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भारतीयों में क्यों है कुवैत जाने को लेकर क्रेज? - श्रीनारद मीडिया

भारतीयों में क्यों है कुवैत जाने को लेकर क्रेज?

भारतीयों में क्यों है कुवैत जाने को लेकर क्रेज?

कुवैत की कुल आबादी में 21 फीसद भारतीय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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कुवैत की एक इमारत में लगी भीषण आग से 50 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे में मरने वालों में 40 भारतीय शामिल हैं। आग इतनी विकराल थी कि सब कुछ जलकर खाक हो गया। घटना के बाद, न सिर्फ कुवैत सरकार बल्कि भारत सरकार भी एक्शन मोड में है। पीएम मोदी ने हादसे पर दुख जताते हुए मृतकों के परिजनों को 2 लाख की सहायता राशि देने का एलान किया। इसी के साथ पीएम के निर्देश पर विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह कुवैत पहुंचे हैं। कीर्तिवर्धन मारे गए भारतीयों के पार्थिव शरीरों की शीघ्र वापसी सुनिश्चित करेंगे।

कुवैत में कितने भारतीय रहते हैं?

कुवैत में जिस जगह ये हादसा हुआ वहां भारतीयों की संख्या काफी अधिक है। दरअसल, हाल ही के सालों में कुवैत जाने वाले भारतीयों की संख्या में इजाफा हुआ है। कुवैत में नौकरी के लिए जाने वाले भारतीयों की संख्या काफी ज्यादा है।

कुवैत की कुल जनसंख्या में कुल 21 फीसद भारतीय हैं। भारतीय एम्बेसी के आंकड़ों के अनुसार, यहां तक की वहां काम करने वाले कुल लोगों में से 30 फीसद भारतीय ही हैं। कुवैत में भारतीय की संख्या लगभग 10 लाख है और वो वहां के सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय माना जाता है।

क्यों कुवैत बन रहा भारतीयों का पसंदीदा?

कुवैत में भारतीयों के जाने की कई वजह है, जिसमें व्यापार, टूरिज्म आदि शामिल हैं। हालांकि, सबसे बड़ी वजह वहां आसानी से मिलने वाली नौकरी और अच्छा सैलरी पैकेज है। एक और वजह जो इसे भारतीयों की पंसदीदा डेस्टिनेशन बनाता है वो यह है कि वहां टैक्स फ्री आय, घरों पर सब्सिडी और कम ब्याज पर लोन मिल जाता है।

यहां ज्यादातर भारतीय निर्माण क्षेत्र, हेल्थकेयर, ऑयल और फाइनेंस क्षेत्र में काम करते हैं। मजदूरों के मुकाबले जो लोग पदों पर काम करते हैं, उनकी स्थिति थोड़ी अच्छी है।

अनस्किल्ड लोगों को भी मिलती है मोटी सैलरी

कुवैत में अनस्किल्ड लोगों को काफी अच्छी सैलरी मिलती है। उन्हें हर महीने 100 कुवैती दिनार यानी 27 हजार रुपये मिलते हैं। वहीं, लोअर स्किल्ड मजदूरों को 40 हजार रुपये तक सैलरी मिलती है। जिन भी देशों के बॉर्डर फारस की खाड़ी से मिलते हैं, वे खाड़ी या गल्फ देश कहलाते हैं. इनमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात- ये 6 देश शामिल हैं. वैसे तो ईरान और इराक भी फारस की खाड़ी से कनेक्टेड हैं, लेकिन वे गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल का हिस्सा नहीं, न ही यहां काम करने ज्यादा भारतीय जाते हैं.

सत्तर के दशक में ऑइल बूम के बाद से भारत से काफी सारे लोग काम के लिए गल्फ जाने लगे. इनमें पेशेवर लोगों के अलावा मजदूर ज्यादा थे, जैसे इमारत बनाने वाले या इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करने वाले.

कितने भारतीय हैं खाड़ी में

मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स ने एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि लगभग 10.34 मिलियन एनआरआई 2 सौ से ज्यादा देशों में रह रहे हैं. इनमें यूएई में लगभग साढ़े 3 मिलियन, सऊदी अरब में 2.59 मिलियन, कुवैत में 1.02, कतर में 74 लाख, ओमान में 7 लाख, जबकि बहरैन में सवा 3 लाख भारतीय हैं. गल्फ के अलावा सबसे ज्यादा देसी लोग अमेरिका में लगभग 1.28 मिलियन हैं.

कुवैत में भारतीय प्रवासी सबसे ज्यादा

अब बात करते हैं कुवैत की. अग्निकांड वाले इस देश में कुछ समय पहले सार्वजनिक नागरिक सूचना प्राधिकरण (पीएसीआई) ने एक डेटा जारी किया था. इसकी मानें तो दिसंबर 2023 तक कुवैत की आबादी लगभग 49 लाख थी, जिसमें 15 लाख से ज्यादा स्थानीय लोग, जबकि 39 फीसदी लोग प्रवासी हैं. इसमें भी इंडियन वर्कर सबसे ज्यादा हैं.

लोग क्यों जाते हैं कुवैत या बाकी खाड़ी देश

हमारे देश का गल्फ के साथ करार है कि वे मजदूरों को न्यूनतम रेफरल वेतन (MRW) दे. इसके लिए कामगारों को खुद को फॉरेन मिनिस्ट्री के ई-माइग्रेट पोर्टल पर रजिस्टर करना होता है.  काम के अनुसार वेतन तय होता है, जैसे राजमिस्त्री, ड्राइवर और कारपेंटर के काम पर हर महीने न्यूनतम 3 सौ डॉलर मिलेंगे, जबकि डोमेस्टिक वर्कर इससे ज्यादा कमाई करते हैं. वहीं पेशेवरों, जैसे नर्स, इंजीनियरों की कमाई काफी ज्यादा है. कामगार आमतौर पर गल्फ जाकर पैसे बचाते और अपने घर भेजते हैं. इससे कम समय में भारतीय करेंसी के हिसाब से काफी सेविंग हो जाती है. यही कारण है कि वहां ज्यादा से ज्यादा लोग जा रहे हैं.

4 सालों में लगभग 50 हजार शिकायतें

तनख्वाह भले ही ज्यादा दिख रही हो लेकिन वहां भारतीय कामगार अक्सर अमानवीय हालातों में रहते हैं. यहां तक कि उनके काम के घंटे भी तय नहीं होते. उन्हें स्थानीय लोगों से खराब ट्रीटमेंट मिलता है. कई रिपोर्ट्स इसकी पुष्टि कर चुकीं. साल 2019 से जून 2023 तक बहरैन, ओमान, कुवैत, यूएई, कतर और सऊदी अरब के भारतीय दूतावासों में 48 हजार से ज्यादा शिकायतें आईं. ये सारी शिकायतें फोर्स्ड लेबर से जुड़ी हुई थीं.

 व्यवस्था की वजह से शोषण

असल में खाड़ी देशों में एक सिस्टम है- कफाला. ये एम्प्लॉयर को अपने कर्मचारी पर बहुत ज्यादा अधिकार दे देता है. आसान तरीके से कहें तो कामगार अपने मालिक का गुलाम हो जाता है. उसके काम के घंटे बहुत ज्यादा होते हैं और पगार तय नहीं होती. कई एम्प्लॉयर अपने मजूदरों के पासपोर्ट तक अपने पास रख लेते हैं ताकि वे कहीं भाग न सकें. यहां तक कि उन्हें फोन रखने या वर्क एरिया से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं होती. हफ्ते के किसी भी दिन उन्हें छुट्टी नहीं मिलती. पासपोर्ट जब्त हो चुकने की वजह से वे अपने देश भी नहीं लौट सकते.

यूनाइटेड नेशन्स में बात उठने पर कुवैत के अलावा सऊदी और कतर ने भी कफाला को खत्म करने की बात की, लेकिन ये पूरी तरह बंद नहीं हो सका. अमेरिकी थिंक टैंक- काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस ने भी कफाला सिस्टम पर बड़ी रिपोर्ट की थी.

क्या होता है कफाला में 

इसमें एम्प्लॉयर को कफील कहा जाता है, जिसे कुवैत या बाकी गल्फ देशों की सरकार स्पॉन्सरशिप परमिट का हक देती है. कफील अक्सर कोई फैक्ट्री मालिक होता है. परमिट के जरिए ये विदेशी मजदूरों को अपने यहां बुला सकता है. बदले में वे मजदूर के आने-जाने, रहने और खाने का खर्च देते हैं. इसमें होता ये है कि मालिक फैक्ट्री के भीतर ही मजदूरों को ठूंस देते हैं ताकि जब चाहे काम करवाया जा सके. खाड़ी देशों की सरकार को ये फायदा होता है कि उनके यहां कम कीमत पर उत्पादन होता रहता है.

हने-खाने की स्थिति सबसे बदतर है. वहां मुख्य रिहायशी इलाकों से दूर इमारतें बनाई जाती हैं, जहां प्रवासी मजदूरों को रखा जाता है. ये तंग दरवाजे-खिड़कियों वाले छोटे-छोटे कमरे होते हैं, जहां कई लोगों को साथ रहने कहा जाता है. किराया दिए बगैर रहने के नाम पर मजदूर इसपर राजी भी हो जाते हैं.

कुवैत में नरक जैसे हालात 

साल 2022 में एक्सपैट इनसाइडर की रिपोर्ट जारी हुई. इसमें विदेशों में रहते लोगों ने कुवैत को 52 देशों में सबसे नीचे रखा था. साथ ही सुरक्षा और खुशी के मानकों में भी ये सबसे नीचे था. उनकी शिकायत थी कि खाड़ी देशों के स्थानीय लोग बाहरी लोगों से दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं. उनसे मेल-जोल रखना तो दूर, उनसे बेअदबी करते हैं. लेकिन सबसे ज्यादा शिकायत वर्क कल्चर को लेकर थी. ग्लोबल स्तर पर वर्क-लाइफ बैलेंस पर औसत असंतोष की तुलना में यहां ये असंतोष दोगुना था. ये रिपोर्ट अरेबियन गल्फ बिजनेस इनसाइट में छपी थी.

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