Breaking

क्या बच्चों पर सबसे अच्छा बनने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए?

क्या बच्चों पर सबसे अच्छा बनने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नीट-यूजी परीक्षा में सामने आई अनियमितता छात्र और माता-पिता के लिए समान रूप से चर्चा का विषय है। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि इस परीक्षा की शुरुआत क्यों की गई। नीट को 2016 में लागू किया गया था। उस समय मैं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के सलाहकार के रूप में कार्यरत था। मैं इसे मेडिकल शिक्षा में सुधार और छात्रों का समय और पैसा बचाने के लिए मोदी सरकार द्वारा उठाए गए सबसे बड़े कदमों में से एक के रूप में याद करता हूं।

एक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले छात्र के रूप में मैं कई मेडिकल परीक्षाओं में शामिल नहीं हो सका। इसकी वजह यह थी कि इन परीक्षाओं के लिए आवेदन करने और फिर अलग-अलग तारीखों पर अलग-अलग शहरों में परीक्षा देने के लिए यात्रा करने का खर्च काफी अधिक था। कुछ परीक्षाओं की तारीखें भी एक दूसरे के बहुत करीब थीं। इसलिए, मेरे जैसे छात्र विकल्पों से वंचित थे।

जब लागू हुआ था नीट तब परेशान हुए थे…

नीट के साथ यह मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के लिए परीक्षा देने वालों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अवसर के लिए एक परीक्षा बन गई। यह सबसे बड़ा सुधार है। इसने प्रबंधन कोटा जैसी कई बुराइयों को दूर किया है। इसने मेडिकल कॉलेजों के कई मालिकों को परेशान किया। इनमें से ज्यादातर राजनेता हैं। उन्होंने मोटी रकम लेकर प्रबंधन सीटें बेचकर पैसा कमाने का साधन खो दिया था।

मोदी सरकार ने प्रवेश प्रक्रिया में सुधार किया और पिछले दशक में सबसे अधिक मेडिकल सीटें भी बढ़ाईं। प्रवेश प्रक्रिया में सुधार और अधिक सीटें जोड़ने के इन दो चरणों के साथ छात्रों के पास अब पहले से कहीं अधिक अवसर हैं। मेडिसिन और डेंटल जैसे कोर्स की मांग काफी अधिक है। छात्र इन कोर्स में प्रवेश के लिए माता-पिता के भारी दबाव के बीच तैयारी करते हैं।

इससे 15,000 करोड़ रुपये का कोचिंग उद्योग तैयार हुआ है और यह दोहरे अंक में बढ़ रहा है। जहां भी पैसा और प्रतिस्पर्धा आएगी, लोग सिस्टम को दरकिनार करने के लिए अनैतिक तरीके ढूंढ लेंगे। वैसे तो नीट परीक्षा माडल में कोई समस्या नहीं है, समस्या उन कोचिंग सेंटरों और अभिभावकों के साथ है, जो किसी भी कीमत पर अपने बच्चों को डॉक्टर बनाना चाहते हैं और प्रवेश पाने के लिए करोड़ों खर्च करने को तैयार हैं।

पेपर लीक ने ऐसी परीक्षाओं की साख को नुकसान पहुंचाया है। इससे छात्रों, शैक्षिक संस्थानों, सिस्टम की विश्वसनीयता के लिए इसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं। पेपर लीक को रोकने के लिए इसके कारणों को समझना और कठोर और गैर पारंपरिक कदम उठाना जरूरी है। हमें इन पेपर लीक को बढ़ावा देने वाले कारकों को समझना होगा और इसके बाद प्रक्रिया और व्यवस्था से जुड़ी कमियों को दूर करना होगा।

बच्चों पर न थोपें अपने अधूरे सपने

सबसे पहले माता-पिता को अपने बच्चों पर डॉक्टर बनने के लिए दबाव डालने से बचना चाहिए। उनको यह समझने के लिए एक साइकोमेट्रिक विश्लेषण करना चाहिए कि क्या उनके बच्चों में डॉक्टर बनने की इच्छा और योग्यता है। यह शुरुआती बिंदु है, क्योंकि अक्सर बच्चे अपने माता-पिता की इच्छाओं के दबाव में आकर आधे-अधूरे मन से ऐसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।

वे यह सुनिश्चित करने के लिए ये परीक्षाएं देते हैं कि वे अपने माता-पिता के अधूरे सपनों को पूरा कर सकें। यदि माता-पिता अपनी इच्छाएं अपने बच्चों पर न थोपें तो पेपर लीक की 50 प्रतिशत समस्या अपने आप हल हो जाएगी।

कोई भी छात्र प्रश्नपत्र प्राप्त करने के लिए लाखों या करोड़ों का भुगतान नहीं कर सकता। उनके माता-पिता मिलीभगत करके ऐसा करते हैं। ऐसे पेपर लीक में दूसरा सबसे बड़ा योगदान कोचिंग सेंटरों का है। कोचिंग सेंटरों के बीच यह दिखाने को लेकर गला काट प्रतिस्पर्धा है कि उनके छात्रों की ऑल इंडिया रैंकिंग सबसे अच्छी है। दो वर्ष पहले एक मेडिकल कोचिंग सेंटर ने भारत में अपना बिजनेस एक अरब डालर यानी करीब 8,300 करोड़ रुपये में बेचा था।

इससे आप समझ सकते है कि कोचिंग बिजनेस में दांव कितने ऊंचे हैं। जहां भी पैसा और प्रतिस्पर्धा आते हैं, वहां भ्रष्टाचार अपने आप आ जाता है और ऐसे पेपर लीक आम हो जाते हैं। किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए पेशेवर कोचिंग केंद्रों को खत्म करके, हम दो लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। पहला, कोटा जैसे शहरों में होने वाली आत्महत्याओं को रोक सकते हैं।

क्या है पेपर लीक का असली कारण?

दूसरा, हम पेपर लीक के मुद्दे का समाधान कर सकते हैं। पेपर लीक होने का 50 प्रतिशत कारण कोचिंग सेंटर भी हैं। माता-पिता के दबाव और कोचिंग सेंटरों को खत्म करने से पेपर लीक की संभावना लगभग समाप्त हो जाती। मानवीय त्रुटि या तकनीकी गड़बड़ी शायद ही कभी पेपर लीक का कारण बनती है।

कुछ लोग कहेंगे कि इसका कारण भ्रष्ट नौकरशाह हैं, लेकिन अगर भुगतान करने वाले ही नहीं होंगे, तो उनकी लालची मांगों को कौन पूरा करेगा? बेशक, परीक्षा से दो से चार घंटे पहले शहरों के केंद्रों पर प्रश्न और उत्तर पुस्तिकाओं को बदलने के लिए रैंडम तरीके से वितरण और रिकॉल प्रणाली को अपनाया जा सकता है।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि पेपर और उत्तर पुस्तिकाएं बनाने, प्रिंट करने और वितरित करने की पूरी प्रक्रिया सुरक्षित है, एन्क्रिप्शन, ब्लाकचेन और सुरक्षित प्रमाणीकरण विधियों का लाभ उठाया जा है। कुछ निहित स्वार्थी तत्व पेपर लीक के बाद नीट परीक्षा को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन यह फूड पाइजनिंग के बाद खाना न खाने का फैसला करने जैसा है। नीट को बहुत सोच समझ कर शुरू किया गया था। पेपर लीक के एक प्रकरण से निराश होने की जरूरत नहीं है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!