देखिए, प्रकृति निभा रही अपनी जिम्मेदारी, हम भी निभाएं तो बात बनें
दाहा नदी संरक्षण अभियान में है हर व्यक्ति की है महत्वपूर्ण भूमिका
✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
आज कल दाहा नदी के प्रवाह को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। नदी में पसरी जलकुंभियों को तीव्र जल प्रवाह ने किनारे कर दिया है। प्रकृति अपनी जिम्मेदारी सतत् निभाती रही हैं। सवाल यह उठता है कि हम अपनी जिम्मेदारी के प्रति कितने संजीदा हैं? दाहा नदी के संरक्षण में हर व्यक्ति की भूमिका है और हर व्यक्ति को अपनी भूमिका निभाना है। थोड़ी सी सजगता, थोड़ी सी सतर्कता कमाल दिखा सकती है। हमारी अपनी दाहा नदी अपने पुराने स्वरुप में आ सकती है।
कम से कम अगले दो तीन महीने तक तो बरसात के कारण दाहा नदी का प्रवाह बेहतर रहेगा। मार्च अप्रैल से जलकुंभियों का कहर आरंभ हो जाता है, जो यहां कि जलीय जैव विविधता को तबाह करती जाती है। ये जलकुंभी दाहा नदी के जल में मौजूद ऑक्सीजन को खींचने लगती है। जिससे दाहा नदी में मौजूद जलीय जीवों की मौत होने लगती है। दाहा नदी की जलीय जैव विविधता की तबाही शुरू होने लगती है। जून जुलाई में नदी के प्रवाह बढ़ने से ये जलकुंभिया दब जाती है। पिछले कुछ दिनों से दाहा नदी संरक्षण अभियान के सदस्य विद्याभवन महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉक्टर रीता कुमारी के नेतृत्व में दाहा नदी के तट पर से जलकुंभी हटाने के लिए श्रमदान कर रहे थे। जब भी मार्च अप्रैल में जलकुंभी आने लगे तो नदी तट के आस पास के युवा श्रमदान द्वारा नदी से जलकुंभी हटाने का प्रयास करें तो बहुत अच्छा रहेगा। जलीय जीवों को जीवन मिलेगा।
अभी सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि दाहा नदी में कूड़ा आदि फेंकने की व्यवस्था पर लगाम लगे। बेकार सामग्रियों, अन्य अवशेष, अपशिष्ट आदि को जमीन में भी दबाया जा सकता है। नदी में इन सामग्रियों को प्रवाहित करने पर रोक लगाना अनिवार्य है। इसके लिए जन को जन को नदी के महत्व के बारे में बताकर उन्हें जागरूक करने की आवश्यकता है। शिक्षक स्कूल कॉलेज में बच्चों के साथ नदी संवाद कायम करें। मीडियाकर्मी दाहा नदी संरक्षण पर विचार मंथन को आगे बढ़ाएं। किसान दाहा नदी के महत्व को संजीदगी से समझने का प्रयास करें। छात्र एक दूसरे को जागरूक करें। धार्मिक संगठनों के कार्यकर्ता नदी में बेकार सामग्री के प्रवाह को रोकें। सामाजिक संगठन नदी किनारे वृक्षारोपण अभियान संचालित करें तो यह अभियान काफी हद तक सफलता प्राप्त कर सकता है। युवा चित्रकार रजनीश मौर्य बताते हैं कि बहुत जरूरी है कि दाहा नदी के महत्व को समझा जाय।
दाहा नदी हमारे अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी है। दाहा नदी के किनारे की सैकड़ों किलोमीटर के क्षेत्र में कृषि अर्थव्यवस्था को नदी से ही सहायता प्राप्त होती है। बात सिंचाई की हो या पशु धन के पालन की दाहा नदी की उपादेयता जग जाहिर है। साथ ही, नदी के स्वच्छ रहने से नदी में जलीय जैव विविधता को संपोषण प्राप्त होता है। मछली आदि की उपलब्धता खाद्य सुरक्षा के साथ रोजगार की उपलब्धता का आधार बनती है। दाहा नदी के तट पर छठ पूजा, पीडिया, ज्यूतिया आदि पर्व के त्योहार पर जो सांस्कृतिक समागम होता है वह अद्भुत ही होता है। सीवान, गोपालगंज, छपरा में अपने प्रवाह क्षेत्र के भू जल स्तर को विद्यमान रखने में भी दाहा नदी की भूमिका विशेष महत्व की रही है। नित गिरते भू जल स्तर की मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर भी दाहा नदी के महत्व का पता चलता है। दाहा नदी को सीवान की लाइफ लाइन माना जाता है तो उसके पीछे मजबूत तर्क है। इस नदी के संरक्षण के प्रति हम सभी को सचेत होना ही होगा। प्रोफेसर रवींद्र नाथ पाठक बताते हैं कि दाहा नदी के तट पर एक जिंदगी बसती हैं। दाहा नदी की स्वच्छता, जलीय जैव विविधता का संरक्षण सिर्फ नदी को संरक्षित नहीं करती है अपितु हमारे जीवन के लिए संजीवनी का काम करती है। प्रोफेसर अशोक प्रियम्बद ने बताया कि नदियों ने हमारी सभ्याताओं को सृजित किया है। उनका बेहद महत्वपूर्ण सांस्कृतिक महत्व है। स्थानीय संस्कृति को दाहा नदी ने संपोषित किया है।
दाहा नदी के संरक्षण के लिए हम सभी के व्यक्तिगत स्तर पर संजीदगी भरे प्रयास के साथ सरकार को भी आगे आना होगा। दाहा नदी के पुलों पर जाली लगाने, मार्च में जलकुंभी आने पर जे सी बी से नियमित स्तर पर सफाई और दाहा नदी में गिरने वाले नालों के जल की सफाई के लिए सीवरेज संयंत्र, कृत्रिम फ्लोटिंग आइलैंड बनाने के आदि प्रयास तो सरकार के वश की बात ही हो सकती है। दाहा नदी के तट पर सौंदर्यीकरण में भी सरकार की ही भूमिका है। दाहा नदी संरक्षण अगर जन मुद्दा बन जाए तो निश्चित तौर पर हमारे माननीय जन प्रतिनिधि भी अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति को प्रदर्शित कर नदी के संरक्षण के लिए बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। दाहा नदी के तट पर वृक्षारोपण अभियान में सरकार, सामाजिक संस्थाओं और सांस्कृतिक संगठनों के साथ आम जनता की भूमिका है। दाहा नदी के तट पर जितने वृक्ष लगें उतना ही बेहतर तरीके से नदी संरक्षित हो सकती है।
बस हम सभी को दाहा नदी के महत्व को समझ कर अपने स्तर की भूमिका निभाने के लिए सामने आना चाहिए। दाहा नदी संरक्षण में प्रशासनिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तंत्र से जुड़े हर व्यक्ति की भूमिका है। सभी अगर मिलकर प्रयास करें तो हमारी दाहा नदी अपने पुनर्जीवन को प्राप्त कर सकती है। आवश्यकता सभी प्रयासों में समन्वय और सामंजस्य की है।
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