गुरु को मानुष मत कह मानुष उनका देह
सनातन परम्परा है गुरु पूजन ।
प्रथम गुरु है माता पिता राम नारायण दास ।
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
सीवान जिला के जीरादेई प्रखण्ड क्षेत्र में गुरु पूर्णिमा रविवार को श्रद्धा व भक्ति के साथ मनाई गई । भरौली मठ व बुद्ध मंदिर तीतिरा पंचायत के बुद्ध नगर बंगरा में विशेष पूजा अर्चना की गई । भरौली मठ परिसर में परम् गुरु राम नारायण दास की महराज की पूजा अर्चना कर सत्संग व भंडारा का आयोजन किया गया।
जिसमें हजारों भक्तो ने भाग लिया ।परम् गुरु रामनारायण दास जी महाराज ने कहा कि प्रथम गुरु हमारे माता पिता है उसके बाद ज्ञानदेई गुरु है ,इसलिये माता पिता की सेवा में किसी प्रकार की कमी गुरु कृपा से वंचित करता है ।उन्होंने कहा कि गुरु पूजन सनातन परम्परा व हमारी संस्कृति का हिस्सा है ।
महराज जी ने कहा कि गुरु की जयकारा करने वालों की तीनों लोकों में जयकारा होती है । अध्यात्म ज्ञाता वृजविहारी दूबे ने कहा कि गुरु महिमा से ही जीवन का उत्कर्ष है ।उन्होंने कहा कि गुरु को मानुस मत कह ,मानुस उनका देह अंदर से जो पट खुले ,दिखे पुरुष विदेह । दूबे ने कहा कि गुरु साक्षात भगवान है जो जीव मात्र की भलाई के लिये धरती पर अवतरित होते है ।
उन्होंने कहा कि परम गुरु रामनारायण दास गुरु परम्परा के अनुपम उदाहरण है जो अपनी त्याग ,तपस्या व कृपा से भक्तों को आलोकित करते रहते है । उन्होंने कहा कि उनकी सानिध्य में जीवन कृतार्थ हो जाता है। गुरुपूजन आचार्य अरविंद मिश्र ने कराया ।उन्होंने बताया कि गुरु कृपा से इहलोक और परलोक दोनों ही गुरुकृपा से आलोकित हो जाता है । जनसुराज समिति जीरादेई ने भरौली मठ परिसर में जनसुराज संवाद आयोजित कर गुरु कृपा पर विशेष परिचर्चा आयोजित किया तथा बिहार की दशा व दिशा के बदलाव तथा प्रशांत किशोर के प्रयास एवं प्रयोग की सफलता के लिए प्रार्थना किया ।
जन सुराज़ के जिला मुख्य प्रवक्ता कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि जीवन का तारन गुरु कृपा से ही सम्भव है ।उन्होंने बताया कि जिस भी क्षेत्र में कोई हमें सीख या ज्ञान दे वही हमारा गुरु है उसके प्रति श्रद्धा ,विश्वास व समर्पण से जीवन अनमोल बन सकता है श्री सिंह ने कहा कि जीवन का प्रारंभिक व असल गुरु तो माता -पिता ही है उनकी सेवा में जीवन को लूटा देना परम पद का अधिकारी बनना है ।
उन्होंने बताया कि इसके विपरीत आचरण जीवन में घनघोर दुख ,पीड़ा व अशांति लाता है ।स्वप्न में भी माता -पिता का तिरस्कार जीवन को नरक में ढकेल देता है । उन्होंने बताया कि गुरु की महिमा अपार है और उनकी करुणा अद्भुत है कब किस पर अनुग्रह हो जाय यह रहस्य गुरु ही जानते है ।उन्होंने बताया कि घर द्वार छोड़कर चले जाना ही वैराग्य नही है अपितु अपने अंतःकरण की शुद्धता नितांत आवश्यक है ।
श्री सिंह ने बताया कि कभी भी अपने गुरु के सामने ज्यादे चतुर व जानकर नहीं बनना चाहिए ,चंचलता का त्याग करना चाहिए ।उन्होंने बताया कि जो भी व्यक्ति जीवन के निखार लाने में सहयोग करे उसके प्रति सदैव श्रद्धा व सेवा का भाव रखना चाहिए । उन्होंने बताया कि गुरु व जीवन में पहचान दिलाने वाले का भूलकर भी शिकायत नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे तेज घटता है तथा किसी का प्रिय बनने में संदेह पैदा होता है ।
उन्होंने बताया कि गुरु ,संत व महात्मा की दृष्टि दिव्य है ,हम उतना ही देख सकते है जितनी हमारी दृष्टि है लेकिन गुरु व संतजन अनन्त तक देखने की दृष्टि रखते है । इस मौके पर डा राजन मान सिंह,रामेश्वर सिंह, हरिकांत सिंह,अनिल कुमार,नंद जी चौधरी, नीलेश तिवारी, विकास सिंह, अरुण कुमार,नंदू राय, श्रवन प्रसाद सहित काफी संख्या में गुरु प्रेमी उपस्थित थे ।
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