क्यों गलत हुआ एग्जिट पोल- प्रदीप गुप्ता

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक्सिस माय इंडिया और प्रदीप गुप्ता। हर चुनाव के बाद लोगों की उत्सुकता यही रही है कि इनके एक्जिट पोल का अनुमान क्या है। इस लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद प्रदीप गुप्ता के नतीजों के आकलन और अनुमान पर प्रश्न उठ रहे हैं। विपक्ष उन पर हमलावर रहा। उनकी इतनी ट्रोलिंग हुई कि लाइव टेलीविजन पर उनके आंसू निकल पड़े।

मध्य प्रदेश के रहने वाले प्रदीप गुप्ता ने प्रिंटिंग टेक्नोलाजी में डिप्लोमा करने के बाद तमिलनाडु की अन्नामलाई यूनिवर्सिटी से एमबीए किया और फिर हॉर्वर्ड बिजनेस स्कूल से ऑनर/प्रेसीडेंट मैनेजमेंट (ओपीएम) का कोर्स पूरा किया। हॉर्वर्ड से लौटकर गुप्ता ने मार्केट रिसर्च कंपनी एक्सिस माय इंडिया की स्थापना की। इस कंपनी का उद्देश्य मार्केट रिसर्च के अलावा चुनाव के बाद परिणामों के अनुमान लगाना भी है।

यह महत्वपूर्ण है कि आपकी गलत की परिभाषा क्या है? भारत सहित पूरी दुनिया में एक्जिट पोल की पहली प्राथमिकता होती है कि विजेता का पूर्वानुमान सही हो। दूसरी, कौन कितनी सीटें जीतने वाला है। तीसरी चीज है मत प्रतिशत। विजेता को लेकर हमारा पूर्वानुमान सही रहा। विजेता यानी राजग गठबंधन को पूर्ण बहुमत (272) से ज्यादा (293) सीटें मिलीं। हम दोनों पार्टियों के गठबंधन को एक रेंज देते हैं कि इसके भीतर उन्हें सीटें मिलेंगी। इसके भीतर जो नंबर आते हैं तो उसको हम स्पॉट ऑन कहते हैं।

राजग के लिए हमारी लोअर रेंज 361 थी और आईं 293 सीटें, यानी उससे 68 कम। ये सच है कि इस बार हमने भाजपा और राजग के लिए अपेक्षाकृत अधिक बड़ी जीत का पूर्वानुमान व्यक्त किया था। इस बार हम स्पॉट ऑन में सटीकता से बहुत दूर थे, पर अगर कोई ये कहे कि हमारा एक्जिट पोल पूरी तरह गलत हो गया तो ये उनका दृष्टिकोण है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों में हम एक्जिट पोल करने वालों में शामिल नहीं थे। सबने पूर्वानुमान व्यक्त किया था कि अटल जी की सरकार आ रही है, जबकि यूपीए की सरकार बन गई थी। वो पूर्णत: गलत था, पर हमारे साथ वैसा नहीं रहा। विजेता का हमारा पूर्वानुमान सही साबित हुआ।

पूर्वानुमान में तीन गलतियां हुईं, जो उत्तर प्रदेश, महाराष्ट और बंगाल से जुड़ी हैं। उनको हमने गंभीरता से लिया। हम विश्लेषण कर रहे हैं। चूक के भी दो-तीन मायने होते हैं। डाटा कलेक्शन इंटरव्यू के दौरान क्या गलती हुई। जब डाटा आ गया तो उसका विश्लेषण करने में क्या गलती हुई। हम उसका भी विश्लेषण कर रहे हैं। मत प्रतिशत में सामान्यत: दो से तीन फीसद तक एरर मार्जिन होता है। राजग के लिए हमारा मत प्रतिशत 47 था, जो वास्तव में 44 प्रतिशत रहा। ये अंतर तीन फीसद ही है। हमारे अनुसार आईएनडीआईए का मत प्रतिशत 40 होना चाहिए था, जबकि उसे 41 प्रतिशत मत मिले।

उत्तर प्रदेश में दोनों गठबंधनों को 44-44 प्रतिशत मत मिले। जब मुकाबला इतना कांटे का होता है, तो थोड़ी दिक्कत होती है। महाराष्ट्र में भी दोनों गठबंधन वोट शेयर में बेहद निकट थे। बंगाल में भय के कारण बात कर पाना मुश्किल होता है। वहां भी हमने समन्वय बिठाते हुए सर्वे में लोगों का मिजाज भांपने का प्रयास किया गया। तो देखा जाए तो विजेता का पूर्वानुमान सही है। वोट शेयर भी एरर मार्जिन के भीतर है।

तीन बड़े राज्यों में हम गलत हुए, लेकिन उसके उलट 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी जगह हम एक-दो सीट से अधिक उपर-नीचे नहीं हुए, यानी स्पॉट ऑन हैं। चार राज्यों में विधानसभा चुनाव भी साथ में थे। उनमें से दो राज्यों आंध्र प्रदेश, उड़ीसा में मतदाताओं का मिजाज को भांपना जटिल था। सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश सहित चारों राज्यों के विधानसभा चुनावों में हम स्पॉट ऑन हैं। ये हमारे पूर्वानुमान का रिकॉर्ड है। हम गलत अवश्य हुए, लेकिन तीन बड़े राज्यों में।

उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है। उसे समझना जटिल है। पूरे प्रदेश में दो फीसद वोट कम हुआ, लेकिन क्षेत्र विशेष में मतदान प्रतिशत के आधार पर इसे समझना होगा। रामपुर, बिजनौर में मतदान प्रतिशत सात फीसदी, कैराना व सहारानपुर में पांच फीसदी कम रहा, जबकि मैनपुरी में मतदान प्रतिशत दो प्रतिशत, खीरी में एक प्रतिशत अधिक रहा। अभी तक का विशेषण है कि मतदान प्रतिशत दो जगह बढ़ा और बाकी जगह घटा है। उत्तर प्रदेश में 25 सीटों पर दो पार्टियों के बीच जीत का अंतर तीन प्रतिशत से कम है।

ज्यादातर सीटों पर मतदान प्रतिशत तीन, पांच से सात के बीच कम हुआ। एक लोकसभा में हमारा सैंपल साइज 1072 था। अब दस लाख लोग वोट कर रहे हैं और हम उनमें से एक हजार लोगो‍ से बात कर रहे हैं। ऐसे में जहां जीत-हार का अंतर कम होता है, वहां पूर्वानुमान देने में मुश्किल होती है। उड़ीसा में भाजपा ने 20 सीटें जीतीं, वहां हमारा आकलन सही रहा। आंध्र प्रदेश में 25 में 21 सीटें राजग को मिलीं।

आईएनडीआईए को तमिलनाडु में 39 सीटें मिलीं। वहां भी हम सही रहे। जहां दो पार्टियों या गठबंधन में मत प्रतिशत का अंतर अधिक रहा, वहां गलती नहीं हुई। उदाहरणस्वरूप, दिल्ली में भाजपा को 54 प्रतिशत मत मिले, जबकि कांग्रेस-आप गठबंधन को 44 प्रतिशत। यह अंतर दस प्रतिशत का है और देखिए, वहां हमारा पूर्वानुमान सही साबित हुआ।

 सर्वे और पोल में क्या अंतर है?

दो अंतर हैं। सर्वे में कई स्तरों पर प्रतिनिधि नमूना जुटाना पड़ता है। पोल में जो जहां जैसे मिल गया, उससे जवाब ले लिया। सर्वे में आपका एक यूनिवर्स है। जैसे विधानसभा, लोकसभा क्षेत्र या राज्य के स्तर पर हम सर्वे सैंपल लेते हैं। इसमें तीन डेमोग्राफी महत्वपूर्ण होती हैं, लिंग, आयु और भौगोलिक क्षेत्र (ग्रामीण व शहरी क्षेत्र)। उदाहरण के तौर पर अगर सैंपल साइज 100 है तो 50-50 स्त्री-पुरुष ले लीजिए।

आयु वर्ग भी परिभाषित है। जैसे 25-36 और इसी प्रकार से अन्य। ग्रामीण व शहरी जनसंख्या का अनुपात क्रमश: 70-30 है तो उसी के आधार हम अपना सैंपल चुन लेते हैं। यह वैसे ही है जैसे हम ब्लड का सैंपल लेते हैं। उसी तरह हम एक सैंपल उठा लेते हैं, फिर उसके विभिन्न स्तरों का विश्लेषण करते है।

– क्या एक्जिट पोल को ऑडिट कह सकते हैं?

 दोनों अलग हैं। बही-खातों की जांच करने को ऑडिट कहा जाता है। यह सूचना या डाटा की जांच होती है। सर्वे में बहुत सारे प्रश्न होते हैं जिनका उत्तर आप जनता से लेते हैं। ऑडिट निर्जीव वस्तुओं का होता है, सर्वे सजीव लोगों का होता है।

 एक्जिट पोल के लिए मतदाताओं का चयन आप कैसे करते हैं?

जवाब – इसको ऐसे समझिए। जब हमारे प्रतिनिधि उत्तर प्रदेश जा रहे हैं तो उसमें लोकसभा क्षेत्र 80 और विधानसभा क्षेत्र 403 हैं। आप मेरठ कैंट में खड़े हैं, मैं सर्वेयर हूं। यहां उल्लेख करना चाहूंगा कि उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सामान्य, ओबीसी, एससी में जाटव व गैर जाटव, एसटी इत्यादि पर ध्यान देना पड़ता है। अब अगर आपको दो सौ लोगों से बात करनी है, तो इन सभी के सही अनुपात का ध्यान रखना पड़ता है।

आप बात करते हैं तो चेहरे से जाति को पहचानना मुश्किल होता है। इसलिए हम पहले से पता कर लेते हैं कि मुस्लिम बहुल या दलित बहुल बस्तियां कौन सी हैं? सामान्य वर्ग के लोग कहां रहते हैं? अन्य पिछड़ा वर्ग की रिहायश का अंदाज लगा पाना मुश्किल होता है, क्योंकि वह बहुत सारी जातियों का समूह है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम सर्वे करते हैं।

सवाल – हर बूथ की अपनी डेमोग्राफी होती है,अपना चरित्र होता है, ऐसे में इलाके और सैंपल का चयन कैसे करते हैं?

जवाब – हम बूथ के हिसाब से सर्वे नहीं करते। हम जातिगत समीकरणों और उसकी डेमोग्राफी को ध्यान में रखते हैं। बूथ से आप उतना सटीक नहीं हो सकते। यह पता भी चल जाए कि मुस्लिम बहुल है, तो भी वे उतनी संख्या में वहां बात करने के लिए उपस्थित होंगे, इसे लेकर हम आश्वस्त नहीं हो सकते।

सवाल – वोट प्रतिशत को सीट में कैसे तब्दील करते हैं?

जवाब – हम हर संसदीय क्षेत्र में जाते हैं। जैसे चुनाव की प्रक्रिया होती है कि हर बूथ, हर गांव, विधानसभा, संसदीय क्षेत्र और उसके साथ पूरे राज्य का डाटा जमा हो जाता है। उसका विश्लेषण करते हैं। कौन सी जाति ने कैसे वोट किया, ये समझने का प्रयास करते हैं। यदि आपने किसी जाति को अधिक प्रतिनिधित्व दे दिया, जैसे किसी जगह 30 प्रतिशत मुस्लिम थे और हमने सर्वे में उस समुदाय के 50 फीसद लोगों को ले लिया तो उसे भी संतुलित करते हैं।

सवाल – यानी आप कहना चाह रहे हैं कि जहां मार्जिन कम होता है, वहां अनुमान लगाना मुश्किल होता है?

जवाब – हां, वहां थोड़ी मुश्किल होती है। उड़ीसा में विधानसभा में हमने दोनों पार्टियों को बराबर वोट शेयर दिया, लेकिन 78 सीटें जीतकर भाजपा की सरकार बन गई।

सवाल – इस चुनाव में लगभग सारे एक्जिट पोल आंकड़ों के मामले में गलत साबित हुए। एक्जिट पोल का भविष्य कैसे देखते हैं। क्या साख पुन: बन पाएगी?

जवाब – सबकी अपेक्षाएं 400 सीटों की थीं, इसलिए लोगों की मानसिकता ऐसी थी कि 400 सीटें आ रही हैं। चुनाव को लेकर चर्चाओं का दौर लंबा चला। जब उसके अनुरूप परिणाम नहीं आया, तो लोगों को लगा कि गलत हो गया। इसे इस तरह समझे कि लोगों की अपेक्षाएं अपनी जगह हैं, लेकिन जैसा कि हर परीक्षा में होता है, उसमें पास होना महत्वपूर्ण है। हम पास हुए। हम एक्जिट पोल वैज्ञानिक तरीकों से करते हैं, इसलिए साख तो बनी ही रहेगी।

सवाल – हम एक्जिट पोल करते ही क्यों हैं? तीन-चार दिन बाद तो परिणाम आ ही जाना है?

जवाब – ये सच है कि कुछ समय उपरांत चुनाव के परिणाम सबके सामने आ जाते हैं, लेकिन उसमें ये विश्लेषण नहीं मिलेगा कि कौन सी पार्टी कैसे जीती। किस जाति वर्ग समूह ने कैसे वोट किया। एक सवाल ये भी होता है कि मतदाताओं ने किन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए वोट किया। ये शोध का विषय है। खेल में भी तो यही होता है। मैच देखना ही क्यों है, थोड़ी देर बाद तो परिणाम पता चल ही जाता है, पर इसमें लोगों की रुचि होती है।

चुनाव ही एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पूरा हिंदुस्तान भाग लेता है। वोटर के मन में भी जिज्ञासा होती है कि मैंने जिसको वोट दिया है, वो जीतने वाला है कि नहीं। आने वाली सरकार से उसका जीवन तय होता है। परिणाम पर उसकी सुख-सुविधाएं निर्भर करेंगी। फिल्में हों या खेल किसी में इतनी व्यापक भागीदारी नहीं होती। 65 करोड़ वोट पड़े और हमने पांच लाख 80 हजार सैंपल साइज से पूर्वानुमान दिया। 0.05 के सैंपल साइज से हम 90 फीसद सही बता पाने में सफल हुए तो उसमें अनुचित क्या है।

सवाल – आपके ऊपर चुनाव के पूर्वानुमानों से शेयर बाजार को प्रभावित करने के आरोप भी लगे हैं?

जवाब – इसमें कोई सच्चाई नहीं है। आप इसकी जांच करवा सकते हैं। इसका तो कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता। लोग पूछते हैं पर जब तक अंतिम वोट ना पड़ जाए, तब तक हम कुछ नहीं कहते। हम ओपिनियन पोल, प्री पोल नहीं करते। हमारे लिए वो नैतिकता की बात नहीं है। हम बस एक ही नंबर बोलते हैं। निजी जीवन में भी लोग पूछते हैं तो मैं उन्हें कुछ भी नहीं बताता। मैं ऐसी बातों से दूर रहता हूं।

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