भोजन की बर्बादी क्यों रोकनी चाहिए?

भोजन की बर्बादी क्यों रोकनी चाहिए?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं मानी जाती है। जिसके बिना मनुष्य का जीवन बहुत मुश्किल है। इसमें रोटी सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि रोटी के बिना तो मनुष्य जिन्दा भी नहीं रह सकता है। खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित किया जाना है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिल सके।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में हर दस में से एक व्यक्ति दूषित भोजन का सेवन करने से बीमार पड़ जाता है। जो कि सेहत के लिए एक बड़ा खतरा है। कोरोना महामारी के संक्रमण को देखते हुए इस बार विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस संक्षिप्त रूप में मनाया जाएगा। जिसमें लोगों को सेहत से जुड़े मुद्दों पर ऑनलाइन एक-दूसरे के साथ बातचीत करने का मौका मिलेगा।

इस बार हम छठवां विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मना रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इससे खाद्य सुरक्षा लेकर लोगों में जागरूकता फैलाई जा सकती है और विश्व स्तर पर खाद्य पदार्थों से होने वाली बीमारियों को भी ध्यान में लाया जा सकता है। इस दिन को मनाने के पीछे खाद्य सुरक्षा के प्रति लोगो को जागरूक करने का उद्देश्य था। जो खराब भोजन का सेवन करने की वजह से गंभीर रोगों के शिकार बन जाते हैं।

भोजन की कमी व दूषित भोजन खाने से प्रतिवर्ष हजारों लोगों की जान चली जाती है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और  खाद्य और कृषि संगठन को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों का नेतृत्व करने और पौष्टिक खाने के प्रति लोगों को जागरुक करने की जिम्मेदारी दी है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 2018 में पहली बार खाद्य और कृषि संगठन के सहयोग से विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया था। इसके बाद पहली बार 7 जून 2019 में विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया गया था। तब से हर वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाने लगा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पूर्व में अपने मन की बात कार्यक्रम में देश की जनता से बात करते हुए लोगों से खाने की बर्बादी रोकने की अपील की थी। उन्होने कहा कि ऐसा करना गरीबों के साथ अन्याय व समाजद्रोह है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि आपने कभी सोचा है कि हम जो जूठन छोड़ देते हैं। उससे हम कितने गरीबों का पेट भर सकते है? उन्होने कहा था कि इस पर सामाजिक जागरूकता बढनी चाहिए।

भारत में अनाज को अन्नदेव का दर्जा प्राप्त है। यही कारण है कि हमारे देश में भोजन झूठा छोडना या उसका अनादर करना पाप माना जाता है। मगर आधुनिकता के चक्कर में हम अपने पुराने संस्कार भूल गए हैं। हमारे यहां शादियों, उत्सवों या त्यौहारो में होने वाली भोजन की बर्बादी से हम सब वाकिफ हैं। इसके उपरांत भी हम इन अवसरों पर ढेर सारा खाना कचरे में फेंक है।

कई बार तो घरों के आसपास फेंके गए भोजन से उठने वाली दुर्गंध एवं सड़ांध वहां रहने वालों के लिए परेशानी खड़ी कर देती हैं। शादियों में खाने की बर्बादी को लेकर भारत सरकार भी चिंतित है। खाद्य मंत्रालय ने कहा है कि वह शादियों में मेहमानों की संख्या के साथ ही परोसे जाने वाले व्यंजनों की संख्या सीमित करने पर विचार कर रहा है। इस बारे में विवाह समारोह अधिनियम, 2006 कानून भी बनाया गया है। हालांकि इस कानून का कड़ाई से कहीं भी पालन नहीं किया जाता है।

भारत में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई बर्बाद चला जाता है। बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे करोड़ो लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बढ़ती सम्पन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करने की क्षमता के साथ ही खाना फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। विश्व खाद्य संगठन के अनुसार देश में हर साल पचास हजार करोड़ रूपये का भोजन बर्बाद चला जाता है। एक ऑकलन के मुताबिक बर्बाद होने वाले भोजन की धनराशि से पांच करोड़ बच्चों की जिदगी संवारीं जा सकती है।

विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य अपव्यय को रोके बिना खाद्य सुरक्षा सम्भव नहीं है। इस रिपोर्ट में वैश्विक खाद्य अपव्यय का अध्ययन पर्यावरणीय दृष्टिकोण से करते हुए बताया है कि भोजन के अपव्यय से जल, जमीन और जलवायु के साथ साथ जैव-विविधता पर भी बेहद नकारात्मक असर पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक हमारी लापरवाही के कारण पैदा किए जाने वाले अनाज का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद कर दिया जाता है। देश में एक तरफ करोड़ो लोग खाने को मोहताज है। वहीं लाखों टन खाना प्रतिदिन बर्बाद किया जा रहा है।

हमारे देश में हर साल उतना गेहूं बर्बाद होता है, जितना आस्ट्रेलिया की कुल पैदावार है। नष्ट हुए गेहूं की कीमत लगभग 50 हजार करोड़ रुपये होती है और इससे 30 करोड़ लोगों को सालभर भरपेट खाना दिया जा सकता है। हमारे देश में 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है। क्योंकि उसे रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त भंडारण की सुविधा नहीं है। औसतन हर भारतीय एक साल में छह से 11 किलो अन्न बर्बाद करता है। साल में जितना सरकारी खरीदी का धान व गेहूं खुले में पड़े होने के कारण नष्ट हो जाता है। उतनी राशि से गांवो में पांच हजार वेयर हाउस बनाए जा सकते हैं।

आज कल कई शहरो में समाजसेवी लोगो ने मिलकर रोटी बैंक बना रखा हैं। रोटी बैंक से जुड़े कार्यकर्ता शहर में घरो से व विभिन्न समारोह स्थलों से बचे हुये भोजन को एकत्रित कर जरूरत मंद गरीबो तक पहुंचाते हैं। इससे जहां भोजन की बर्बादी रूकती हैं वहीं जरूरत मंदो को भोजन भी उपलब्ध होता है। इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अभियान सोंचे, खाए और बचाए भी एक अच्छी पहल है। इसमें शामिल होकर की भोजन की बर्बादी रोकी जा सकती है। वर्तमान समय में समाज के सभी लोगों को मिलकर भोजन की बर्बादी रोकने के लिये सामाजिक चेतना लानी होगा। तभी भोजन की बर्बादी रोकने का अभियान सफल हो पायेगा।

खाने की बर्बादी रोकने की दिशा में देश में महिलाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। महिलाओं को अपने घर के बच्चों में बचपन से यह आदत डालनी होगी कि जितनी भूख हो उतना ही खाना लो। एक-दूसरे से बांट कर खाना भी भोजन की बर्बादी को बड़ी हद तक रोक सकता है। भोजन की बर्बादी रोकने के लिए हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। धार्मिक लोगों एवं स्वयंसेवी संगठनों को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए।

Leave a Reply

error: Content is protected !!