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गुरूजी ने आरएसएस को राजनीति से अलग बताया था

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज ही के दिन यानी की 05 जून को RSS के ‘गुरुजी’ माधवराव सदाशिव गोलवलकर का निधन हो गया था। RSS के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के निधन के बाद वह साल 1940 में संघ के दूसरे सरसंघचालक बने थे। गोलवलकर हमेशा राजनीति से दूर रहने की सलाह देते थे, क्योंकि वह राजनीति को अच्छा नहीं मानते थे। बता दें कि महाभारत के एक श्लोक में राजनीति को वेश्याओं का धर्म बताया गया है और महाभारत की यही लाइन गोलवलकर की राजनीति के लिए थी।

नागपुर के पास रामटेक में एक मराठी परिवार में 19 फरवरी 1906 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर का जन्म हुआ था। शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बीएचयू से एमएससी की डिग्री हासिल की थी। वह राष्ट्रवादी नेता और विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय से काफी ज्यादा प्रभावित थे। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद बीएचयू में जंतु शास्त्र पढ़ाया। इसी दौरान उनका उपनाम ‘गुरुजी’ पड़ा।

बीएचयू में पढ़ाने के दौरान किसी छात्र ने गोलवलकर के बारे में RSS के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को बताया। जिसके बाद साल 1932 में उन्होंने हेडगेवार से मुलाकात की और फिर गोलवलकर को बीएचयू में संघचालक नियुक्त किया गया।

RSS और राजनीति के बीच खींची लकीर

केंद्र और देश में आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। लेकिन इसके बाद भी RSS और राजनीति के बीच एक साफ लकीर नजर आती है। सीधे तौर पर संघ का राजनीति में हस्तक्षेप नहीं है और RSS खुद को राजनीति से अलग बताया है। संघ का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को सशक्त और संगठित करना है। आपको बता दें कि संघ और राजनीति के बीच की यह लाइन गोलवलकर ने खींची थी।

महाभारत के श्लोक जिसमें राजनीति को वेश्याओं का धर्म बताया गया है, उस श्लोक को पहले गोलवलकर और फिर सरसंघचालक दोहराया करते थे। वह देश के संघ को राजनीति से दूर रहने की सलाह देते थे। आज भी संघ इसी लाइन पर चलता है। हालांकि यह अलग बात है कि संघ देश की राजनीति को प्रभावित करता है।

साल 1972-73 में गोलवलकर ने देशभर में एक आखिरी दौरा किया था। इसी कारण से उनकी सेहत बिगड़ने लगी। गोलवलकर ने बांग्लादेश लिबरेशन वार में पाकिस्तान पर भारत की जीत के ठीक बाद आखिरी दौरा किया था। जिसके बाद उनका स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया। जिसके बाद 05 जून 1973 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर का निधन हो गया।

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक जिनकी आज जयंती है, 1927 में  बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से एमएससी की डिग्री हासिल की थी। वह राष्ट्रवादी नेता और विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय से बहुत प्रभावित थे। इसी कारण उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद बीएचयू में जंतु शास्त्र पढ़ाया। इसी दाैरान उन्होंने गुरुजी का उपनाम कमाया। बीएचयू के एक छात्र ने गुरुजी के बारे में आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को बताया। गोलवलकर ने 1932 में हेडगेवार से मुलाकात की और इसके बाद उन्हें बीएचयू में संघचालक नियुक्त किया गया।

अब जब केंद्र और देश के ज्यादातर राज्यों में आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, तब भी आरएसएस और राजनीति के बीच एक लकीर साफ नजर आती है। आरएसए का सीधे ताैर राजनीति में हस्तक्षेप नहीं है। आरएसएस खुद को अपने को राजनीति से अलग ही बताता है। मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को सशक्त और संगठित करना ही है।

यह लाइन गुरुजी ने ही तय की थी। महाभारत का एक श्लोक है जिसमें राजनीति को वेश्याओं का धर्म कहा गया है। इस श्लोक को माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर और उनके बाद के सरसंघचालक दोहराया करते थे। अपने सार्वजनिक भाषणों में कि राजनीति वेश्याओं का धर्म है। उन्होंने देश संघ को राजनीति से दूर रहने की सलाह की। इस लाइन पर आज भी संघ चलता है। हालांकि यह अलग बात है कि देश की राजनीति को संघ प्रभावित करता है।

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