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सेंगोल को अब कोई नहीं हटा सकता- भाजपा - श्रीनारद मीडिया

सेंगोल को अब कोई नहीं हटा सकता- भाजपा

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोकसभा के विशेष सत्र में तमाम मुद्दों के साथ सेंगोल एक बार फिर चर्चा में है। समाजवादी पार्टी ने संसद भवन में सेंगोल को हटाकर उसके स्थान पर संविधान रखने की मांग की है। समाजवादी पार्टी के सांसद आरके चौधरी ने एक चिट्ठी लिखकर संसद भवन से सेंगोल को हटाने की मांग की है। अब इसके लेकर भाजपा ने विरोध जताया है।

समाजवादी पार्टी के सांसद आरके चौधरी ने कहा, ‘संविधान लोकतंत्र का प्रतीक है। पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने संसद में सेंगोल स्थापित किया। ‘सेंगोल’ का अर्थ है ‘राज-दंड’ या ‘राजा का डंडा’। रियासती व्यवस्था खत्म होने के बाद देश आजाद हुआ।’ क्या देश ‘राजा का डंडा’ से चलेगा या संविधान से? मैं मांग करता हूं कि संविधान को बचाने के लिए सेंगोल को संसद से हटाया जाए।’

लाखों भक्तों का अपमान किया है’

इसके बाद भाजपा नेता सीआर केसवन ने चौधरी की टिप्पणियों को अपमानजनक बताया। सीआर केसवन ने कहा, ‘आरके चौधरी की टिप्पणी अपमानजनक है। उन्होंने लाखों भक्तों का अपमान किया है। उन्होंने संसद की पवित्रता को भी कमजोर किया है। उन्होंने राष्ट्रपति के कार्यालय का भी दुरुपयोग किया है। लेकिन आप समाजवादी पार्टी के सांसद से इससे बेहतर क्या उम्मीद कर सकते हैं।’

इस बीच, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चौधरी का बचाव करते हुए सुझाव दिया कि यह टिप्पणी प्रधानमंत्री के लिए एक चेतावनी हो सकती है।जब सेंगोल स्थापित किया गया था, तो पीएम ने उसके सामने सिर झुकाया था। शपथ लेते समय वह यह भूल गए होंगे। शायद हमारे सांसद की टिप्पणी उन्हें यह याद दिलाने के लिए थी।

‘संविधान पर नजर डाले सपा नेता’

केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा ने सेंगोल हटाने का विरोध जताया है और सपा नेताओं पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा, ‘सपा नेता को संविधान और संसदीय परंपराओं को देखना चाहिए। ‘समाजवादी पार्टी के जो सांसद ऐसा कह रहे हैं, उन्हें पहले संसदीय परंपराओं को जानना चाहिए और फिर बोलना चाहिए। और जो स्वाभिमान का प्रतीक है, उसे हटाने की बात कर रहे हैं। मुझे लगता है कि कहीं न कहीं उन्हें संविधान और संसदीय परंपराओं पर नजर डालनी चाहिए।’

‘सेंगोल को कोई नहीं हटा सकता’

साथ ही एसपी नेता के बयान पर बीजेपी सांसद महेश जेठमलानी ने कहा कि सेंगोल राष्ट्र का प्रतीक है। सेंगोल को स्थापित किया गया था, उसको अब कोई नहीं हटा सकता।

आजादी से जुड़ा है सेंगोल का आधुनिक इतिहास

संसद में स्थापित किए गए सेंगोल का आधुनिक इतिहास भारत की आजादी के साथ जुड़ा हुआ सामने आया है, जब तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल सौंपा गया. वहीं, प्राचीन इतिहास पर नजर डालें तो सेंगोल के सूत्र चोल राज शासन से जुड़ते हैं, जहां सत्ता का उत्तराधिकार सौंपते हुए पूर्व राजा, नए बने राजा को सेंगोल सौंपता था. यह सेंगोल राज्य का उत्तराधिकार सौंपे जाने का जीता-जागता प्रमाण होता था और राज्य को न्यायोचित तरीके से चलाने का निर्देश भी.

5000 साल पुराने महाभारत में भी मिलता है इतिहास

रामायण-महाभारत के कथा प्रसंगों में भी ऐसे उत्तराधिकार सौंपे जाने के ऐसे जिक्र मिलते रहे हैं. इन कथाओं में राजतिलक होना, राजमुकुट पहनाना सत्ता सौंपने के प्रतीकों के तौर पर इस्तेमाल होता दिखता है, लेकिन इसी के साथ राजा को धातु की एक छड़ी भी सौंपी जाती थी, जिसे राजदंड कहा जाता था. इसका जिक्र महाभारत में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के दौरान भी मिलता है. जहां शांतिपर्व में इसके जिक्र की बात करते हुए कहा जाता है कि ‘राजदंड राजा का धर्म है, दंड ही धर्म और अर्थ की रक्षा करता है.’

ऐसी थी राजदंड की अवधारणा

राजतिलक और राजदंड की वैदिक रीतियों में एक प्राचीन पद्धति का जिक्र होता है. इसके अनुसार राज्याभिषेक के समय एक पद्धति है. राजा जब गद्दी पर बैठता है तो तीन बार ‘अदण्ड्यो: अस्मि’ कहता है, तब राजपुरोहित उसे पलाश दंड से मारता हुआ कहता है कि ‘धर्मदण्ड्यो: असि’. राजा के कहने का तात्पर्य होता है, उसे दंडित नहीं किया जा सकता है. ऐसा वह अपने हाथ में एक दंड लेकर कहता है.

यानि यह दंड राजा को सजा देने का अधिकार देता है, लेकिन इसके ठीक बाद पुरोहित जब यह कहता है कि, धर्मदंडयो: असि, यानि राजा को भी धर्म दंडित कर सकता है.ऐसा कहते हुए वह राजा को राजदंड थमाता है. यानि कि राजदंड, राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगाने का साधन भी रहा है. महाभारत में इसी आधार पर महामुनि व्यास, युधिष्ठिर को अग्रपूजा के जरिए अपने ऊपर एक राजा को चुनने के लिए कहते हैं.

सेम्मई शब्द से बना है सेंगोल

सेंगोल को और खंगालें तो कई अलग-अलग रिपोर्ट में  इसकी उत्पत्ति तमिल तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से बताई गई है. सेम्मई का अर्थ है ‘नीतिपरायणता’, यानि सेंगोल को धारण करने वाले पर यह विश्वास किया जाता है कि वह नीतियों का पालन करेगा. यही राजदंड कहलाता था, जो राजा को न्याय सम्मत दंड देने का अधिकारी बनाता था. ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार, राज्याभिषेक के समय, राजा के गुरु के नए शासक को औपचारिक तोर पर राजदंड उन्हें सौंपा करते थे.

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