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भारत और चीन के बीच सीमा विवाद निपटान तंत्र क्या है? - श्रीनारद मीडिया

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद निपटान तंत्र क्या है?

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद निपटान तंत्र क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

चीन ने अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों का नाम बदल दिया है, जिसे भारत ने यह कहते हुए खारिज़ कर दिया कि “आविष्कृत” नाम निर्दिष्ट करने से इस वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आएगा कि राज्य भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा।

  • चीनी नागरिक मामलों के मंत्रालय ने ज़ंगनान (अरुणाचल प्रदेश का चीनी नाम) के मानकीकृत भौगोलिक नामों की चौथी सूची जारी की, जिस पर बीजिंग दक्षिण तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता है।
  • अप्रैल 2023 में भी जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 11 स्थानों की तीसरी सूची जारी की थी तो भारत ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत-चीन सीमा विवाद 3,488 किलोमीटर की साझा सीमा पर लंबे समय से चले आ रहे और जटिल क्षेत्रीय विवादों को संदर्भित करता है।
    • विवाद के मुख्य क्षेत्र पश्चिमी क्षेत्र में स्थित अक्साई चिन और पूर्वी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश हैं।
      • अक्साई चिन: चीन, अक्साई चिन को अपने शिनजियांग क्षेत्र के हिस्से के रूप में दावा करता है, जबकि भारत इसे अपने केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा मानता है। यह क्षेत्र चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के निकट होने और सैन्य मार्ग के रूप में इसकी क्षमता के कारण रणनीतिक महत्त्व रखता है।
        • अरुणाचल प्रदेश: चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश राज्य पर दावा करता है और इसे “दक्षिण तिब्बत” कहता है। भारत इस क्षेत्र को पूर्वोत्तर राज्य के रूप में प्रशासित करता है तथा अपने क्षेत्र का अभिन्न अंग मानता है।

  • कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं: भारत और चीन के बीच सीमा स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं है और कुछ हिस्सों पर कोई पारस्परिक रूप से सहमत वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) नहीं है। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा अस्तित्व में आई।
    • भारत-चीन सीमा को तीन सेक्टरों में बाँटा गया है:
      • पश्चिमी क्षेत्र: लद्दाख
      • मध्य क्षेत्र: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
      • पूर्वी क्षेत्र: अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम

  • सैन्य गतिरोध:
    • वर्ष 1962 का भारत-चीन युद्ध: सीमा विवाद के कारण कई सैन्य गतिरोध और झड़पें हुईं, जिनमें 1962 का भारत-चीन युद्ध भी शामिल है। दोनों देशों ने सीमा पर शांति बनाए रखने के उद्देश्य से विभिन्न समझौतों और प्रोटोकॉल के साथ तनाव को प्रबंधित करने के प्रयास किये हैं।
    • हालिया झड़पें: सीमा के दोनों ओर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वर्ष 2013 के बाद से गंभीर सैन्य टकराव की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
      • संघर्ष के सबसे गंभीर हालिया प्रकरण वर्ष 2017 में डोकलाम क्षेत्र में, वर्ष 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में और वर्ष 2022 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में थे।

चीन के आक्रामक कदमों पर भारत की प्रतिक्रिया क्या है?

  • वैश्विक रणनीतिक गठबंधन: भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिये समान विचारधारा वाले देशों के साथ सक्रिय रूप से संलग्न हुआ है।
    • क्वाड (QUAD): यह चार लोकतांत्रिक देशों—भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान का समूह है। सभी चार राष्ट्र लोकतांत्रिक राष्ट्र होने का एक समान आधार रखते हैं और निर्बाध समुद्री व्यापार एवं सुरक्षा के साझा हित का समर्थन करते हैं।
    • I2U2: यह भारत, इज़राइल, अमेरिका और UAE का एक नया समूह है। इन देशों के साथ गठबंधन के निर्माण से क्षेत्र में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ हुई है।
    • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC)चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) के वैकल्पिक व्यापार और कनेक्टिविटी गलियारे के रूप में लॉन्च किये गए IMEC का लक्ष्य अरब सागर तथा मध्य-पूर्व में भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करना है।
    • अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC)भारत, ईरान और रूस के बीच एक समझौते के माध्यम से स्थापित INSTC 7200 किलोमीटर के व्यापक मल्टी-मोड परिवहन नेटवर्क का सृजन करता है जो हिंद महासागर, फारस की खाड़ी व कैस्पियन सागर को आपस में जोड़ता है।
      • ईरान में स्थित चाहबहार बंदरगाह इसका प्रमुख नोड है जो अरब सागर और होर्मुज जलडमरूमध्य में चीन की गतिविधियों पर रणनीतिक रूप से नज़र रखता है तथा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को ग्वादर बंदरगाह के रूप में एक विकल्प प्रदान करता है
  • भारत की ‘नेकलेस ऑफ डायमंड’ रणनीति:
    • चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति के जवाब में भारत ने ‘नेकलेस ऑफ डायमंड’ (Necklace of Diamonds) रणनीति अपनाई है, जहाँ अपनी नौसैनिक उपस्थिति को बढ़ाकर, सैन्य अड्डों का विस्तार कर और क्षेत्रीय देशों के साथ राजनयिक संबंधों को मज़बूत कर चीन को घेरने पर बल दिया गया है।
      • इस रणनीति का उद्देश्य हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्रों में चीन के सैन्य नेटवर्क एवं प्रभाव का मुक़ाबला करना है।
  • सीमाओं पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ:
    • भारत-चीन सीमा पर अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिये भारत सक्रिय रूप से अपनी सीमा पर बुनियादी ढाँचे को बढ़ा रहा है।
    • सीमा-सड़क संगठन (BRO) ने भारत-चीन सीमा पर 2,941 करोड़ रुपए की लागत वाली 90 बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ पूर्ण की हैं।
      • सितंबर 2023 तक, इनमें से 36 परियोजनाएँ अरुणाचल प्रदेश में, 26 लद्दाख में तथा 11 जम्मू और कश्मीर में हैं।
  • पड़ोसियों के साथ सहयोग:
    • भारत चीनी प्रभाव को कम करने के लिये पड़ोसी देशों के साथ क्षेत्रीय साझेदारी में सक्रिय रूप से शामिल हो रहा है।
      • हाल ही में भारत ने भूटान में गेलेफू माइंडफुलनेस शहर के विकास का समर्थन किया है।
    • इसके अतिरिक्त, भारत के विदेश मंत्री की काठमांडू यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित हालिया बिजली समझौते के माध्यम से भारत ने नेपाल के साथ अपने संबंधों को मज़बूत किया है।
      • वर्ष 2024 में दोनों देशों ने अगले 10 वर्षों के लिये 10,000 मेगावाट बिजली के निर्यात के लिये एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये।
      • उन्होंने तीन सीमा पार ट्रांसमिशन लाइनों का भी उद्घाटन किया, जिसमें 132 kV रक्सौल-परवानीपुर, 132 kV कुशहा-कटैया तथा न्यू नौतनवा-मैनहिया लाइनें शामिल हैं।
    • ये प्रयास क्षेत्रीय स्थिरता को मज़बूत करने के साथ इस क्षेत्र में चीनी प्रभाव को कम करने के लिये पड़ोसी देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने हेतु भारत की रणनीति को रेखांकित करते हैं।

भारत-चीन सीमा विवाद सुलझाने के पूर्व प्रयास क्या रहे हैं?

  • वर्ष 1914 का शिमला समझौता
    • तिब्बत तथा उत्तर-पूर्व भारत के बीच सीमा का सीमांकन करने के लिये वर्ष 1914 में शिमला में तीनों अर्थात तिब्बत, चीन एवं ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था।
    • चर्चा के बाद, समझौते पर ब्रिटिश भारत एवं तिब्बत द्वारा हस्ताक्षर किये गए किंतु चीनी अधिकारियों द्वारा नहीं। वर्तमान में भारत इस समझौते को मान्यता देता है, लेकिन चीन ने शिमला समझौते और मैकमोहन रेखा दोनों को अस्वीकार कर दिया।
  • वर्ष 1954 का पंचशील समझौता
    • पंचशील सिद्धांत ने स्पष्ट रूप से ‘एक दूसरे की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने’ का संकेत दिया।
    • चीन ने प्रारंभ में पंचशील सिद्धांतों को स्वीकार किया और इस समझौते द्वारा दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के लिये आधार के रूप में कार्य किया। हालाँकि समय के साथ-साथ पंचशील समझौते को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान।
  • शांति एवं स्थिरता बनाए रखने पर समझौता:
    • इस पर वर्ष 1993 में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें बल प्रयोग को त्यागने, LAC की मान्यता एवं वार्ता के माध्यम से सीमा मुद्दे के समाधान का आह्वान किया गया था।
    • समझौते ने सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिरता एवं सुरक्षा के लिये आधार तैयार किया, लेकिन तनाव कायम रहा।
    • चीन ने इस समझौते को स्वीकार कर लिया, किंतु बदलती भू-राजनीतिक गतिशीलता के साथ ही कभी-कभी सीमा तनाव के कारण समय के साथ उनकी प्रभावशीलता बदलती रही।
  • LAC के साथ सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली के उपायों पर समझौता:
    • इस पर वर्ष 1996 में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें LAC पर चल रही असहमति को हल करने के लिये गैर-आक्रामकता, बड़े सैन्य आंदोलनों की पूर्व सूचना तथा मानचित्रों के आदान-प्रदान की प्रतिज्ञा दी गई थी।
    • दोनों देशों ने आकस्मिक तनाव को रोकने के साथ ही दोनों देशों के बीच संचार में सुधार लाने के उद्देश्य से इस समझौते पर सहमति व्यक्त की।
  • सीमा-सुरक्षा सहयोग समझौता (BDCA):
    • डेपसांग घाटी घटना के बाद वर्ष 2013 में इस पर हस्ताक्षर किये गए थे। इसका उद्देश्य देपसांग घाटी में हुई झड़प जैसी घटनाओं को रोकना एवं आपसी समझ को बढ़ाना था।
    • BDCA के बावजूद, भारत-चीन सीमा पर तनाव बना हुआ है और साथ ही ऐसी घटनाएँ भी होती रहती हैं। हालाँकि, यह समझौता सीमा-संबंधी मुद्दों के प्रबंधन के साथ-साथ क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण रहा है।
  • भारत को भारतीय बलों की गतिशीलता एवं प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये सड़कों, पुलों, हवाई पट्टियों तथा संचार नेटवर्क सहित सीमा पर बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • सीमा पर घटनाओं की प्रभावी ढंग से निगरानी करने तथा प्रतिक्रिया देने के लिये उन्नत उपकरणों, प्रौद्योगिकी एवं निगरानी क्षमताओं के साथ सशस्त्र बलों को आधुनिक बनाने में भी निवेश करने की आवश्यकता है।
  • भारत के लिये समान विचारधारा वाले देशों एवं क्षेत्रीय संगठनों के साथ गठबंधन मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है जो क्षेत्रीय विवादों में चीन की मुखरता के बारे में चिंता साझा करते हैं।
    • क्षेत्रीय मुद्दों पर समन्वित प्रतिक्रियाओं, संयुक्त सैन्य अभ्यास तथा सूचना आदान-प्रदान में भाग लेना।
  • भारत, चीन पर निर्भरता कम करने एवं आर्थिक लचीलापन बढ़ाने हेतु आर्थिक संबंधों में विविधता लाने के लिये और अधिक प्रयास करेगा।

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