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डिजिटल डिटॉक्स की तरफ बढ़ रहा सीवान में भी रुझान

डिजिटल डिटॉक्स की तरफ बढ़ रहा सीवान में भी रुझान

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मोबाइल पर थिरकने वाली उंगलियां अब कर रही कलाकृतियों का निर्माण

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क::

पिछले महीने सीवान में जिला निबंधन कार्यालय के समीप स्थित राम जानकी मंदिर पर राज्यस्तरीय टेरा कोटा प्रदर्शनी का आयोजन आराध्या चित्रकला के संचालक युवा चित्रकार रजनीश मौर्य द्वारा किया गया था। जब मैं इस प्रदर्शनी को देखा तो वहां बनी मिट्टी की कलाकृतियां मोहित तो कर ही रही थी। लेकिन मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य वहां मौजूद और प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे युवक युवतियों को देख कर हो रहा था। आज के डिजिटल युग में जहां अधिकांश युवा अधिकांश समय मोबाइल पर दे रहे हैं वहीं कुछ युवा सीवान में मिट्टी की कलाकृतियों का निर्माण कर रहे थे। बरबस मैंने एक युवा से पूछ ही लिया कि आज के मोबाइल के दौर में आप मिट्टी की कलाकारी कर रहे हो तो मुझे सपाट सा जवाब मिला। सर मोबाइल से ऊब चुके हैं हम कुछ नया करना चाहते हैं। टेरा कोटा प्रदर्शनी में मौजूद कुछ बच्चे भी थे जो अपने पैरेंट्स के साथ आए थे वे भी मिट्टी के कलाकृतियों के निर्माण के गुर सीख रहे थे। यह देखना बड़ा सुखद था क्योंकि सीवान में भी मुझे डिजिटल डिटॉक्स के कुछ उदाहरण जो दिखाई दे रहे थे।

क्या है डिजिटल डिटॉक्स?

आज के दौर में डिजिटल डिटॉक्स शब्द बार बार सामने आ रहा है। डिजिटल डिटॉक्स का साधारण सा मतलब मोबाइल, इंटरनेट से दूर रहकर अपने हॉबी के अनुरूप कार्यों को करने से होता है। इससे सृजनात्मकता को बल मिलता है। साथ ही डिजिटल माध्यमों से कुछ पल की दूरी डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति निर्मित करता है।

बढ़ते स्क्रीन टाइम के दौर में डिजिटल डिटॉक्स संजीवनी बूटी समान

आज के स्क्रीन टाइम के बढ़ते समय के दौर में डिजिटल डिटॉक्स एक संजीवनी बूटी ही है। विशेषकर युवाओं के बढ़ते स्क्रीन टाइम ने जहां एक तरफ वर्चुअल रियलिटी के संदर्भ में तनाव और दवाब की स्थिति निर्मित की है वहीं चिड़चिड़ापन भी बढ़ता देखा जा रहा है। आंखें कमजोर हो रही हैं अलग से। वर्चुअल रियलिटी जो कि बिलकुल भी हकीकत से दूर होती है, के प्रभाव के कारण युवा अवसादग्रस्त भी दिख रहे हैं। बढ़ते स्क्रीनटाइम यानी मोबाइल पर ज्यादा समय देने से युवा शारीरिक गतिविधि नहीं कर पा रहे हैं जिससे बेहद कम उम्र में ही उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदयरोग , कैंसर जैसी बीमारियां के गिरफ्त में आते जा रहे हैं।

डिजिटल डिटॉक्स से सेहत पर सकारात्मक असर

ऐसे में बच्चे चित्रकारी, मूर्तिकारी, संगीत साधना, कार्टून मेकिंग जैसी रचनात्मक गतिविधियों को अंजाम देते हैं तो डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति बनती है। डिजिटल डिटॉक्स से जहां सेहत पर सकारात्मक असर पड़ता है वहीं मानसिक सुकून भी मिलता है। रचनात्मक गतिविधियों पर समय देने से युवाओं की क्रिएटिविटी को भी उपयुक्त मंच मिलता है। डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति में युवा तनाव, दवाब, अवसाद से दूर रहते हैं।

युवाओं के बढ़ते स्क्रीन टाइम के संदर्भ में प्रदर्शनी, गायन स्पर्धाओं, चित्रकला प्रतियोगिताओं का समय समय पर आयोजन युवाओं के संदर्भ में डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति को उत्पन्न करता है। जो न केवल युवाओं के सेहत की रक्षा करता है अपितु उन्हें मानसिक शांति भी प्रदान करता है। इसलिए डिजिटल डिटॉक्स की स्थिति उत्पन्न करने वाले हर आयोजन का स्वागत किया जाना चाहिए।

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