दाहा नदी सीवान की जीवन रेखा है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
यह दाहा नदी है। सीवान शहर के बीच से गुजर रही है। इस नदी का एक नाम बाणेश्वरी भी है। कहते हैं भगवान राम अपने भाइयों के साथ अपनी अपनी दुल्हनों को लेकर जब जनकपुर से अयोध्या जा रहे थे तो यहां सीता माता को प्यास लग गई। तब लक्ष्मण ने अपने बाण से धरती से पानी निकाल दिया और यह छोटी सी नदी फूट पड़ी। इसलिए इसका नाम बाणेश्वरी पड़ गया।
वह जगह जो इस नदी का उद्गम है, गोपालगंज जिले के सासामुसा में है, वहां एक कुएं जैसी संरचना से यह नदी निकलती है और सीवान के पांच प्रखंडों से गुजरती हुई, छपरा के फुलवरिया के पास उसी सरयू नदी में समा जाती है जो सरयू राम की नगरी कही जाने वाली अयोध्या में बहती है।
इस नदी की धार्मिक महत्ता की यह कहानी तो है ही, नदी के किनारे बनी संरचनाओं को देखिए। जाहिर है इसके किनारे छठ महापर्व भी धूम धाम और पूरी स्वच्छता से मनाया जाता होगा। कहा जाता है कि इस इलाके के श्रद्धालु हर महीने पूर्णिमा और अमावस्या को भी यहां जल लेने आते हैं। मगर इतनी पावन नदी की क्या हालत है यह जरा देख लीजिए।
लोग बताते हैं कि अपने पूरे बहाव में शायद ही कहीं ऐसा होगा जो यह नदी स्वच्छ होगी। हर जगह लोगों ने इसे कचरे का डंपिंग यार्ड बना रखा है। फिर चाहे गांव हो या शहर। इसके उद्गम के पास ही सासामुसा चीनी मिल अपने वेस्ट को इसमें गिराना शुरू कर देता है। नदी को दूषित करने की यह सामूहिक परंपरा ऐसी है कि हर कोई इसको लेकर आंखें मूंदे रहता है।
कुछ अभियान जैसा चलता है कि इसे गंदगी और अतिक्रमण से मुक्त कराया जाए मगर वह सब नक्कारखाने में तूती की आवाज सरीखा होता है।
यह नदी सिर्फ धार्मिक महत्व की नहीं है। इस इलाके की जीवन रेखा भी मानी जाती है। चालीस पचास साल पहले तक इस बरसाती नदी के पानी पर सीवान शहर और न जाने कितने गांव निर्भर होने। पीने, नहाने और सिंचाई के लिए। मगर जब हमने धरती के भीतर से पानी खींचने की कला सीख ली तो यह नदी हमारे लिए बेमकसद हो गई। हमने इसे मरने छोड़ दिया।
अब आगे क्या कोई बड़ा अभियान चलेगा तो इस नदी को बचा ले या यह पूरी तरह खत्म होकर शहरों के लिए बसाहट की जमीन और गांवों के लिए खेत में बदल जायेगी, कहना मुश्किल है।
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