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एक दौर ऐसा भी था जब साइकिल से प्रचार कर नेता जीत जाते थे चुनाव

एक दौर ऐसा भी था जब साइकिल से प्रचार कर नेता जीत जाते थे चुनाव

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* साइकिल से चुनाव प्रचार कर रामराज भगत ने जीता था विधानसभा चुनाव

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

सीवान। चुनाव चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, चुनाव लगातार महंगा होता जा रहा है। चुनावों में संसाधनों का लगातार महत्व बढ़ता जा रहा है। जनता यही चाहती भी है। धन बल से कमजोर प्रत्याशी को लेकर जनता कहती देखी गयी है कि ये नहीं जीतेंगे। हालांकि वोट की चोट से किसी को हराने-जीताने के पास जनता के पास ही है। यूं कहें कि लक्जरी गाड़ियों का लंबा काफिला और उसमें लकदक कपड़ों में बैठे नेता यानी स्टेट सिम्बल से जनता रिझने लगी है। यह बदलते दौर का मिजाज है।राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीति से सादगी का दौर खत्म होता जा रहा है। लेकिन एक दौर ऐसा भी था कि   सीमित संसाधनों में चुनाव लड़े और जीते जाते थे। चारपहिया व बाइक की बात कौन करे, नेता साइकिल से चुनाव प्रचार कर भी चुनाव जीते हैं। लेकिन आज वोटर का मन-मिजाज बदला -बदला सा है। जनता साधनसंपन्न नेता को पसंद करने लगी है।अब जनता भी तड़क-भड़क में विश्वास रखने लगी है।

नेता के बढ़िया होने का मानक बदल गया है। जहां पहले सादगी व अच्छे विचार की प्रधानता थी, आज नेता की गाड़ियों व उसके पहनावे को प्राथमिकता दी जाने लगी है। हालांकि लोगों ने सादगी और उत्तम विचारों को सराहा ही नहीं है,बल्कि वोट की ताकत से उन्हें विधानसभा में पहुंचा कर सादगी और उच्च विचारों का समर्थन किया है। बताया जाता है कि सीवान जिले के बड़हरिया प्रखंड के एक छोटे से गांव जगन्नाथपुर के रामराज भगत ने साइकिल से चुनाव प्रचार कर एक बार नहीं, दो बार बड़हरिया विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक बने थे।बड़हरिया प्रखंड के छोटे-से गांव जगन्नाथपुर के निवासी स्व रामराज भगत  साइकिल से चुनाव का प्रचार कर दो बार विधायक बने थे।

पहला विधानसभा चुनाव उन्होंने 1962 में सोशलिस्ट पार्टी बरगद छाप से जीता था तो दूसरा विधानसभा चुनाव उन्होंने 1967 में जनसंघ से दीपक छाप से जीता था। हालांकि उस दौर में संसाधनों का अभाव भी था। लेकिन सादगी व सद्विचारों के साथ कर्मठता से जनता प्रभावित रही है, रामराज भगत का विधायक बनना इस बात का परिचायक है। ऐसे तो रामराज भगत साइकिल से सालों भर विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में घुमते रहते थे और चुनाव आता था तो साइकिल के साथ ही क्षेत्र में रह जाते थे। जहां सांझ,वहीं बिहान। दिन भर क्षेत्र में घुमते रहे और रात में किसी के घर ठहर गये। जो मिला,खा लिया।फिर चुनाव यात्रा आगे बढ़ जाती थी। रामराज भगत की यही दिनचर्या थी।

 

सामाजिक चिंतक भगरासन यादव कहते हैं कि आज के डेट में चाहे विधानसभा का चुनाव हो या लोकसभा का चुनाव हो, विभिन्न दलों के नेता संसाधनों का भरपूर प्रयोग कर रहे हैं। जिस दल के नेता जितना अधिक गाड़ियों के काफिले के साथ आते हैं,जनता उन्हें उतना ज्यादा एप्रिसिएट करती है। नेताओं की तड़क-भड़क पब्लिक को खूब भा रही है।यानी सादगी व विचारों की महत्ता घटी है। कुल मिलाकर चुनाव महंगा होता जा रहा है और अब संसाधन विहीन नेताओं के लिए राजनीति कठिन होती जा रही है। साइकिल से चुनाव प्रचार कर विधानसभा का चुनाव जीतना गुजरे जमाने की बात हो गयी है।

 

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