से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • प्रवर्तन चुनौतियाँ:  MCC का प्रवर्तन असंगत या अपर्याप्त हो सकता है, जिससे उल्लंघन हो सकता है और वैधानिक समर्थन की कमी के कारण दंडित नहीं किया जा सकता है।
    • ECI, MCC के वैधीकरण का विरोध करता है, जिसमें लगभग 45 दिनों के भीतर चुनावों को तीव्रता से पूरा करने की आवश्यकता का हवाला दिया गया है, जिससे लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं के कारण कानूनी प्रवर्तन अव्यावहारिक हो गया है।
  • अस्पष्टता: MCC के कुछ प्रावधान अस्पष्ट या व्याख्या के लिये खुले हो सकते हैं, जिससे राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के बीच भ्रम उत्पन्न हो सकता है।
  • सीमित दायरा: आलोचकों का तर्क है कि MCC के दायरे को चुनावी फंडिंग, सोशल मीडिया के उपयोग तथा घृणास्पद भाषण सहित व्यापक मुद्दों को कवर करने के लिये विस्तारित किया जाना चाहिये।
  • समय संबंधी मुद्दे: MCC केवल चुनाव अवधि के दौरान ही प्रभावी होता है, जिससे इस अवधि के बाद कदाचार की गुंजाइश बनी रहती है।
  • शासन व्यवस्था पर प्रभाव: कुछ लोगों का तर्क है कि चुनाव अवधि के दौरान सरकारी घोषणाओं और गतिविधियों पर MCC के प्रतिबंध शासन के कामकाज में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
  • सुधार की आवश्यकता: MCC की कमियों को दूर करने तथा निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने हेतु इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिये इसमें सुधार की मांग की जा रही है।
  • प्रवर्तन को सुदृढ़ बनाना: सभी राजनीतिक दलों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु MCC दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिये तंत्र को बढ़ाना।
  • प्रावधानों को स्पष्ट करना: अस्पष्टता को कम करने तथा बेहतर समझ एवं अनुपालन की सुविधा के लिये MCC नियमों की स्पष्टता और विशिष्टता में सुधार करना। इस प्रकार यह एक संहिताबद्ध और व्यापक MCC की आवश्यकता है।
  • नए ज़रूरतों के अनुसार दायरा बढ़ाना: डिजिटल प्रचार एवं चुनावी फंडिंग पारदर्शिता जैसे उभरते मुद्दों के समाधान के लिये MCC के कवरेज को व्यापक बनाने पर विचार करना।
  • MCC को वैध बनाना: MCC को वैधानिक रूप से संस्थागत बनाने के प्रस्तावों का मूल्यांकन करना, इसे बढ़ी हुई प्रभावशीलता और प्रवर्तनीयता के लिये वैधानिक समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • वर्ष 2013 में, कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय पर स्थायी समिति ने MCC को वैधानिक रूप से बाध्य करने और इसे RPA- 1951 में एकीकृत करने का प्रस्ताव रखा।
    • चुनावी सुधारों पर दिनेश गोस्वामी समिति (1990) ने सुझाव दिया कि MCC की कमज़ोरी को वैधानिक समर्थन देकर और कानून के माध्यम से लागू करने योग्य बनाकर दूर किया जा सकता है।
  • सार्वजनिक जागरूकता: मतदाताओं, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को MCC अनुपालन के महत्त्व एवं निष्पक्ष चुनाव को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका के बारे में शिक्षित करने के लिये अभियान शुरू करने की आवश्यकता है।
  • निरंतर समीक्षा: उभरती चुनावी गतिशीलता और चुनौतियों से निपटने के लिये MCC के नियमित मूल्यांकन और अनुकूलन के लिये एक रूपरेखा स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) लोकतंत्र के लिये एक दिशा सूचक/मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है, लेकिन घटती प्रतिबद्धता और बढ़ते उल्लंघनों के साथ चुनौतियों का सामना करती है। इसे वैध बनाने से निर्वाचन आयोग को भ्रष्टाचार से निपटने और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने का अधिकार मिल सकता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता एवं विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिये आवश्यक है।
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