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कारगिल विजय दिवस क्या है?

कारगिल विजय दिवस क्या है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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कारगिल युद्ध (वर्ष 1999) में देश के लिये सर्वोच्च बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों के शौर्य, पराक्रम व बहादुरी के सम्मान में श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।

  • यह स्मृति दिवस भारत और पाकिस्तान के बीच मई 1999 में शुरू हुए कारगिल युद्ध के समापन का प्रतीक है।

कारगिल विजय दिवस क्या है?

  • परिचय: कारगिल विजय दिवस या कारगिल विक्ट्री डे, भारत में प्रतिवर्ष 26 जुलाई को मनाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण दिन है।
    • यह दिन वर्ष 1999 में पाकिस्तान के साथ संघर्ष में भारत की विजय/जीत का स्मरण कराता है और युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों की बहादुरी एवं बलिदान का सम्मान करता है।
    • वर्ष 1999 का कारगिल युद्ध परमाणु संपन्न दक्षिण एशिया में पहला सैन्य संघर्ष/युद्ध था जो यकीनन दो परमाणु संपन्न देशों के बीच पहला वास्तविक युद्ध था।
  • पृष्ठभूमि:
    • भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षों का इतिहास रहा है, जिसमें वर्ष 1971 का एक महत्त्वपूर्ण संघर्ष भी शामिल है, जिसके कारण बांग्लादेश का गठन हुआ।
    • वर्ष 1971 के बाद, दोनों देशों ने विशेष रूप से निकटवर्ती पर्वत शृंखलाओं पर सैन्य चौकियों के माध्यम से सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण की होड़ में निरंतर तनाव का सामना किया।
    • वर्ष 1998 में, दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण किये जिससे तनाव बढ़ गया। फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा का उद्देश्य कश्मीर संघर्ष को शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय रूप से हल करना था।
    • वर्ष 1998-1999 की सर्दियों के दौरान पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने कारगिल, लद्दाख के द्रास व बटालिक सेक्टर में NH 1A पर स्थित किलेबंद ठिकानों पर कब्ज़ा करने के लिये नियंत्रण रेखा (LOC) के पार गुप्त रूप से सैनिकों को प्रशिक्षित और तैनात किया।
    • भारतीय सैनिकों ने पहले तो इसे घुसपैठियों को आतंकवादी या ‘जिहादी’ समझा, लेकिन जल्द ही स्पष्ट हो गया कि यह हमला एक सुनियोजित सैन्य अभियान था।
    • यह युद्ध वर्ष 1999 की गर्मियों में कारगिल सेक्टर में मश्कोह घाटी से लेकर तुरतुक तक फैली 170 किलोमीटर लंबी पर्वतीय सीमा पर लड़ा गया था।
    • इसके प्रत्युत्तर में, भारत ने ऑपरेशन विजय की शुरुआत की, जिसमें घुसपैठ का मुकाबला करने के लिये 200,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया गया।

  • कारगिल युद्ध दिवस का महत्त्व:
    • वर्ष 1999 में युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए भारतीय सैनिकों की स्मृति में उनका सम्मान करने के लिये 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
    • वर्ष 2000 में द्रास में कारगिल युद्ध स्मारक की स्थापना भारतीय सेना द्वारा वर्ष 1999 में ऑपरेशन विजय की सफलता की याद में बनाया गया था।
      • बाद में वर्ष 2014 में इसका जीर्णोद्धार किया गया। जम्मू और कश्मीर के कारगिल ज़िले के द्रास शहर में स्थित होने के कारण इसे “द्रास युद्ध स्मारक” के रूप में भी जाना जाता है।
    • राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन वर्ष 2019 में किया गया। यह उन सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने वर्ष 1962 में चीन-भारत युद्ध, वर्ष 1947, वर्ष 1965 और वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध, श्रीलंका में वर्ष 1987-90 में भारतीय शांति सेना के ऑपरेशन और वर्ष 1999 में कारगिल संघर्ष सहित विभिन्न संघर्षों व मिशनों में अपने प्राणों की आहुति दी।

 

  • कारगिल युद्ध का प्रभाव:
    • नियंत्रण रेखा (LoC) की वैश्विक मान्यता: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने नियंत्रण रेखा को भारत तथा पाकिस्तान के बीच वास्तविक सीमा के रूप में मान्यता दी है, जिससे जम्मू और कश्मीर की क्षेत्रीय अखंडता पर भारत के रुख को बल मिला है।
    • मज़बूत रणनीतिक साझेदारी: कारगिल ने भारत-अमेरिका संबंधों में भी महत्त्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व किया। भारत को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी गई, जिससे रणनीतिक साझेदारी के अगले चरण का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिसकी परिणति भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के रूप में हुई।
    • कूटनीतिक लाभ: युद्ध ने पाकिस्तान पर काफी कूटनीतिक दबाव डाला, जिसकी परिणति 4 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की संयुक्त राज्य अमेरिका की उच्चस्तरीय यात्रा के रूप में हुई, जिसके दौरान उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान की कार्रवाइयों की इस अंतर्राष्ट्रीय निंदा ने उसे कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने में सहायता की।
    • परमाणु कूटनीति पर प्रकाश डालना: इस संघर्ष ने भारत और पाकिस्तान के बीच अस्थिर संबंधों की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया, विशेषकर परमाणु जोखिमों के संबंध में। युद्ध ने परमाणु-सशस्त्र क्षेत्र में संघर्ष के बढ़ने की संभावना को रेखांकित किया।
    • वैश्विक धारणा पर प्रभाव: इस युद्ध ने भारत की सैन्य क्षमताओं और क्षेत्रीय संघर्षों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने तथा उनका जवाब देने की उसकी क्षमता को उजागर किया, जिससे मज़बूत रक्षा क्षमताओं के साथ एक उभरती हुई शक्ति के रूप में उसकी वैश्विक छवि मज़बूत हुई।

कारगिल युद्ध से जुड़े ऑपरेशन

  • ऑपरेशन विजय: ऑपरेशन विजय कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानी घुसपैठ के लिये भारत की सैन्य प्रतिक्रिया का कोड नाम था।
    • इस ऑपरेशन का उद्देश्य नियंत्रण रेखा (LOC) के भारतीय हिस्से से घुसपैठियों को हटाना और व्यवस्था तैनात करना था।
  • ऑपरेशन सफेद सागर: भारतीय वायुसेना ने ज़मीनी अभियानों को समर्थन देने के लिये “ऑपरेशन सफेद सागर” चलाया। उच्च तुंगता वाले अभियानों में MiG-21s, MiG-23s, MiG-27s, मिराज 2000 और जगुआर जैसे विमानों का इस्तेमाल किया गया।
  • ऑपरेशन तलवार: भारतीय नौसेना के ऑपरेशन तलवार” ने समुद्री सुरक्षा और प्रतिरोध सुनिश्चित किया। नौसेना की तत्परता ने पाकिस्तान को आगामी आक्रामकता के संभावित प्रतिक्रियाओं के बारे में एक कड़ा संदेश दिया।

कारगिल युद्ध के बाद क्या सुधार किये गए?

  • सुरक्षा क्षेत्र में सुधार: कारगिल युद्ध ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे की समीक्षा को प्रेरित किया, जिससे पारदर्शिता बढ़ी और के. सुब्रह्मण्यम के नेतृत्व में कारगिल समीक्षा समिति (KRC) की स्थापना हुई। KRC रिपोर्ट ने खुफिया, सीमा और रक्षा प्रबंधन में कमियों को उजागर किया, जिससे सुरक्षा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार तथा संस्थागत परिवर्तन हुए।
  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) का गठन: इसका गठन सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच “संयुक्तता” को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
    • CDS सरकार के एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करता है और तीनों सेवाओं के एकीकरण की देखरेख करता है।
  • त्रि-सेवा कमानों की स्थापना: अंडमान और निकोबार कमान को भविष्य के थिएटर कमांडों के लिये एक परीक्षण स्थल के रूप में बनाया गया था, जिसमें सेना, नौसेना और वायु सेना के संसाधनों को एकीकृत किया गया था।
  • खुफिया सुधार: तकनीकी खुफिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) की स्थापना की गई।
    • रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA) का गठन तीनों सेवाओं में खुफिया जानकारी के समन्वय हेतु  किया गया था।
    • तकनीकी समन्वय समूह का गठन उच्च तकनीक खुफिया अधिग्रहण की निगरानी हेतु  किया गया था।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) को सभी खुफिया एजेंसियों का समन्वयक नियुक्त किया गया, जो NTRO की निगरानी करेंगे और बेहतर खुफिया एकीकरण सुनिश्चित करेंगे।
  • सीमा प्रबंधन में सुधार: घुसपैठ को रोकने के लिये सीमा पर बेहतर निगरानी और गश्त। सीमा सुरक्षा हेतु बेहतर तकनीक की तैनाती। उदाहरण के लिये, थर्मल इमेजिंग कैमरे, मोशन सेंसर और रडार सिस्टम की स्थापना।
  • परिचालन सुधार: हथियार प्रणालियों, तोपखाने और संचार उपकरणों का आधुनिकीकरण किया गया। उच्च तुंगता पर होने वाले युद्ध और संयुक्त अभियानों के लिये विशेष प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान दिया गया। उदाहरण के लिये, धनुष आर्टिलरी गन, आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल आदि।
  • बेहतर समन्वय और संचार: बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने के लिये सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच संयुक्त अभ्यास तथा संचालन पर ज़ोर दिया गया। विभिन्न एजेंसियों और सैन्य शाखाओं के बीच खुफिया जानकारी के वास्तविक समय के आदान-प्रदान के लिये उन्नत तंत्र स्थापित किए गए।
  • आतंकवाद विरोधी उपाय: इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) प्रमुख आतंकवाद विरोधी एजेंसी बन गई। विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच आतंकवाद विरोधी क्षमताओं और समन्वय को मज़बूत किया गया।
  •  स्वदेशी सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम: अमेरिकी सरकार द्वारा बनाए गए अंतरिक्ष-आधारित नेविगेशन सिस्टम से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल सकती थी, लेकिन अमेरिका ने भारत को इससे वंचित कर दिया। स्वदेशी सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम की आवश्यकता पहले से ही महसूस की जा रही थी, लेकिन कारगिल के अनुभव ने देश को इसकी अनिवार्यता का एहसास कराया। उदाहरण के लिये, भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) का विकास।
  • सैद्धांतिक परिवर्तन: युद्ध ने भारतीय सैन्य सिद्धांतों के विकास को उत्पन्न कर दिया, जिसमें कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत भी शामिल है। कारगिल ने बहुआयामी छद्म युद्धों को कम करने और भविष्य की सैन्य रणनीतियों को आकार देने के लिये एक समग्र सिद्धांत की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

वर्ष 1999 का कारगिल युद्ध भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसने इसकी सैन्य रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। ऑपरेशन विजय की सफलता ने रणनीतिक क्षेत्रों पर नियंत्रण बहाल किया और भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया। युद्ध ने मज़बूत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता को उजागर किया और राष्ट्रीय सुरक्षा बुनियादी ढाँचे में बड़े सुधारों को प्रेरित किया।

इसने नियंत्रण रेखा (LoC) को एक प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय  सीमा के रूप में फिर से स्थापित किया और कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत जैसे नए सैन्य सिद्धांतों के विकास को गति दी। संघर्ष की विरासत भारत की रक्षा रणनीतियों और कूटनीतिक संबंधों को आकार देना जारी रखती है।

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