धर्म के आधार पर आरक्षण का क्या तर्क है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वर्ष 2004 में आंध्रप्रदेश में मुसलमानों को प्रदत्त 5% आरक्षण का मुद्दा पुनः चर्चा में है, जिससे धर्म-आधारित आरक्षण से संबंधित बहस दोबारा शुरू हो गई है।
आंध्रप्रदेश में मुसलमानों को आरक्षण की पृष्ठभूमि:
- परिचय:
- आंध्रप्रदेश में, जहाँ मुसलमानों की आबादी लगभग 9.5% है, जबकि कुछ मुस्लिम समूह पूर्व से ही राज्य ओ.बी.सी. अनुसूची में शामिल हैं, जिसमें उन्हें 7% से 10% तक का आरक्षण कोटा प्राप्त है।
- हालाँकि, कर्नाटक और केरल के मॉडल का अनुसरण करते हुए सभी मुसलमानों को अन्य पिछडा वर्ग की श्रेणी में शामिल करने पर ज़ोर दिया गया है।
- आंध्रप्रदेश में, जहाँ मुसलमानों की आबादी लगभग 9.5% है, जबकि कुछ मुस्लिम समूह पूर्व से ही राज्य ओ.बी.सी. अनुसूची में शामिल हैं, जिसमें उन्हें 7% से 10% तक का आरक्षण कोटा प्राप्त है।
- वर्ष 2004 में आरक्षण:
- जून, 2004 में सरकार ने OBC सूची में शामिल करने के लिये राज्य में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति की जाँच की, जिसके परिणामस्वरूप अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत 5% आरक्षण दिया गया।
- हालाँकि, आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संदर्भित किये बिना क्रीमी लेयर को आरक्षण की श्रेणी से बाहर न करने के लिये लागू किये जाने वाले आरक्षण कोटा को रद्द कर दिया था।
- न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम समुदाय को एक समान समूह (Homogenous Group) नहीं माना जा सकता है।
- न्यायालय के समक्ष प्रमुख प्रश्नों में से एक यह था कि क्या एक समूह के रूप में मुसलमान संवैधानिक ढाँचे के भीतर सकारात्मक कार्रवाई के हकदार हैं, जिस पर न्यायालय ने ने सकारात्मक कार्रवाई के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए कहा कि इस तरह के आरक्षण धर्मनिरपेक्षताका उल्लंघन नहीं करते हैं।
- वर्ष 2005 में आरक्षण:
- पिछड़ा वर्ग आयोग ने समस्त मुस्लिम समुदाय को सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा बताते हुए आरक्षण देने की सिफारिश की।
- राज्य सरकार ने फिर से मुसलमानों को 5% कोटा देने वाला एक अध्यादेश पेश किया, जिसे बाद में कानून से बदल दिया गया।
- उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए कि आयोग ने यह निष्कर्ष निकालने के लिये वस्तुनिष्ठ मानदंडों (एम. नागराज बनाम भारत संघ, 2006) पर भरोसा नहीं किया कि एक समूह के रूप में मुस्लिम आंध्र प्रदेश में पिछड़े थे, एक बार फिर कोटा को रद्द कर दिया गया।
- इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने वर्ष 2010 में मामले की सुनवाई होने तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया।
- वर्तमान स्थिति:
- सर्वोच्च न्यायालय में अंतिम सुनवाई वर्ष 2022 के लिये निर्धारित की गई थी। हालाँकि, आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) कोटा मुद्दे पर निर्णय होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करने का निर्णय किया।
- EWS कोटा नवंबर, 2022 में मंज़ूरी दे दी गई थी, लेकिन AP कोटा मुद्दे पर अभी तक सुनवाई नहीं हुई है।
- आंध्र के आरक्षण मॉडल से जुड़े मुद्दे:
- मुसलमानों को एक समरूप समूह मानना संविधान की मूल संरचना में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
- यह केवल धर्म के आधार पर आरक्षण देने पर संवैधानिक निषेध का भी उल्लंघन करता है (अनुच्छेद 15(1) और 16(2))।
- उच्च न्यायालय ने पाया कि आंध्र प्रदेश की आरक्षण सीमा (46%) अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत प्रदत्त कोटा के अनुरूप है और इसमें मुसलमानों के लिये 5% आरक्षण देने से 50% की सीमा का उल्लंघन होता है, इस उल्लंघन के लिये बाध्यकारी कारणों की कमी पर प्रश्न उठाया।
अन्य राज्यों में समान धर्म आधारित आरक्षण:
- केरल: अपने 30% OBC कोटा के भीतर 8% मुस्लिम कोटा प्रदान करता है।
- तमिलनाडु और बिहार: अपने OBC कोटे में मुस्लिम जाति समूहों को भी शामिल करते हैं।
- कर्नाटक: 32% OBC कोटा के अंतर्गत मुसलमानों के लिये 4% उप-कोटा निर्धारित था।
- राज्य सरकार ने वर्ष 2023 में इस उप-कोटा को वोक्कालिगा और लिंगायतों के बीच पुनर्वितरित किया।
- कर्नाटक का हालिया मुद्दा:
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कोटा के वर्गीकरण के संबंध में, विशेष रूप से श्रेणी II-B के तहत मुसलमानों के लिये “ब्लैंकेट रिज़र्वेशन” के मुद्दे को संबोधित करते हुए, कर्नाटक सरकार के मुख्य सचिव को समन किया है।
- वर्तमान स्थिति: कर्नाटक OBC वर्गीकरण की श्रेणी II-B के तहत मुसलमानों को वर्गीकृत करता है, इसके अलावा श्रेणी I में 17 और श्रेणी II-A में 19 मुस्लिम जातियाँ शामिल हैं।
- NCBC की चिंता:
- NCBC मुसलमानों के लिये एक पृथक श्रेणी की आवश्यकता पर प्रश्न उठाती है और उनके पिछड़े वर्गीकरण को उचित ठहराने वाली रिपोर्टों की वैधता पर संदेह करती है।
- NCBC का दावा है कि OBC कोटा के भीतर वर्गीकरण के कारण कर्नाटक में मुसलमानों को स्नातकोत्तर चिकित्सा प्रवेश में विशेष प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है।
- NCBC को चिंता है कि सभी मुसलमानों को स्थानीय निकाय चुनावों में किसी भी OBC या सामान्य श्रेणी की सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति देने से अन्य योग्य OBC समुदाय अवसरों से वंचित हो सकते हैं।
- कर्नाटक सरकार का तर्क:
- कर्नाटक सरकार ने विभिन्न राज्य आयोगों द्वारा अनुशंसित मुसलमानों को न तो जाति और न ही धर्म, बल्कि पिछड़ा वर्ग मानते हुए श्रेणी II-बी के तहत वर्गीकृत को उचित ठहराया।
आरक्षण से संबंधित विभिन्न कानूनी प्रावधान क्या हैं?
- संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान का अनुच्छेद 16(4) “पिछड़े वर्ग के नागरिकों” के लिये आरक्षण की अनुमति देता है। राज्यों को यह निर्धारित करने का विवेक है कि किन समुदायों को पिछड़े वर्गों के रूप में रखा जा सकता है।
- अनुच्छेद 15 के तहत शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिये अर्हता प्राप्त करने के लिये, एक समूह को पहले अपना सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन प्रदर्शित करना होगा तथा अनुच्छेद 16(4) के तहत सार्वजनिक रोज़गार में आरक्षण के लिये अधिकारियों को समूह के पिछड़ेपन और सार्वजानिक रोज़गार में इसके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दोनों को सुनिश्चित करना होगा।
- संविधान का अनुच्छेद 16(4) “पिछड़े वर्ग के नागरिकों” के लिये आरक्षण की अनुमति देता है। राज्यों को यह निर्धारित करने का विवेक है कि किन समुदायों को पिछड़े वर्गों के रूप में रखा जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्णय:
- चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1951):
- शैक्षिक संस्थानों में केवल जाति के आधार पर आरक्षण को समाप्त कर दिया।
- संविधान के प्रथम संशोधन का नेतृत्त्व किया।
- इंद्रा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ, 1992:
- आरक्षण पर परिभाषित सीमाएँ:
- क्रीमी लेयर का बहिष्कार
- 50% कोटा सीमा
- पदोन्नति में कोई आरक्षण नहीं (एससी/एसटी को छोड़कर)।
- आरक्षण पर परिभाषित सीमाएँ:
- एम. नागराज बनाम भारत संघ मामला, 2006:
- अनुच्छेद 16 को बरकरार रखा (4A पदोन्नति में एससी/एसटी के लिये आरक्षण की अनुमति देता है)
- ऐसी नीतियों के लिये 3 शर्तें स्थापित की गईं:
- सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ापन
- अपर्याप्त प्रतिनिधित्व
- दक्षता को बनाए रखना
- जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामला, 2018:
- SC एवं ST के लिये पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति
- राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पिछड़ेपन पर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है।
- जनहित अभियान बनाम भारत संघ, 2022:
- सर्वोच्च न्यायालय ने 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा है जो पूरे भारत में सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में अगड़ी जातियों के बीच आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (Economically Weaker Sections – EWS) के लिये 10% आरक्षण प्रदान करता है।
- चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1951):
भारत में धर्म-आधारित आरक्षण से संबंधित तर्क क्या हैं?
- भारत में धर्म-आधारित आरक्षण के पक्ष में तर्क:
- सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन: सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मुसलमान शिक्षा, रोज़गार और आय जैसे सामाजिक-आर्थिक असमानता के मामले में अन्य समुदायों से पीछे हैं।
- आरक्षण इस अंतर को कम करने में सहायता कर सकता है।
- संवैधानिक आदेश: भारतीय संविधान धार्मिक और सांस्कृतिक संप्रदाय के बावजूद सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये सकारात्मक कार्रवाई का प्रावधान करता है।
- पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना: आरक्षण रोज़गार, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में कम प्रतिनिधित्व वाले धार्मिक समूहों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकता है।
- सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन: सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मुसलमान शिक्षा, रोज़गार और आय जैसे सामाजिक-आर्थिक असमानता के मामले में अन्य समुदायों से पीछे हैं।
- भारत में धर्म-आधारित आरक्षण के विरुद्ध तर्क:
- धर्मनिरपेक्षता: आलोचकों का तर्क है कि धर्म के आधार पर आरक्षण प्रदान करना भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विरुद्ध है, जो राज्य द्वारा सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की वकालत करता है।
- राष्ट्रीय एकता को कमज़ोर करना: धर्म-आधारित आरक्षण राष्ट्रीय एकता को कमज़ोर कर सकता है क्योंकि इससे विभिन्न समुदायों के बीच वैचारिक विभाजन हो सकता है।
- आर्थिक मानदंड: आरक्षण केवल धर्म के स्थान पर आर्थिक मानदंडों पर आधारित होना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाभ उन लोगों तक पहुँचे जो वास्तव में आर्थिक रूप से वंचित हैं, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
- प्रशासनिक चुनौतियाँ: धर्म के आधार पर आरक्षण लागू करने से प्रशासनिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे लाभार्थियों की पहचान के लिये मानदंड निर्धारित करना एवं प्रणाली के दुरुपयोग को रोकना।
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