भाजपा ने कच्चातिवु को लेकर विवाद खड़ा किया- पी चिदंबरम

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने मंगलवार को कच्चातिवु द्वीप मुद्दे को लेकर भाजपा की तीखी आलोचना की और आरोप लगाया कि भाजपा ने इसे लेकर विवाद खड़ा किया है। बता दें कि इन दिनों कच्चातिवु का मामला गर्माता जा रहा है। यह द्वीप 1974 में श्रीलंका को सौंप दिया गया था। पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम ने एक साक्षात्कार में कहा, “प्रधानमंत्री नौ साल तक चुप थे। अचानक चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से एक आरटीआई दाखिल करने को कहा। यह एक मनगढ़ंत विवाद है।”

प्रधानमंत्री श्रीलंकाई तमिलों के साथ अन्याय कर रहे

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्रीलंकाई तमिलों के साथ अन्याय कर रहे हैं। कच्चातिवु समझौते पर हस्ताक्षर के बाद लगभग छह लाख तमिलों को भारत वापस भेजा गया था और वे यहां शांति से रह रहे हैं। जबकि श्रीलंका में करीब 25 लाख श्रीलंकाई तमिल हैं और अभी भी दस लाख भारतीय तमिल रहते हैं। उनके हित सर्वोपरी हैं।चिदंबरम ने कहा कि अगर इस अनावश्यक विवाद के चलते श्रीलंका की सरकार और वहां रहने वाले तमिलों के बीच टकराव होता है तो इस समुदाय के लोगों को नुकसान पहुंच सकता है।

अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी एक रिपोर्ट में श्रीलंका और भारत के पूर्व राजनयिकों के हवाले से लिखा है कि 1970 के दशक में इंदिरा सरकार द्वारा यह समझौता सद्भावना में किया गया था. जिसके तहत दोनों देश ने कुछ पाया और कुछ खोया. श्रीलंका के एक पूर्व डिप्लोमैट का कहना है कि दोनों देशों ने समझौते पर बातचीत करते हुए अपने-अपने रणनीतिक द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा था.

भारत में श्रीलंका के डिप्लोमैट रहे एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि यह समझौता उस समय की वास्तविकताओं के आधार पर हुआ एक लेन-देन था.  इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा तय करना था. दोनों देश विवादों को सुलझाते हुए आगे बढ़ना चाहते थे. यह समझौता अच्छी मंशा के साथ किया गया था.

कोई भी समझौता एकतरफा नहीं होताः पूर्व भारतीय राजदूत

श्रीलंका में भारत के राजदूत रहे अशोक कांथा का कहना है कि भारत वाड्ज बैंक (तट) और उसके समृद्ध संसाधनों तक पहुंच पाने में सक्षम था. 1974 के ऐतिहासिक जल सीमा समझौते के तहत भारत ने कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को दिया. इस संधि से श्रीलंका के साथ समुद्री सीमा के साथ-साथ अन्य विवादों को सुलझाने का मार्ग खुला. 1976 का समझौता भी इसी का हिस्सा है जिसके तहत वाड्ज बैंक और उसके समृद्ध संसाधनों पर भारत ने संप्रभुता हासिल की.

उन्होंने आगे कहा, “इस तरह की वार्ताओं में शामिल कोई भी राजनयिक यह कह सकता है कि कोई भी समझौता एकतरफा नहीं होता है. आपको सब कुछ नहीं मिलेगा. समझौते के तहत कुछ मिलता है तो कुछ खोना भी पड़ता है. लेकिन श्रीलंका के साथ विवादित समुद्री सीमा मुद्दे के समाधान ने दोनों देशों के बीच रिश्तों को और मजबूती प्रदान की. मछली पकड़ने से लेकर हाइड्रोकार्बन संसाधनों और अन्य अधिकारों में स्पष्टता आई. इसलिए 1974 और 1976 में श्रीलंका के साथ हुए समझौते पर भारत सरकार की स्थिति शुरुआत से ही वही रही है. किसी भी सरकार ने उस समझौते पर सवाल उठाने या उस पर फिर से चर्चा करने की कोशिश नहीं की. जिससे हमें ही फायदा हुआ है.”

अशोक कांथा ने आगे कहा कि 1976 में हुए भारत-श्रीलंका समझौते ने वाड्ज बैंक को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (exclusive economic zone) के रूप में मान्यता दी. जिससे वाड्ज बैंक के संपूर्ण क्षेत्र और उसके संसाधनों पर भारत को संप्रभु अधिकार मिल गया.

वाड्ज बैंक एक संसाधन-संपन्न पठार

तमिलनाडु के कन्याकुमारी के दक्षिण में स्थित वाड्ज बैंक एक संसाधन-संपन्न समुद्री पठार है. 1976 में हुए समझौते के तहत शुरुआत में श्रीलंकाई जहाजों और मछुआरों को वाड्ज बैंक में मछली पकड़ने की अनुमति नहीं थी. लेकिन गुडविल जेस्चर के तहत सरकार ने भारत द्वारा जारी लाइसेंस प्राप्त मछुआरों को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना से तीन साल की अवधि के लिए क्षेत्र में मछली पकड़ने की अनुमति दी.

विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना के तीन साल बाद श्रीलंकाई जहाजों और मछुआरों ने वाड्ज बैंक में मछली पकड़ना बंद कर दिया. इस समझौते को आम तौर पर भारत के लिए अनुकूल माना जाता है. क्योंकि इससे भारत को जैव विविधता से समृद्ध एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र पर संप्रभु अधिकार मिल गया. वाड्ज बैंक को भारत के सबसे समृद्ध मत्स्य संसाधनों में से एक माना जाता है.

एक अन्य पूर्व भारतीय राजनयिक का कहना है कि 1976 में हस्ताक्षरित यह समझौता दोनों देशों द्वारा जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया एक संप्रभु निर्णय है. जहां तक मछुआरे पकड़े जाने और हिरासत में लिए जाने का मामला है, यह मामला कच्चातिवु द्वीप के पास उतना नहीं होता है, जितना कहीं और होता है. इसलिए दोनों मुद्दों को एक नजरिए से देखना सही नहीं है.

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