क्या मत्स्य संपदा को लेकर चिंता बढ़ी है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लालच के कारण वैश्विक स्तर पर समुद्र में मछलियां और अन्य संसाधन धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं. मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ समुद्री तट पर रहने वाले लोगों के लिए मत्स्य आखेट रोजगार का प्रमुख साधन रहा है. भारत, जिसका समुद्री तट 7,516 किलोमीटर का है, में लगभग पूरे समुद्री तट पर हमारे परंपरागत मछुआरे मछली पकड़ अपना जीवनयापन करते रहे हैं.

भारत समेत दुनियाभर में लगभग 50 करोड़ छोटे मछुआरे इस काम में लगे हैं. संयुक्त राष्ट्र के धारणीय विकास लक्ष्यों में से एक लक्ष्य क्रमांक 14.6 में कहा गया है कि मत्स्यन आखेट में अतिरेक के कारण धारणक्षम विकास प्रभावित हो रहा है, इसलिए इसे सीमित करना जरूरी है. यह सही है कि मछली और अन्य समुद्री संसाधनों की कमी स्थायी आधार पर मानव जाति के लिए भविष्य में मछली की उपलब्धता खतरे में है, लेकिन प्रश्न यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? विश्व खाद्य संगठन (एफएओ) के अनुसार, 1974 में धारणीय मत्स्यन से 10 प्रतिशत अधिक मछली पकड़ी जा रही थी. यह अतिरेक बढ़कर 2019 तक 35.4 प्रतिशत तक पहुंच गया था. ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र की मत्स्य संसाधनों को लेकर चिंता स्वभाविक है.

समुद्र में मछली कम होने से न केवल भविष्य में मछली की उपलब्धता में भारी कमी आयेगी, दुनिया के 50 करोड़ मछुआरों की जीविका भी खतरे में पड़ जायेगी.भले 50 करोड़ छोटे मछुआरे मछली पकड़ने के काम में लगे हैं, पर कुल मछली पकड़ने में उनका हिस्सा सिर्फ 40 प्रतिशत है, जबकि कुछ चुनिंदा कंपनियां समुद्री संसाधनों के दोहन में 60 प्रतिशत हिस्सा रखती हैं.मछली पकड़ने के अतिरेक के लिए मानव सभ्यता के प्रारंभ से इस काम में जुड़े छोटे मछुआरे कतई जिम्मेदार नहीं हैं.

इसके लिए कोई जिम्मेदार है, तो वे बड़ी कंपनियां हैं, जो अपने-अपने देशों के आर्थिक क्षेत्र से आगे जाकर सुदूर समुद्र में मछली पकड़ती हैं. चूंकि यह सब काम मशीनों से होता है और उनके पास अतिरिक्त साधन होते हैं, इसलिए वे ज्यादा से ज्यादा मछली पकड़ पाते हैं और उसे बेचकर खासा लाभ कमाते हैं. हमें समझना होगा कि जहां मछली पकड़ना छोटे मछुआरों की जीवनशैली है और जीविका का आधार है, बड़ी कंपनियों द्वारा बड़े-बड़े जहाजों की मदद से गहरे समुद्र में मछली पकड़ना केवल और केवल लाभ से प्रेरित है. यह कोई रहस्य नहीं है कि समुद्री संसाधनों के खत्म होने के लिए विकसित देश ही जिम्मेदार हैं क्योंकि उनके बड़े-बड़े जहाज अपनी मछली खत्म करने के बाद अपनी-अपनी सरकारों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के सहारे सुदूर जल में गहरे समुद्री संसाधनों का दोहन कर रहे हैं.

यदि संयुक्त राष्ट्र के धारणीय विकास लक्ष्य क्रमांक 14.6 की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ना है, तो लाभ के उद्देश्य से विकसित देशों की इन बड़ी कंपनियों के अतिरेक को रोकना पड़ेगा. ओइसीडी मत्स्य पालन सब्सिडी अनुमान (2014-16) और एफएओ वार्षिक पुस्तक, मत्स्य पालन और जलीय कृषि सांख्यिकी, 2016 के आंकड़ों के अनुसार, डेनमार्क प्रति मछुआरे को 75,578 डॉलर, स्वीडन 65,979 डॉलर, न्यूजीलैंड 36,512 डॉलर और ब्रिटेन 2,146 डॉलर की सब्सिडी देते हैं, जबकि भारत में यह बमुश्किल 15 डॉलर ही है. जहां वैश्विक मंचों पर मछली की कमी पर विकसित देश घड़ियाली आंसू बहाते दिखते हैं, अपनी गलतियों को सुधारने के लिए तैयार नहीं है.

ऐसा ही दृश्य अबूधाबी में हुए विश्व व्यापार संगठन के मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में देखने को मिला. मत्स्य पालन सब्सिडी को अनुशासित करने का विषय पहली बार 2001 में दोहा मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में आया था. कुछ सदस्यों ने मांग की थी कि महासागरों में अत्यधिक मछली पकड़ने और अत्यधिक क्षमता में योगदान करने वाली मत्स्य पालन सब्सिडी पर प्रतिबंध लगना चाहिए. इसमें अवैध, असूचित और अनियमित सब्सिडी को खत्म करने पर जोर दिया गया था. सदस्यों ने जेनेवा में 2022 के मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में मत्स्य पालन सब्सिडी समझौते को अपनाया, लेकिन इसे औपचारिक रूप से तभी अपनाया जा सकता था, जब विश्व व्यापार संगठन के दो-तिहाई सदस्य इसकी पुष्टि करते.

अबूधाबी सम्मेलन 2024 में विकसित देशों, जो समुद्र में मछली की कमी के नाम पर विकासशील देशों के पारंपरिक मछुआरों को दी जाने वाली न्यूनतम सब्सिडी को भी समाप्त करने की वकालत कर रहे थे, को व्यापक सच का सामना करना पड़ा. विकासशील देशों ने जोर देकर कहा कि सुदूर समुद्र में मछली पकड़ने वाले बड़े जहाजों की मालिक कंपनियों को सब्सिडी देना रोका जाए, तो ही इस समझौते पर आगे बढ़ा जा सकता है.

उन्होंने यह भी कहा कि विकासशील देशों को अपने समुद्री आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने के लिए सब्सिडी की छूट को 25 वर्ष तक बढ़ाना होगा. स्वाभाविक है कि विकसित देश गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले अपने जहाजों की सब्सिडी रोकने के लिए तैयार नहीं हुए और सम्मेलन में मत्स्यन सब्सिडी पर समझौता नहीं हो पाया. स्पष्ट है कि जब तक बड़ी कंपनियों का लालच समाप्त नहीं होता, तब तक मत्स्यन पर संयुक्त राष्ट्र के धारणीय विकास लक्ष्य की ओर आगे नहीं बढ़ा जा सकता.

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