पुतिन की जीत का भारत के लिए क्या मतलब है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दो बातें तो रूस में राष्ट्रपति चुनाव से पहले से तय मानी जा रही थीं- एक, व्लादिमीर पुतिन फिर से राष्ट्रपति निर्वाचित होंगे और उन्हें भारी मतों से जीत मिलेगी तथा दो, यदि पुतिन की जीत होती है, पश्चिमी देश चुनाव को लेकर आलोचना करेंगे. पश्चिम की ऐसी प्रतिक्रिया की वजह यह है कि कुछ समय से, विशेषकर यूक्रेन युद्ध के बाद से, रूस और पश्चिमी देशों में तनातनी बहुत बढ़ गयी है. दोनों खेमे एक तरह से युद्ध की स्थिति में हैं. ऐसे में पश्चिम की आलोचना अपेक्षित है.
यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि पुतिन को सत्ता से हटाने का पश्चिम का एजेंडा बहुत सालों से चल रहा है. एक प्रकार से पुतिन पश्चिम के विरोध में खड़े आखिरी व्यक्ति हैं. रूस और यूक्रेन का युद्ध रूस एवं पश्चिम के बीच एक छद्म युद्ध का रूप ले चुका है. पश्चिमी नेता लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि पुतिन एक तानाशाह हैं और उनके नेतृत्व में रूस में कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है. ऐसे में चुनाव परिणाम को लेकर उनकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है और इसमें कोई नयी बात भी नहीं है. मेरी राय में यह प्रतिक्रिया पश्चिम की कुंठा और क्षोभ का परिचायक है.
इस चुनाव की खास बात यह रही है कि बड़ी संख्या में लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. उल्लेखनीय है कि रूस के लोग बड़े स्वाभिमानी और राष्ट्रवादी हैं. जब देश की सुरक्षा का प्रश्न आता है, तो एकता बहुत सुदृढ़ हो जाती है और लोग वैसी स्थिति में एक मजबूत नेता को सत्ता में देखना चाहते हैं. रूसी इतिहास में ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैं. यह बात पुतिन के पक्ष में गयी है और लोगों ने उन पर भरोसा जताया है. रूस में जो दूसरी पार्टियां या उम्मीदवार हैं, उनका वजूद इतना बड़ा नहीं है कि वे पुतिन के सामने गंभीर चुनौती पेश कर पाते.
यह भी है कि जो व्यक्ति सत्ता में होता है, तो चुनाव में उसे संस्थागत लाभ मिलता है और वह अपना प्रचार अधिक प्रभावी ढंग से कर पाता है. यूक्रेन युद्ध और पश्चिम के अनगिनत प्रतिबंधों के बावजूद रूस की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है. उसके विदेशी मुद्रा और सोना भंडार में बढ़ोतरी हुई है. रूसी मुद्रा रूबल संतुलित स्थिति में है और लोगों की आमदनी बढ़ी है. आर्थिक प्रतिबंधों से परेशानी तो होती है, फिर भी पुतिन अपने देश को आगे बढ़ाने में सफल रहे हैं. अब यह युद्ध अर्थव्यवस्था है या जो भी है, वह बहस का विषय है, पर सच यही है कि आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है.
यह कहा जा सकता है कि पुतिन विरोधी एक नेता जेल में था और उसकी मौत हुई, जिससे रूस की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं. पर यह समझना भी जरूरी है कि दुनिया में लोकतंत्र का जो ब्रिटिश मॉडल है, उसका विरोध अनेक जगहों पर हो रहा है. बहुत से लोग यह कहने लगे हैं कि हर देश की अपनी संस्कृति होती है, लोगों के सोचने-समझने का अलग ढंग होता है, और इसी आधार पर नेता और लोग अपने देश को आगे ले जाने की कोशिश करते हैं. कहने का अर्थ यह है कि हर जगह लोकतंत्र की अपनी परिभाषा है. अनेक देशों में मजबूत नेता सत्ता में हैं.
जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दौर में लोकतंत्र को लेकर सवाल उठे, तब पुतिन ने कहा था कि रूस की लोकतांत्रिक व्यवस्था तुलनात्मक रूप से बेहतर है. इन आधारों पर इस चुनाव को देखा जा सकता है. पुतिन को 87 प्रतिशत से अधिक वोट मिले हैं. यह आंकड़ा अविश्वसनीय लग सकता है, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां विपक्ष नाममात्र का है और उसके पास व्यापक जन समर्थन नहीं है. एक तरह से स्थिति यह है कि पुतिन का वहां कोई विकल्प नहीं है.जहां तक पुतिन की जीत और भारत के साथ रूस से संबंधों की बात है, तो हमारे संबंध बहुत पुराने हैं और हाल के वर्षों में उनमें मजबूती भी आयी है. आज द्विपक्षीय व्यापार 65 अरब डॉलर के आसपास पहुंच गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच गहरी मित्रता भी है.
दोनों देशों के बीच एक अच्छी रणनीतिक साझेदारी भी है. चाहे द्विपक्षीय संबंध हों, या जी-20, ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन, संयुक्त राष्ट्र आदि के मंच और मुद्दे हों, यूक्रेन युद्ध एवं भू-राजनीतिक घटनाओं के बावजूद दोनों देशों के रिश्ते और अच्छे हुए हैं. भारत में यह आकलन लगाने की कोशिशें जरूर हुई हैं कि यूक्रेन से लड़ाई की स्थिति में क्या रूस से पहले की तरह भारत को हथियार और अन्य सैनिक साजो-सामान की आपूर्ति जारी रह सकती है या नहीं. यह भी समझाने का प्रयास हुआ है कि भारत के आत्मनिर्भरता अभियान या मेक इन इंडिया जैसी पहलों में रूस किस हद तक मददगार हो सकता है. दोनों देशों की निकटता का एक बड़ा प्रमाण यह है कि राष्ट्रपति पुतिन अक्सर प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते रहते हैं. वे कहते रहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत शानदार प्रगति कर रहा है और आज के दौर में कोई भी देश उसे दबाव में नहीं डाल सकता है.
इस पृष्ठभूमि में स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन द्विपक्षीय संबंधों को विस्तार देने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उनकी जीत के बाद जो संदेश भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से गया है, वह भी परस्पर विश्वास और सहयोग की भावना को प्रतिबिंबित करता है. देशों के राजनीतिक नेतृत्व की निरंतरता से संबंधों को बड़ा आधार मिलता है. राष्ट्रपति पुतिन कम से कम अगले छह साल पद पर रहेंगे और भारत में भी निरंतरता की संभावना है. इसमें भी कोई शक नहीं है कि जब नेतृत्व शक्तिशाली होता है, नीतियों एवं निर्णयों को आगे बढ़ाने के काम में भी गति आती है.
ऐसे में आगामी वर्षों में आपसी संबंध और सहयोग में निश्चित ही विस्तार होगा. पश्चिमी देशों के प्रतिकार में मदद के लिए रूस को चीन की आवश्यकता है, पर रूस उसके दबाव में नहीं आयेगा. रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है और पर वहां आबादी बहुत कम है, जिसके कारण उसके सामने मानव संसाधन की समस्या है. अन्य चुनौतियां भी हैं. उसे चीन को संतुलित करने के लिए भी भारत की आवश्यकता है. अगर कभी अमेरिका और पश्चिमी देश तथा रूस के बीच शांति वार्ता एवं समझौते की स्थिति बनती है, तो निश्चित रूप से भारत उसमें एक सकारात्मक भूमिका निभाने की क्षमता रखता है.
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