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भारतीय चुनावों में NOTA क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मध्य प्रदेश के इंदौर में लोकसभा चुनाव में एक उल्लेखनीय परिणाम देखने को मिला, जिसमें NOTA (उपर्युक्त में से कोई नहीं) विकल्प को 2 लाख से अधिक मत प्राप्त हुए, जो किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में NOTA के लिये अब तक का सबसे अधिक मत प्रतिशत है।

भारतीय चुनावों में NOTA क्या है?

  • परिचय:
    • यह मतपत्रों और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) पर मतदान का एक विकल्प है जो मतदाताओं को किसी भी उम्मीदवार को चुने बिना सभी उम्मीदवारों के प्रति अपनी असहमति दर्शाने की अनुमति देता है
    • NOTA मतदाताओं को मतदान के प्रति अपने नकारात्मक विचार और दावेदारों के प्रति समर्थन की कमी को व्यक्त करने का अधिकार देता है।
    • यह उन्हें अपने निर्णय की गोपनीयता बनाए रखते हुए अस्वीकार करने का अधिकार देता है।
  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1999 में अपनी 170वीं रिपोर्ट में विधि आयोग ने 50%+1 मतदान प्रणाली के साथ-साथ नकारात्मक मतदान की अवधारणा की सिफारिश की, लेकिन व्यावहारिक चुनौतियों के कारण इस मामले पर कोई अंतिम सिफारिश नहीं दी गई।
    • सितंबर 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को मतदाताओं की पसंद की गोपनीयता की सुरक्षा के उपाय के रूप में NOTA विकल्प पेश करने का निर्देश दिया।
      • पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (PUCL) ने वर्ष 2004 में मतदाताओं के ‘गोपनीयता के अधिकार’ की रक्षा के उपायों की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय  में अपील की थी।
        • उन्होंने तर्क दिया कि निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 ने गोपनीयता पहलू का उल्लंघन किया क्योंकि पीठासीन अधिकारी (ECI से) उन मतदाताओं, जिन्होंने वोट नहीं देने का विकल्प चुना, के हस्ताक्षर या अँगूठे के निशान के साथ रिकॉर्ड रखता था
  • NOTA का प्रथम प्रयोग:
    • NOTA का पहली बार प्रयोग वर्ष 2013 में पाँच राज्यों छत्तीसगढ़, मिज़ोरम, राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में तथा बाद में वर्ष 2014 के आम चुनावों में किया गया था
    • इसे वर्ष 2013 में PUCL बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया गया था।

यदि NOTA को सबसे ज़्यादा मत प्राप्त हो तो क्या होगा?

  • भारत का निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया कि NOTA के रूप में डाले गए वोटों की गिनती की जाती है, लेकिन उन्हें ‘अमान्य वोट’ माना जाता है।
  • यदि NOTA को किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक मत प्राप्त हों, तो ऐसी स्थिति में दूसरे सबसे अधिक वोट पाने वाले अगले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है। अतः NOTA को दिये गए मत चुनाव के परिणाम को नहीं बदलते हैं
  • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय NOTA को सबसे अधिक मत मिलने की स्थिति में दिशा-निर्देश/नियमों की मांग करने वाली एक याचिका पर विचार कर रहा है, जिसमें चुनाव को रद्द करने और नए चुनाव कराने की संभावना भी शामिल है।
    • महाराष्ट्र, हरियाणा और पुद्दुचेरी जैसे कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही NOTA को “काल्पनिक चुनावी उम्मीदवार” घोषित कर दिया है, जहाँ NOTA को बहुमत मिलने पर पुनः चुनाव कराए जाते हैं।

NOTA से संबंधित ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?

  • लिली थॉमस बनाम स्पीकर, लोकसभा मामला, 1993:
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि “मतदान किसी व्यक्ति द्वारा किसी विषय या मुद्दे पर अधिकार का प्रयोग करने के लिये इच्छा या राय की औपचारिक अभिव्यक्ति है” और मत देने के अधिकार से तात्पर्य प्रस्ताव या संकल्प के पक्ष में या उसके विरुद्ध अधिकार का प्रयोग करने का अधिकार से है।
      • ऐसा अधिकार तटस्थ रहने के अधिकार को भी दर्शाता है।
  • पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामला, 2013:
    • उच्चतम न्यायालय ने EVM पर “इनमें से कोई नहीं” (NOTA) बटन का प्रावधान अनिवार्य कर दिया है, ताकि मतदाता गोपनीयता बनाए रखते हुए चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के प्रति असंतोष व्यक्त कर सकें।
    • न्यायालय की 3 जजों की बेंच ने कहा कि “चाहे मतदाता अपना मत डाले या न डाले, दोनों ही मामलों में गोपनीयता बनाए रखनी होगी।”
      • यह निर्णय मतदाताओं को सशक्त बनाकर तथा निष्पक्ष चुनाव को बढ़ावा देकर लोकतंत्र को बढ़ाने के लिये लिया गया।
  • शैलेश मनुभाई परमार बनाम भारत निर्वाचन आयोग मुख्य चुनाव आयुक्त के माध्यम से मामला, 2018:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रत्यक्ष चुनावों में NOTA का विकल्प उपयोगी हो सकता है, परंतु यह राज्यसभा चुनावों के लिये उपयुक्त नहीं है।
    • न्यायालय का मानना ​​था कि इन चुनावों में NOTA का प्रयोग लोकतंत्र को हानि पहुँचा सकता है तथा दलबदल और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है।
    • इसलिये, न्यायालय ने राज्यसभा चुनाव से NOTA विकल्प हटा दिया।

अन्य लोकतांत्रिक देशों में NOTA जैसी पहल

  • यूरोपीय देश: फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, फ्राँस, बेल्जियम, ग्रीस अपने मतदाताओं को NOTA के समान मत डालने की अनुमति देते हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में मतपत्रों पर औपचारिक NOTA विकल्प नहीं है, कुछ राज्य लिखित मतों की अनुमति देते हैं, जो समान उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं।
    • मतदाता असंतोष की अभिव्यक्ति के रूप में “इनमें से कोई नहीं” या अन्य नाम लिख सकते हैं।
  • कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील, बांग्लादेश जैसे अन्य देश भी मतदाताओं को NOTA पर मत डालने की अनुमति देते हैं।
  • NOTA विकल्प के पक्ष में तर्क:
    • मतदाताओं की पसंद को बढ़ाता है: NOTA विकल्प मतदाताओं को मतपत्र में सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने की क्षमता प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाता है, जिससे वे उपलब्ध विकल्पों के प्रति अपना असंतोष व्यक्त कर सकते हैं।
    • बढ़ी हुई राजनीतिक जवाबदेही: NOTA का अस्तित्व राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों को बेहतर, अधिक सक्षम और अधिक नैतिक प्रतिनिधियों को मैदान में उतारने के लिये मजबूर करता है, क्योंकि मतदाताओं के असंतुष्ट होने पर उन्हें वोट खोने का ज़ोखिम होता है।
    • मतदाता असंतोष की पहचान: NOTA वोट से चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को मतदाताओं के असंतोष के स्तर के बारे में बहुमूल्य फीडबैक मिल सकता है, जिसका समाधान किया जा सकता है।
  • NOTA विकल्प के विरुद्ध तर्क:
    • चुनावी मूल्य न होना: NOTA वोट केवल प्रतीकात्मक हैं और चुनाव के परिणाम को प्रभावित नहीं करते हैं। भले ही NOTA को बहुमत प्राप्त हो, फिर भी सबसे अधिक वोट शेयर वाला उम्मीदवार जीतता है।
    • दुरुपयोग की संभावना: ऐसी चिंताएँ हैं कि NOTA विकल्प का दुरुपयोग मतदाताओं द्वारा उपलब्ध उम्मीदवारों को वास्तविक रूप से अस्वीकार करने के बजाय, प्रणाली के विरुद्ध विरोध व्यक्त करने के लिये किया जा सकता है।
    • जातिगत पूर्वाग्रह: कुछ मामलों में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में NOTA को मिले अधिक वोट कुछ जातियों के उम्मीदवारों के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाते हैं, जो NOTA के उद्देश्य को कमज़ोर कर सकते हैं।
    • प्रतिनिधि लोकतंत्र को कमज़ोर करता है: NOTA विकल्प प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांतों को कमज़ोर करता है, क्योंकि यह विजयी उम्मीदवार को स्पष्ट जनादेश प्रदान नहीं करता है।

आगे की राह

  • पुनर्निर्वाचन: यदि NOTA को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, तो उस निर्वाचन क्षेत्र में नए उम्मीदवारों के साथ पुनः चुनाव कराया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग (SEC) ने एक आदेश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि यदि NOTA को सबसे अधिक वैध मत प्राप्त होते हैं, तो चुनाव दोबारा  होगा।
  • उम्मीदवारों पर प्रतिबंध: NOTA से कम मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को पुनर्निर्वाचन में भाग लेने से रोक दिया जाएगा।
    • इसी प्रकार हरियाणा के SEC ने नगरपालिका चुनावों में NOTA को एक ‘काल्पनिक उम्मीदवार’ माना।
    • NOTA से कम मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को पुनर्निर्वाचन में भाग लेने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • उम्मीदवारों पर लागत: NOTA से हारने वाले राजनीतिक दलों को पुनर्निर्वाचन का खर्च वहन करना चाहिये। पुनर्निर्वाचन के दौरान बार-बार चुनाव होने से रोकने के लिये NOTA बटन को निष्क्रिय किया जा सकता है।
  • जागरुकता: NOTA असहमति की आवाज़ प्रदान करता है, इसके दुरुपयोग को रोकने के लिये मतदाता जागरुकता बढ़ाने के प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं।

भारतीय चुनावों में NOTA विकल्प ने मतदाता की पसंद, राजनीतिक दलों की जवाबदेही और चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी के बारे में महत्त्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। यह मतदाताओं को मतदान करने और चुनाव का पूरी तरह से बहिष्कार किये बिना किसी भी उम्मीदवार से अपनी स्वीकृति वापस लेने का एक तरीका प्रदान करता है। इसका उद्देश्य विरोध में डाले गए वोटों को औपचारिक रूप से गिनने योग्य बनाना है। यह राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के क्षेत्र के प्रति लोकप्रिय असंतोष की डिग्री को दर्शाता है।

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