विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) ने उपन्यासकार अरुंधति रॉय के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंज़ूरी दे दी है। उन पर वर्ष 2010 में कश्मीरी अलगाववाद का समर्थन करने वाले एक कार्यक्रम में भड़काऊ बयान देने का आरोप है। यह मंज़ूरी विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 की धारा 13 के तहत दी गई है।
- वर्ष 2023 में, लेखक पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए।
UAPA क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- 17 जून, 1966 को राष्ट्रपति ने “व्यक्तियों और संगठनों की गैर-कानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम के लिये” विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम अध्यादेश लागू किया।
- इसके बाद गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम 1967 अधिनियमित किया गया।
- 17 जून, 1966 को राष्ट्रपति ने “व्यक्तियों और संगठनों की गैर-कानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम के लिये” विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम अध्यादेश लागू किया।
- परिचय:
- गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 को व्यक्तियों और संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम, आतंकवादी गतिविधियों से निपटने तथा उनसे संबंधित मामलों के लिये अधिनियमित किया गया था।
- गैर-कानूनी गतिविधियों को भारत के किसी भी हिस्से के अधिग्रहण या पृथक्करण का समर्थन या उकसावा देने वाली कार्रवाइयों या इसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल उठाने वाली या उसका अनादर करने वाली कार्रवाइयों के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- यूएपीए के तहत राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency- NIA) को देश भर में मामलों की जाँच करने और मुकदमा चलाने का अधिकार दिया गया है।
- यह अधिनियम राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) के महानिदेशक को संपत्ति की ज़ब्ती या कुर्की की मंज़ूरी देने का अधिकार भी देता है, जब एजेंसी द्वारा मामले की जाँच की जा रही हो।
- गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 को व्यक्तियों और संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम, आतंकवादी गतिविधियों से निपटने तथा उनसे संबंधित मामलों के लिये अधिनियमित किया गया था।
- संशोधन:
- इसमें कई संशोधन किये गए (वर्ष 2004, 2008, 2012 और 2019) जिसके तहत आतंकवादी वित्तपोषण, साइबर आतंकवाद, किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना तथा संपत्ति ज़ब्ती से संबंधित प्रावधानों का विस्तार किया गया।
- प्रमुख प्रावधान:
- वर्ष 2004 तक “गैरकानूनी” गतिविधियों का तात्पर्य क्षेत्र के अलगाव एवं अधिग्रहण से संबंधित कार्यों से था। वर्ष 2004 के संशोधन के बाद, “आतंकवादी कृत्य” को अपराध की सूची में शामिल किया गया।
- वर्ष 2019 के संशोधन द्वारा सरकार को व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित करने का अधिकार दिया गया।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को किसी भी गतिविधि को गैर-कानूनी घोषित करने का पूर्ण अधिकार देता है। अगर सरकार किसी गतिविधि को गैरकानूनी मानती है तो वह आधिकारिक राज-पत्र में प्रकाशित करके इसे आधिकारिक रूप से गैर-कानूनी घोषित कर सकती है।
- UAPA के तहत जाँच एजेंसी गिरफ्तारी के बाद अधिकतम 180 दिनों में चार्जशीट दाखिल कर सकती है तथा न्यायालय को सूचित करने के बाद इस अवधि को आगे बढ़ाया जा सकता है।
- इसके तहत भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों पर आरोप लगाए जा सकते हैं। यह अपराधियों पर समान तरह से लागू होता है भले ही अपराध भारत के बाहर किसी विदेशी भूमि पर किया गया हो।
- इसमें मृत्युदंड तथा आजीवन कारावास सबसे कठोर दंड हैं।
- वर्ष 2004 तक “गैरकानूनी” गतिविधियों का तात्पर्य क्षेत्र के अलगाव एवं अधिग्रहण से संबंधित कार्यों से था। वर्ष 2004 के संशोधन के बाद, “आतंकवादी कृत्य” को अपराध की सूची में शामिल किया गया।
- संबंधित निर्णय:
- अरूप भुइयाँ बनाम असम राज्य (2011) मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता मात्र से किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा तब किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति हिंसा का सहारा लेता है या लोगों को हिंसा के लिये उकसाता है या अव्यवस्था पैदा करने के इरादे से कोई कार्य करता है।
- हालाँकि, वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ऐसे संगठनों में केवल सदस्यता को ही अपराध माना जा सकता है, भले ही वह प्रत्यक्ष हिंसा में शामिल न हो।
- पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत संघ (2004) मामले में, न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि आतंकवाद से मुकाबले के प्रयासों में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है तो यह आत्म-पराजय की स्थिति होगी।
- न्यायालय ने माना कि एक पूर्व पुलिस अधिकारी को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाना बेहतर निर्णय नहीं है क्योंकि उनका अनुभव मानवाधिकारों की रक्षा एवं प्रचार करने के बजाय अपराधों की जाँच से अधिक संबंधित है।
- मज़दूर किसान शक्ति संगठन बनाम भारत संघ (2018) मामले में न्यायालय ने कहा कि सरकारी और संसदीय कृत्यों के विरुद्ध आवाज़ उठाना वैध है। हालाँकि ऐसे विरोध प्रदर्शन और सभाओं को शांतिपूर्ण एवं अहिंसक/निरायुध होना चाहिये।
- हुसैन एवं अन्य बनाम भारत संघ, 2017 मामले में ज़मानत आवेदनों की प्रक्रिया में तेज़ी लाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जिसमें इस बात पर बल दिया गया था कि ज़मानत मानक आधार होनी चाहिये तथा कारावास को एक दुर्लभ अपवाद के रूप में संदर्भित किया जाना चाहिये।
- NIA बनाम ज़हूर अहमद शाह वटाली, 2019 में उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि न्यायालयों को सबूतों में गहराई से न जाते हुए UAPA से संबंधित ज़मानत आवेदनों पर निर्णय लेते समय राज्य के मामले को भी आधार बनाना चाहिये।
- अरूप भुइयाँ बनाम असम राज्य (2011) मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता मात्र से किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा तब किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति हिंसा का सहारा लेता है या लोगों को हिंसा के लिये उकसाता है या अव्यवस्था पैदा करने के इरादे से कोई कार्य करता है।
UAPA से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- कम दोषसिद्धि दर: NCRB के आँकड़ों के अनुसार, UAPA के तहत लंबित मामलों की एक बड़ी संख्या में दोषसिद्धि दर कम है।
- UAPA के केवल 18% मामलों में ही दोषसिद्धि होती है, हालाँकि लंबित मामलों की दर 89% है।
- व्यक्तिपरक व्याख्या: गैरकानूनी गतिविधियों की अस्पष्ट परिभाषा व्यक्तिपरक व्याख्याओं की अनुमति देती है, जिससे यह विशिष्ट समूहों या व्यक्तियों के खिलाफ उनकी पहचान या विचारधारा के आधार पर संभावित दुरुपयोग के प्रति संवेदनशील हो जाती है।
- सीमित न्यायिक समीक्षा: वर्ष 2019 का संशोधन सरकार को किसी भी न्यायिक समीक्षा के बगैर व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित करने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे कानून की उचित प्रक्रिया और मनमाने ढंग से नामित किये जाने की संभावना के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- हिरासत संबंधी नियम: UAPA में यह प्रावधान है कि किसी व्यक्ति पर बिना आरोप लगाए 6 माह तक हिरासत में रखने की अनुमति है। यह नियमित आपराधिक विधि के बिल्कुल विपरीत है, जो ज़मानत मांगने से पूर्व केवल 3 माह की पूर्व-आरोप अवधि की अनुमति देता है।
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: यह विधि संविधान द्वारा संरक्षित अभिव्यक्ति, सभा और संघ के आवश्यक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
- यह असहमति व्यक्त करने और विरोध करने को अवैध बनाता है, इसका इस्तेमाल अधिवक्ताओं, पत्रकारों, छात्रों तथा हाशिये पर पड़े समुदायों को निशाना बनाने हेतु किया जा सकता है जो अधिकारियों के खिलाफ बोलते हैं।
उल्लिखित मामले में, यह संदेहास्पद है कि क्या हिंसा के लिये किसी विशिष्ट आह्वान के बिना मात्र भाषण को UAPA के तहत “गैर-कानूनी गतिविधि” माना जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि कश्मीर की स्थिति के बारे में विचारों अथवा परामर्श की अभिव्यक्ति, भले ही वे विवादास्पद या आलोचनात्मक हों और साथ ही यह आवश्यक नहीं है कि UAPA का उल्लंघन हो, जिसका उद्देश्य आमतौर पर गैर-कानूनी कार्रवाई के लिये प्रत्यक्ष रूप से उद्दीपन को संबोधित करना होता है।
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