तपेदिक/क्षय रोग/यक्ष्मा/टीबी क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
24 मार्च को विश्व तपेदिक/क्षयरोग दिवस (World TB Day) मनाया जाता है। इसे वर्ष 1882 में डॉ. रॉबर्ट कोच (Dr. Robert Koch) द्वारा टीबी का कारण बनने वाले जीवाणु माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) की खोज की याद में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आकलन के अनुसार, प्रत्येक दिन दुनिया भर में 3,500 लोग टीबी से अपनी जान गँवाते हैं और लगभग 30,000 लोग टीबी बेसिली से संक्रमित होते हैं।
वैश्विक स्तर पर टीबी के 27% मामले अकेले भारत में हैं। यह आश्चर्यजनक है, क्योंकि टीबी एक पता लगाने योग्य एवं आरोग्य-साध्य बीमारी (detectable and curable disease) है और टीबी निदान एवं उपचार प्रोटोकॉल लंबे समय से मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों का अंग रहे हैं।
नोट
- पीछे मुड़कर देखें तो टीबी के विरुद्ध भारत का संघर्ष इसकी स्वतंत्रता से पहले ही शुरू हो गई थी:
- वर्ष 1929 में भारत ‘इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरकुलोसिस’ में शामिल हुआ था। टीबी नियंत्रण के लिये ‘किंग जॉर्ज V थैंक्सगिविंग फंड’ की स्थापना टीबी शिक्षा एवं रोकथाम, क्लीनिकों की स्थापना और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिये की गई थी।
- वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद केंद्र सरकार ने योजना की देखरेख के लिये स्वास्थ्य मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के तहत एक टीबी प्रभाग की स्थापना की।
- वर्ष 1959 में सरकार ने WHO की मदद से बेंगलुरु में राष्ट्रीय क्षय रोग संस्थान (National TB Institute) की स्थापना की। इसके बाद वर्ष 1962 में राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Tuberculosis Control Programme- NTP) तैयार किया गया।
- वर्ष 1963 में NTP में कमी की पहचान के साथ फिर संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम विकसित किया गया। वर्ष 2023 की अद्यतन स्थिति पर विचार करें तो भारत का राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम सतत विकास लक्ष्यों से पाँच वर्ष पूर्व वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास का नेतृत्व कर रहा है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2030 तक टीबी महामारी को समाप्त करना संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के स्वास्थ्य लक्ष्यों में से एक है।
- नवंबर 2023 में WHO ने दो प्रमुख मोर्चों पर भारत की सफलता को चिह्नित किया: वर्ष 2015 से 2022 के बीच टीबी के मामलों को 16% कम करने में (वैश्विक स्तर पर टीबी के मामलों में गिरावट से लगभग दोगुनी गति से) और उसी दौरान टीबी मृत्यु दर को 18% तक कम करने में, जहाँ भारत वैश्विक रुझान के अनुरूप बना रहा है।
- प्रधानमंत्री ने वाराणसी में आयोजित ‘वन वर्ल्ड टीबी समिट’ को संबोधित किया, जहाँ उन्होंने ‘टीबी मुक्त पंचायत’ और वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में निवारक उपचार पर तीन माह की लघु उपचार अवधि शुरू करने जैसी पहलों की घोषणा की।
- प्रधानमंत्री ने टीबी का खतरा रखने वाले लोगों के लिये 3 माह के निवारक उपचार की राष्ट्रव्यापी शुरुआत करने की भी घोषणा की। इससे पूर्व के छह माह की उपचार अवधि का समय कम हो जाएगा और दैनिक रूप से गोलियाँ खाने के स्थान पर सप्ताह में एक बार दवा दी जाएगी।
- परिचय:
- टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण उत्पन्न होता है, जो माइकोबैक्टीरियासी परिवार से संबंधित जीवाणु है, जिसमें लगभग 200 अन्य जीवाणु शामिल हैं।
- कुछ माइकोबैक्टीरिया मनुष्यों में टीबी और कुष्ठ रोग (Leprosy) जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं और अन्य जंतुओं की एक विस्तृत शृंखला को संक्रमित करते हैं।
- मनुष्यों में, टीबी सबसे अधिक फेफड़ों (pulmonary TB) को प्रभावित करती है, लेकिन यह अन्य अंगों (extra-pulmonary TB) को भी प्रभावित कर सकती है।
- टीबी एक बहुत ही प्राचीन बीमारी है और मिस्र में 3000 ईसा पूर्व से ही इसके मौजूद होने को दर्ज किया गया है। यह एक उपचार योग्य और आरोग्य-साध्य बीमारी है।
- संक्रमण की व्यापकता:
- प्रति वर्ष 10 मिलियन लोग टीबी से बीमार पड़ते हैं। रोकथाम योग्य और साध्य बीमारी होने के बावजूद, हर वर्ष 1.5 मिलियन लोगों की टीबी से मौत हो जाती है, जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी जानलेवा संक्रामक बीमारी बनाता है।
- टीबी एचआईवी से पीड़ित लोगों की मृत्यु का प्रमुख कारण है और रोगाणुरोधी प्रतिरोध में भी एक प्रमुख योगदानकर्ता है।
- टीबी से बीमार पड़ने वाले अधिकांश लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पाए जाते हैं, लेकिन टीबी का अस्तित्व पूरी दुनिया में देखा जाता है। टीबी से संक्रमित सभी लोगों में से लगभग आधे इन 8 देशों में पाए जाते हैं: बांग्लादेश, चीन, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका।
- उपचार:
- टीबी का इलाज 4 रोगाणुरोधी दवाओं के 6 माह के मानक कोर्स के साथ किया जाता है, जहाँ स्वास्थ्य कार्यकर्ता या प्रशिक्षित स्वयंसेवक द्वारा रोगी को जानकारी, पर्यवेक्षण एवं सहायता भी प्रदान की जाती है।
- टीबी रोधी दवाओं का उपयोग दशकों से किया जा रहा है और सर्वेक्षण किये गए प्रत्येक देश में एक या अधिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी उपभेदों (स्ट्रेन) की उपस्थिति को दर्ज किया गया है।
- बहुऔषध-प्रतिरोधक तपेदिक (Multidrug-resistant tuberculosis- MDR-TB) टीबी का एक रूप है जो ऐसे जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है जो दो सबसे प्रभावशाली और प्रथम पंक्ति की टीबी-रोधी दवाओं आइसोनियाज़िड (isoniazid) एवं रिफैम्पिसिन (rifampicin) पर प्रतिक्रिया नहीं करता है। MDR-TB का उपचार बेडाक्विलिन (Bedaquiline) जैसी दूसरी पंक्ति की दवाओं के उपयोग से संभव है।
- व्यापक दवा प्रतिरोधी तपेदिक (Extensively drug-resistant TB- XDR-TB) MDR-TB का एक अधिक गंभीर रूप है जो ऐसे जीवाणु के कारण उत्पन्न होता है जो सबसे प्रभावी दूसरी पंक्ति की टीबी-रोधी दवाओं पर भी प्रतिक्रिया नहीं करता है, जिससे प्रायः रोगियों के पास किसी अन्य उपचार का विकल्प नहीं बचता।
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