राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन और राष्ट्रीय संस्कृति कोष क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय ने राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन और राष्ट्रीय संस्कृति कोष में प्राप्त उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन क्या है?
- परिचय:
- राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की स्थापना वर्ष 2003 में पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की गई थी।
- उद्देश्य:
- राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के मुख्य उद्देश्य भारत की पांडुलिपि विरासत का दस्तावेज़ीकरण, संरक्षण, डिजिटलीकरण और ऑनलाइन प्रसार करना है।
- इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये मिशन ने पूरे भारत में 100 से अधिक पांडुलिपि संसाधन केंद्र और पांडुलिपि संरक्षण केंद्र स्थापित किये हैं।
- भारत में अनुमानतः दस मिलियन पांडुलिपियाँ हैं, जो संभवतः विश्व का सबसे बड़ा संग्रह है। इनमें विभिन्न प्रकार के विषय, बनावट और सौंदर्यशास्त्र, लिपियाँ, भाषाएँ, सुलेख, रोशनी तथा चित्रण शामिल हैं।
- राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के मुख्य उद्देश्य भारत की पांडुलिपि विरासत का दस्तावेज़ीकरण, संरक्षण, डिजिटलीकरण और ऑनलाइन प्रसार करना है।
- पांडुलिपि:
- पांडुलिपि कागज़, छाल, कपड़े, धातु, ताड़ के पत्ते या किसी अन्य सामग्री पर हस्तलिखित रचना होती है जो कम-से-कम पचहत्तर वर्ष पुरानी हो और जिसका महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक, ऐतिहासिक या सौंदर्यात्मक मूल्य हो।
- पांडुलिपियाँ ऐतिहासिक अभिलेखों जैसे पुरालेख, फरमान/अधिदेश और राजस्व अभिलेखों से भिन्न होती हैं, क्योंकि उनमें प्रत्यक्ष ऐतिहासिक सूचनाओं के बजाय मुख्य रूप से ज्ञान सामग्री होती है।
- पांडुलिपियाँ विभिन्न भाषाओं और लिपियों में होती हैं।
- पांडुलिपि कागज़, छाल, कपड़े, धातु, ताड़ के पत्ते या किसी अन्य सामग्री पर हस्तलिखित रचना होती है जो कम-से-कम पचहत्तर वर्ष पुरानी हो और जिसका महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक, ऐतिहासिक या सौंदर्यात्मक मूल्य हो।
नोट:
- प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्त्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अनुसार ‘प्राचीन संस्मारक’ किसी भी संरचना, निर्माण/संस्मारक या किसी टीले या समाधि की जगह अथवा किसी गुफा, शैल-मूर्तिकला, शिलालेख या पांडुलिपि को परिभाषित करता है जो ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक या कलात्मक रुचि का है और जो कम-से-कम 100 वर्षों से अस्तित्व में है।
राष्ट्रीय संस्कृति कोष क्या है?
- परिचय:
- सरकार ने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने, उसकी रक्षा करने और उसे संरक्षित करने की दिशा में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिये चैरिटेबल एंडोमेंट एक्ट, 1890 के तहत वर्ष 1996 में एक ट्रस्ट के रूप में राष्ट्रीय संस्कृति कोष (NCF) की स्थापना की।
- यह दाता/प्रायोजक संस्थाओं को सरकार के साथ सीधे भागीदार के रूप में भारत की समृद्ध मूर्त तथा अमूर्त संस्कृति और धरोहर (संस्मारक/सांस्कृतिक परंपराएँ) के संरक्षण, पुनरुद्धार, संरक्षण एवं विकास का समर्थन करने में सक्षम बनाने के लिये एक वित्तपोषण तंत्र के रूप में कार्य करता है।
- उद्देश्य:
- विशेषज्ञों और सांस्कृतिक प्रशासकों के एक कैडर का प्रशिक्षण एवं विकास।
- मौजूदा संग्रहालयों में अतिरिक्त स्थान प्रदान करना और नई एवं विशेष दीर्घाओं को समायोजित करने या बनाने के लिये नए संग्रहालयों का निर्माण करना।
- सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और रूपों, जो समकालीन परिदृश्यों में अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं या तो लुप्त हो रहे हैं या विलुप्त होने का सामना कर रहे हैं, का दस्तावेज़ीकरण।
- NCF की विशेषताएँ:
- NCF विरासत, संस्कृति और कला के क्षेत्र में साझेदारी के लिये एक भरोसेमंद तथा नवीन मंच प्रदान करता है।
- परियोजनाओं की देखरेख एक परियोजना कार्यान्वयन समिति (PIC) द्वारा की जाती है जिसमें दाता, कार्यान्वयनकर्त्ता और NCF के प्रतिनिधि होते हैं।
- NCF के खातों का लेखा-जोखा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा वार्षिक रूप से किया जाता है।
- सदस्य:
- NCF का प्रबंधन संस्कृति मंत्री की अध्यक्षता वाली परिषद और सचिव की अध्यक्षता वाली कार्यकारी समिति द्वारा किया जाता है।
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