हाथरस जाएंगे राहुल गांधी, सत्संग में मची भगदड़ में 121 लोगों की हुई थी मौत
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हाथरस में भोले बाबा के धार्मिक आयोजन में हुई भगदड़ की घटना में कुछ भी नयापन नहीं है. इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं और लगातार बढ़ रही हैं. और तय मानिये कि ये आगे भी होती रहेंगी. दिल्ली से सिर्फ 146 किलोमीटर दूर यूपी के हाथरस से जो तस्वीरें आई हैं वो दिल को झकझोर देने वाली हैं. 121 लोगों की जान जिस तरह से गई है वो हमारे समाज की एक बर्बर तस्वीर उजागर करती है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के हाथरस का दौरा करेंगे। इसकी जानकारी पार्टी के वरिष्ठ नेता के सी वेणुगोपाल ने गुरुवार को दी है।
एक सभ्य समाज में जहां नियम कानून का शासन है, जहां पढ़े लिखे लोग रहते हों, ऐसा कैसे हो सकता है कि इतनी भीड़ इकट्ठी हो जाए और एक डॉक्टर तक की व्यवस्था न हो. करीब 2 से ढाई लाख की भीड़ इकट्ठा होती है और पुलिस और प्रशासन का कोई बड़ा अफसर नहीं होता है. ऐसा कैसे हो सकता है कि एक शख्स खुद को भगवान घोषित कर दे और लोग जान पर खेलकर उसके चरणों की धूल लेने का प्रयास करें. आखिर इस शर्मनाक घटना का गुनहगार कौन है? हाथरस की घटना सैकड़ों सवालों से भरी भी हैं. इसमें दर्द है, पीड़ा है, बदइंतजामी है.
कांग्रेस महासचिव (संगठन) वेणुगोपाल ने इस त्रासदी को एक “दुर्भाग्यपूर्ण घटना” करार दिया है। इस दौरान उन्होंने कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी अपनी यात्रा के दौरान प्रभावित लोगों से बातचीत भी करेंगे।उत्तर प्रदेश सरकार ने हाथरस कांड की न्यायिक जांच की घोषणा की है।
पुलिस ने कार्यक्रम के आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, जिसमें उन पर साक्ष्य छिपाने और शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है, क्योंकि इस कार्यक्रम में 80,000 की अनुमत क्षमता से अधिक 2.5 लाख लोग एकत्रित हुए थे।
1-कौन है हाथरस का गुनहगार?
सोशल मीडिया पर इस घटना का जिम्मेदार अलग अलग लोगों को बनाया जा रहा है. किसी के लिए बाबा जिम्मेदार हैं तो कोई इसे लचर प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहा है . बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो बाबा के भक्तों को भी जिम्मेदार मान रहे हैं. ट्विटर पर एक पत्रकार लिखते हैं कि बाबा ने 21 बीघे में अपना आश्रम बना रखा है. तीन तरफ से गेट हैं. इस वक्त सारे बंद हैं, बाबा इसी आश्रम में रोज सभा करता है.
स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर वो लिखते हैं कि लोग बता रहे हैं कि रोज सुबह बाबा को दूध से नहलाया जाता है. उसी दूध से खीर बनती है जो प्रसाद के रूप में बांटी जाती है. कुछ लोग पूछ रहे हैं कि ये घटनाएं अक्सर होती हैं और भगदड़ के नाम पर ऐसी हत्याओं का कारण बनने वाले बाबाओं पर कोई एक्शन नहीं होता. बस नाम बदल जाते हैं, चेहरा बदल जाता है, जगह बदल जाती है लेकिन आस्था के सिंहासन पर बैठकर हर बार इस तरह लोगों को मौत के मुंह में भेजने की छूट मिल जाती है.
2-हिंदुस्तान में बाबाओं के फलने-फूलने का क्या कारण है?
हिंदुस्तान में ऐसे बाबाओं का साम्राज्य बहुत बड़ा है. ये कोई आज से नहीं है. सदियों पहले से रहा है और अभी भी है. कुछ लोगों का कहना है कि इसके मूल में अशिक्षा और बेरोजगारी है, पर यह पूरी तरह गलत है. बाबाओं के चक्कर में जितना पढ़े लोग और संपन्न लोग ( खाते-पीते) हैं उतना गरीब नहीं है. यही कारण है बाबाओं का साम्राज्य अमीर राज्यों पंजाब-हरियाणा-राजस्थान और वेस्ट यूपी में कुछ ज्यादा ही है.
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि बढ़ता तनाव, भविष्य की अनिश्चितता जैसी बातें बाबाओं को समृद्ध और मजबूत बना रही हैं, तो ये भी गलत है क्योंकि जब ऐसी समस्याएं कम थीं तब भी देश में बाबा लोगों की पूछ थी. मध्यकालीन भारत के बाद से भारत में साधु-संतों और बाबाओं का साम्राज्य लगातार बढ़ता गया. भारत से राजघराने तो समाप्त हो गए पर मठों की जमीन और जायदाद बढ़ती गई. देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक में ऐसे मठों की भरमार है. इन मठों से ही निकलकर अब राजनेता भी बनने लगे हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद देश के सबसे पुराने मठों में से एक गोरखनाथ पीठ के महंत हैं.
पंजाब में डेरे एक प्रकार के मठ ही हैं. भोला बाबा उर्फ साकार हरि भी कुछ दिन बाद खुद को एक मठ में तब्दील कर लेंगे. अभी इनकी पूजा इनकी पत्नी के साथ होती है बाद में इनके बच्चे भी भगवान बन जाएंगे. देश के कई मठों और डेरों की ऐसी ही कहानी है. स्वयंभू भगवान बाबाओं के मां-बाप और बेटे-बेटियां ही नहीं भगवान बनते हैं बल्कि उनके दामाद और बहुएं भी भगवान बन जाते हैं. सोशल मीडिया पर एक शख्स लिखते हैं कि भारत में आलस एक भयानक बीमारी का स्वरूप लेती जा रही है, आलस्य का मूल कारण भौतिकता है, सब सुख पाने की लालसा इन ढोगियों की दुकान का सौदा है.
3-क्या वोट की राजनीति करती है बाबाओं का संरक्षण
कुछ महीने पहले की बात है मध्यप्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. बाबा बागेश्वर की धूम मची हुई थी. बाबा बागेश्वर के दरबार में न केवल बीजेपी के नेता शिवराज पहुंच रहे थे बल्कि कांग्रेस नेता कमलनाथ भी उनकी शरण में थे. बाबा के दरबार की एक फोटो वायरल हुई जिसमें उनसे आशीर्वाद लेने राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान दोनों पहुंचे हुए थे. बाबा अपने सिंहासन पर बैठे हुए हैं दोनों नेता जमीन पर उनके चरणों के पास हैं. हालांकि बाबा का तेज न शिवराज को दोबारा चीफ मिनिस्टर बना पाया और न ही राजनीतिक वनवास से वसुंधरा को निकाल सका. फिर भी बाबा का जलवा बरकरार है.
रेप, हत्या और कई मामलों में आरोपी और कई मामलों में सजा पा चुके हरियाणा के बाबा राम रहीम जेल में सजा काट रहे हैं. पर वो अधिकतर बेल पर जेल से बाहर ही रहते हैं. जेल की दीवार कभी उन्हें ज्यादा दिन के लिए अंदर नहीं रख पाती है. क्योंकि उनके पास बड़ा वोट बैंक है. कहा जाता है कि बाबा के भक्त केवल हरियाणा में ही नहीं पंजाब-राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी हैं.
हालांकि बीजेपी इस बार के लोकसभा चुनावों में इन तीनों राज्यों में इस बार कमजोर प्रदर्शन की है फिर भी बाबा का जलवा कम नहीं होने वाला है. बाबा साकार हरि उर्फ भोले बाबा की भी राजनीतिक पहुंच किसी से कम नहीं थी. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बाबा का जयकारा करते रहे हैं. कहा जाता है पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के समय में भी उनका जलवा कायम था.
दूर क्यों जाएं योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में भी उनका जलवा कायम ही कहा जाएगा. अभी तक 121 लोगों की मौत में कहीं उनका नाम नहीं आया है. पुलिस प्रशासन की हिम्मत नहीं हुई है कि एफआईआर में उनका नाम लिखा जा सके. बाबा के आयोजन पर जिस तरह पुलिस और प्रशासनिक महकमा आंख मूंदे हुए था यह बाबा के दबदबे कारण ही संभव था.
4-बाबा और जाति की राजनीति
बाबा साकार हरि उर्फ भोले बाबा उर्फ सूरजपाल जाटव के बारे में बहुत सी बातें की जा रही हैं. इस बीच उनकी जाति के बारे में पता चला है. बताया जा रहा है कि उनकी जाति जाटव है. उत्तर भारत में जाटव दलित वर्ग में आते हैं. इसी समाज से उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी आती हैं. जिस समाज के लोगों के साथ छुआछूत का व्यवहार होता रहा है अगर उस समाज के लोग महंत, संत और बाबा बन रहे हैं तो यह देश और समाज के सुखद संयोग कहा जा सकता है. पर यह भी देखना होगा कि बाबा के दरबार कितने बड़ी जातियों के लोग जाते रहे हैं.
क्योंकि उत्तर भारत के ज्यादातर नए डेरों और नए बाबाओं के दरबार पिछड़े और दलित समाज के लोग ही जाते रहे हैं. हालांकि इन डेरों में जाने वालों में उच्च जातियों के लोगों की संख्या भी कम नहीं है. दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि इन डेरों और बाबाओं के उत्थान के पीछे वंचित समाज को बराबर का दर्जा मिलने की चाहत भी कहीं न कहीं एक कारण रहा है.
राम रहीम, बाबा रामपाल ही नहीं बल्कि पंजाब के अनेकों डेरों के पीछे पिछड़ी जातियों और दलित जातियों के लोगों का समर्थन रहा है. इस तरह ये बाबा बहुत बड़ा वोट बैंक बना लेते हैं. जिसके चलते इनका सत्ता प्रतिष्ठानों तक में इनकी हनक चलती है.
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