सीवान में लोकसभा चुनाव दिलचस्प होता जा रहा है, कैसे?

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राजद का एम एवं वाई समीकरण सीवान में टूट गया है

वोट सिर्फ दो ध्रुवों में विभाजित है- एक मोदी के समर्थन, दूसरा मोदी का विरोध 

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान लोकसभा में एक निर्दलीय प्रत्याशी को विजयी बनाने के लिए एक खास वर्ग के लोग क्यों जुटे हुए हैं? आखिर क्या है उनकी सोच ?

लोकतंत्र का महापर्व माना जाने वाला लोकसभा चुनाव अपने पूरे उफान पर है। सीवान लोकसभा के लिए आगामी 25 मई को चुनाव होना है, जिसके लिए चुनाव प्रचार चरम पर है। सभी प्रत्याशियों की स्थिति स्पष्ट हो गई है। सभी प्रत्याशियों के समर्थक अपने अपने तर्कों के आधार पर अपने प्रत्याशी की जीत होना सुनिश्चित बता रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशी भी ताल ठोक रहे हैं।लेकिन सीवान की जनता मौन होकर सियासी तमाशों को देख रही है। सबसे दिलचस्प चुनाव प्रचार निर्दलीय प्रत्याशी हिना शहाब का देखा जा रहा है। जिनके संदर्भ में कई आशंकाएं भी लोग दबे जुबान जाहिर करते दिखाई दे रहे है। विजयश्री किसे मिलेगी यह तो सीवान की जनता ही जानती है।

कुछ विशेषज्ञ बता रहे हैं कि सीवान के पूर्व सांसद डॉ. मोहमद शहाबुद्दीन के निधन हो जाने से जिन लोगों का रसूख एवं दबदबा अपने-अपने गांव, क्षेत्र व स्थानीय स्तर पर था, वह समाप्त हो गया था। ये लोग अब एक ऐसे शहाबुद्दीन की पुरजोर तलाश कर रहे हैं। उनकी यह खोज शहाबुद्दीन के पुत्र पर आकर रूक जाती है। वे इन्हें उनका उत्तराधिकारी देख रहे हैं, जिसको स्थापित करके साहब राज के पुराने दौर को कायम करते हुए में अपना वर्चस्व, भय का साम्राज्य पुन: स्थापित किया जा सकता है। दहशत की बयार बहाई जा सकती है।

यह शक्तियां समाज के विविध जातियों और क्षेत्रों में मौजूद हैं। जिनकी सिसकियाँ शहाबुद्दीन के जाने के बाद आज भी रुकी नहीं है, क्योंकि तरह-तरह के दोहन और अपराध के बल पर ही इनका भविष्य टिका हुआ था और रोजी-रोटी चल रही थी। बहुतायत में अगड़ी जातियों में इनकी संख्या अधिक है, जो तरह-तरह के प्रपंच रच कर मतदाताओं को भ्रमित करने एवं विचलित करने में जुटी हुई है। यही कारण है कि आप इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थन में इस तरह के दृश्य देख रहे है।

जिस प्रत्याशी को पिछले तीन चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है, फिर इस बार वह कौन सी ताकत है जो इन्हें दोबारा चुनाव लड़ने की ऊर्जा दे रही है? यह एक बड़ा सवाल जरूर बन जाता है।

देखिए विगत तीन चुनाव से आमने-सामने की टक्कर में राष्ट्रीय जनता जल जैसे मजबूत सामाजिक आधार वाले एमवाई समीकरण के साथ लड़कर भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को हरा नहीं पाया, उसे आज निर्दलीय पहचान लेकर मैदान में उतरने पर आप जितने की उम्मीद कैसे कर सकते है? यह सवाल भी उठ रहा है।

जबकि सभी को पता है कि वोट सिर्फ दो ध्रुवों में विभाजित है-
एक मोदी के समर्थन का वोट है,
दूसरा मोदी के विरोध का वोट है।

समर्थन का वोट एकीकृत है। वहां कोई अंतर विरोध एवं विभाजन दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि मोदी विरोधी वोट आज की परिस्थिति में कई हिस्सों में बटां हुआ है।

राजद का एम एवं वाई समीकरण सीवान में टूट गया है, दोनों एक दूसरे के आमने-सामने खड़े है, दोनों एक दूसरे पर घात-प्रतिघात करने को तत्पर है। दूसरी तरफ महागठबंधन के प्रत्याशी को अस्ताचलगामी सूर्य की तरह देखा जा रहा है। वही इस कुनबे से एक नया नेतृत्व पूरे जोश और उमंग के साथ उदित हो रहा है। यहां युवा पीढ़ी पूरे आशा भरी निगाह से उसकी ओर देख रही है, और सबसे पते की बात यह है कि राजद के लिए पीढ़ी का अंतराल एक नकारात्मक संदेश दे रहा है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार की सामाजिक पृष्ठभूमि माले की रही है। यह इस चुनाव में कितना अपना प्रभाव डाल रहा है?अर्थात राजग प्रत्याशी के माले की पृष्ठभूमि के होने का इस चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

शहाबुद्दीन और माले के बीच होने वाला संघर्ष फिर से इसलिए तरोताजा नहीं होगा कि राजग की प्रत्याशी ढाई दशक पहले माले से अलग अपनी राजनीतिक पहचान बनाने में कामयाब रहा है। वह दौर आज की पीढ़ी के लिए एक इतिहास बन चुका है। ना वह राजनीतिक सामाजिक परिस्थितियां हैं और ना जनमानस की वह मनोदशा है। विकास की प्रक्रिया में ना कोई आज सामंत है, ना कोई सर्वहारा है, ना कोई बुजुर्वा है।

आज के परिप्रेक्ष्य में माले की पृष्ठभूमि पर सोचना बेमानी है। अलबत्ता राजग प्रत्याशी को निम्नजातिय संस्तरण में होने का व्यापक जातीय लाभ इस चुनाव में मिलता दिखाई दे रहा है। जातीय गोलबंदी के मामले में वह सभी घटकों पर भारी पड़ेगा क्योंकि समाज के निचले तबको को पहली बार राजग प्रत्याशी यह विश्वास दिलाने में कामयाब होता दिख रहा है कि वास्तव में मैं ही आपके सबसे निकट हूं। इसलिए अत्यंत पिछड़ी जातियां बहुत सहजता से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अमब्रेला (छत्रछाया) में खड़ी होती दिख रही है। अगर राजग की ओर से अगड़ा प्रत्याशी आता तो ऐसा संभव नहीं हो पता।

क्या सीवान में शहाबुद्दीन, अगड़े- पिछड़े, माले- राजद के शोर में विकास, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे लुप्त हो गए हैं क्योंकि तीन चीनी मील, एक सूता फैक्ट्री वाला यह जिला उद्योग धंधा विहीन हो गया है।

देखिए इस चुनाव में इन सभी मुद्दों का कोई मतलब नहीं है। यह चुनाव का मुद्दा नहीं है। यह चुनाव राष्ट्र स्तर का है। इन स्थानीय मुद्दों के लिए पंचायत चुनाव एवं विधानसभा के चुनाव है।
राष्ट्र की बढ़ोतरी के लिए, भारत को विकसित करने के लिए यह चुनाव हो रहा है। जिसकी प्रत्याशी सीवान में विजयलक्ष्मी देवी है, इन्हें पूरा जनमानस विजय बनाकर नरेंद्र मोदी जी के हाथों को मजबूत करने के लिए दिल्ली भेजेगा।

सीवान लोकसभा क्षेत्र में निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन करके स्वर्ण समाज बहुत बड़ी गलती की ओर बढ़ रहा है। इसका परिणाम उसे आगामी विधानसभा में भुगतना पड़ेगा क्योंकि पहली बार किसी अत्यंत पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी को अवसर मिला है। इस मौके पर अगड़े उनके साथ खड़े नहीं होंगे तो आगामी विधानसभा चुनाव में अगड़े को पिछड़ों से मदद की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। एनडीए का कुनबा दोनों के संबंध में से बना है, न की अगड़े की झंडाबदारी से।

सीवान में कई लोगों का यह कयास है कि मतदान के निकट आने पर सीवान राजद का समर्थन हिना शाहेब को मिल जाएगा। ऐसे में इस रणनीति का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

नेताओं के आपसी तालमेल से मतदाताओं का निर्णय नहीं बदलता है। कोई भी मतदाता किसी नेता का जागीर नहीं है जहां तक स्वजातीय मतदाताओं का प्रश्न है तो महागठबंधन की लड़ाई से बाहर होने की स्थिति में यह मतदाता एनडीए के तरफ जा सकते हैं लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी की ओर कतई नहीं जाएंगे। यह अनुमान लगाया जा सकता है।

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