क्या भारत छह वर्ष बाद गेहूँ का आयात करेगा?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश भारत, लगातार तीन वर्षों से निराशाजनक फसल उत्पादन के कारण घटते भंडार को फिर से भरने तथा बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिये छह वर्ष के अंतराल के बाद गेहूँ का आयात शुरू करने की योजना बना रहा है।
- भारत द्वारा गेहूँ पर 40% आयात कर हटाने की संभावना है, जिससे निजी व्यापारियों को रूस जैसे देशों से गेहूँ खरीदने (तथापि कम मात्रा में) की अनुमति मिल जाएगी।
भारत ने क्यों लिया पुनः गेहूँ आयात करने का निर्णय?
- गेहूँ उत्पादन में कमी:
- प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों के कारण विगत तीन वर्षों के दौरान भारत के गेहूँ उत्पादन में कमी आई है।
- सरकार का अनुमान है कि इस वर्ष गेहूँ का कुल उत्पादन पिछले वर्ष (2023) के रिकॉर्ड उत्पादन 112 मिलियन मीट्रिक टन की तुलना में 6.25% कम होगा।
- गेहूँ के भंडार में कमी:
- अप्रैल 2024 तक सरकारी गोदामों में गेहूँ का भंडार घटकर 7.5 मिलियन टन रह गया है, जो 16 वर्षों में सबसे कम है, क्योंकि सरकार ने गेहूँ की घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के लिये अपने भंडार से 10 मिलियन टन से अधिक गेहूँ बेच दिया है।
- सरकार द्वारा गेहूँ खरीद में कमी:
- वर्ष 2024 में गेहूँ खरीद के लिये सरकार का लक्ष्य 30-32 मिलियन मीट्रिक टन था, लेकिन वह अब तक केवल 26.2 मिलियन टन ही खरीद पाई है।
- घरेलू गेहूँ की कीमतों में उछाल:
- घरेलू गेहूँ की कीमतें सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,275 रुपए प्रति 100 किलोग्राम से ऊपर बनी हुई हैं और हाल ही में इनमें बढ़ोतरी हुई है।
- इसलिये सरकार ने गेहूँ पर 40% आयात शुल्क हटाने का निर्णय लिया, ताकि निजी व्यापारियों और आटा मिलों को रूस से गेहूँ आयात करने की अनुमति मिल सके।
- घरेलू गेहूँ की कीमतें सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,275 रुपए प्रति 100 किलोग्राम से ऊपर बनी हुई हैं और हाल ही में इनमें बढ़ोतरी हुई है।
निर्णय के संभावित निहितार्थ क्या हैं?
- घरेलू बाज़ार:
- आपूर्ति में वृद्धि तथा मूल्य स्थिरता: आयात शुल्क समाप्त करने से घरेलू बाज़ार में गेहूँ की आपूर्ति बढ़ने की संभावना है। इससे कीमतों में वृद्धि को कम किया जा सकता है।
- रणनीतिक भंडार की पुनः पूर्ति: आयात लागत कम होने से सरकार को घटते गेहूँ की पुनः पूर्ति करने करने में मदद मिल सकती है। यह घरेलू उत्पादन में अप्रत्याशित व्यवधानों से बचने के लिये एक बफर का निर्माण करने में सहायक होगा तथा खाद्य सुरक्षा को मज़बूत करेगा।
- वैश्विक बाज़ार:
- कीमतों में संभावित वृद्धि का दबाव: यद्यपि भारत की अनुमानित आयात मात्रा कम (3-5 मिलियन मीट्रिक टन) है, फिर भी यह वैश्विक गेहूँ की कीमतों में वृद्धि में योगदान दे सकती है।
- इसका कारण यह कि रूस जैसे प्रमुख निर्यातक देश वर्तमान में उत्पादन संबंधी चिंताओं के कारण उच्च लागत का सामना कर रहे हैं।
- सीमित प्रभावः भारत की आयात आवश्यकता से वैश्विक बाज़ार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। लेकिन बड़े प्रतिस्पर्द्धी गेहूँ के वैश्विक मूल्य रुझानों पर अधिक महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालना जारी रखेंगे।
- कीमतों में संभावित वृद्धि का दबाव: यद्यपि भारत की अनुमानित आयात मात्रा कम (3-5 मिलियन मीट्रिक टन) है, फिर भी यह वैश्विक गेहूँ की कीमतों में वृद्धि में योगदान दे सकती है।
भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI):
- यह खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
- उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के अधीन कार्य करता है।
- FCI के प्रमुख कार्य:
- खरीद: FCI किसानों के हितों की रक्षा और कृषि उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) पर गेहूँ व धान की खरीद के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
- भंडारण: खरीदे गए खाद्यान्नों को बफर स्टॉक बनाए रखने और अभावग्रस्त अवधि के दौरान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये देश भर के गोदामों में वैज्ञानिक तरीके से भंडारित किया जाता है।
- वितरण: FCI सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) के माध्यम से राज्य सरकारों को कुशलतापूर्वक खाद्यान्न वितरित करता है ताकि वे इसे आगे वितरण कर सकें। इससे समाज के कमज़ोर वर्गों के लिये रियायती कीमतों पर आवश्यक खाद्य वस्तुओं तक पहुँच सुनिश्चित होती है।
- बाज़ार स्थिरीकरण: खरीद और वितरण को विनियमित करके, FCI बाज़ार में खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर करने में मदद करता है, जिससे अनुचित मूल्य उतार-चढ़ाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
- निगरानी: FCI उत्पादन में संभावित कमी की पहचान करने और समय पर सुधारात्मक उपाय सुनिश्चित करने के लिये देशभर में खाद्यान्न स्टॉक तथा उनके आवागमन पर निगरानी रखता है।
गेहूँ:
- यह भारत में चावल के बाद दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है तथा देश के उत्तरी एवं उत्तर-पश्चिमी भागों की प्रमुख खाद्यान्न फसल है।
- गेहूँ, रबी की फसल है जिसे परिपक्वता के समय ठंडे मौसम और तेज़ धूप की आवश्यकता होती है।
- हरित क्रांति की सफलता ने रबी फसलों, विशेषकर गेहूँ की वृद्धि में योगदान दिया।
- तापमान: तेज़ धूप के साथ 10-15°C (बुवाई के समय) और 21-26°C (परिपक्व होने तथा कटाई के समय) के बीच।
- वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.
- मृदा: सु-अपवाहित उपजाऊ दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी (गंगा-सतलुज मैदान व दक्कन का काली मिट्टी वाला क्षेत्र)।
- विश्व में शीर्ष 3 गेहूँ उत्पादक (2021): चीन, भारत और रूस
- भारत में शीर्ष 3 गेहूँ उत्पादक (2021-22 में): उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब
- भारत में गेहूँ उत्पादन और निर्यात की स्थिति:
- भारत, चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है। लेकिन वैश्विक गेहूँ व्यापार में इसकी हिस्सेदारी 1% से भी कम है। यह इसका एक बड़ा हिस्सा गरीबों को सब्सिडी युक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिये रखता है।
- इसके शीर्ष निर्यात बाज़ार बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका हैं।
- सरकार द्वारा की गई पहलें:
- मैक्रो मैनेजमेंट मोड ऑफ एग्रीकल्चर, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना गेहूँ की खेती को प्रोत्साहित करने हेतु प्रमुख सरकारी पहलें हैं।
6 वर्षों के अंतराल के बाद गेहूँ का आयात पुनः शुरू करने का भारत का निर्णय, गेहूँ उत्पादन में गिरावट और सरकारी भंडार में कमी से उत्पन्न घरेलू आपूर्ति व मूल्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के क्रम में एक व्यावहारिक कदम है। हालाँकि, गेहूँ आयात करने का यह निर्णय गेहूँ की वैश्विक कीमतों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन भारत सरकार का प्राथमिक उद्देश्य अपने नागरिकों के लिये खाद्य सुरक्षा और मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करना है।
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