क्या अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के प्रभावों का मूल्यांकन होना चाहिए?

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अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की 5वीं वर्षगाँठ

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की पाँचवीं वर्षगाँठ मनाई गई। 5 अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था।

अनुच्छेद 370 क्या था?

  • अनुच्छेद 370:
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था।
    • इसका मसौदा भारतीय संविधान सभा के सदस्य एन. गोपालस्वामी अयंगर द्वारा तैयार किया गया था और इसे वर्ष 1949 में एक ‘अस्थायी उपबंध’ के रूप में जोड़ा गया था।
    • अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता था। इसने राज्य को अपना संविधान एवं ध्वज रखने के साथ ही रक्षा, विदेशी मामले एवं संचार को छोड़कर अधिकांश मामलों में स्वायत्तता रखने की अनुमति दी।
    • इसके तहत भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों- रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिये कानून बना सकती थी।
    • यह प्रावधान विलय पत्र (Instrument of Accession) की शर्तों पर आधारित था, जिस पर पाकिस्तान के आक्रमण के बाद 1947 में जम्मू और कश्मीर के शासक हरिसिंह ने हस्ताक्षर किये थे।
  • अनुच्छेद 370 का निरसन:
    • राष्ट्रपति का आदेश (Presidential Order): वर्ष 2019 के राष्ट्रपति के आदेश में संसद ने एक प्रावधान पेश करते हुए ‘जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा’ को ‘जम्मू और कश्मीर की विधान सभा’ के रूप में नया अर्थ प्रदान किया।
      • अनुच्छेद 370 को रद्द करने के लिये राष्ट्रपति शासन के माध्यम से विधानसभा की शक्तियों को ग्रहण कर लिया।
    • संसद में संकल्प: संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा द्वारा क्रमशः 5 और 6 अगस्त 2019 को समवर्ती संकल्प पारित किये गए।
      • इन संकल्पों ने अनुच्छेद 370 के शेष प्रावधानों को भी रद्द कर दिया और उन्हें नए प्रावधानों से प्रतिस्थापित किया।
    • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को संसद द्वारा 5 अगस्त, 2019 को पारित किया गया। इस अधिनियम ने जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों- ‘जम्मू और कश्मीर’ तथा ‘लद्दाख’ में विभाजित कर दिया।
  • अनुच्छेद 370 पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
    • दिसंबर 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखने का फैसला सुनाया तथा राष्ट्रपति के दो आदेशों को वैध ठहराया, जिसने भारतीय संविधान को जम्मू और कश्मीर पर लागू करने को बढ़ा दिया एवं अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय कर दिया।

जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019

  • इसने जम्मू और कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया।
  • इसने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया, जिसने जम्मू और कश्मीर को एक विशिष्ट दर्जा प्रदान किया था।
  • लेह और कारगिल ज़िले लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश में शामिल कर दिए गए, जबकि शेष क्षेत्र जम्मू-कश्मीर का हिस्सा बन गए।
  • पाँच लोकसभा सीटें जम्मू-कश्मीर को बरकरार रखी गईं तथा एक सीट लद्दाख को स्थानांतरित कर दी गई।
  • विधानमंडल: केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में जनजाति तथा अनुसूचित जाति के लोगों की जनसंख्या का अनुपात बरकरार रखने के लिये विधानसभा में सीटें आरक्षित रहेंगी।
    • यदि महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता को उचित ठहराने के लिये पर्याप्त नहीं है, तो उपराज्यपाल विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिये दो महिला सदस्यों को नामित कर सकते हैं।
    • निर्वाचित विधानसभा 5 वर्ष के लिये होगी तथा उपराज्यपाल प्रत्येक छह माह में एक बार विधानसभा सत्र को बुलाएंगे।
    • विधान सभा को भारतीय संविधान की राज्य सूची में सूचीबद्ध किसी भी मामले से संबंधित जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के किसी भी हिस्से के लिये कानून पारित करने का अधिकार है, सिवाय “पुलिस” और “सार्वजनिक व्यवस्था” के।
    • समवर्ती सूची में निर्दिष्ट कोई भी मामला भारतीय केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा। इसके अलावा, संसद के पास जम्मू कश्मीर और उसके केंद्र शासित प्रदेश के लिये कानून बनाने का निर्णय लेने का अधिकार होगा।

अनुच्छेद 370 पर सर्वोच्च न्यायालय (SC) का निर्णय

  • संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा था, जिसके कारण जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया गया एवं इसके विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर संप्रभु नहीं है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर संविधान और अनुच्छेद 370 दोनों में कहा गया है कि राज्य को विलय समझौते के माध्यम से अपनी संप्रभुता का त्याग करने की आवश्यकता नहीं है।
    • SC ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी प्रावधान के रूप में रखा गया था, क्योंकि इसे संविधान के भाग XXI में रखा गया था। विलय के दस्तावेज़ में स्पष्ट किया गया था कि अनुच्छेद 1, जिसमें कहा गया है कि “भारत राज्यों का संघ होगा,” पूरी तरह से J&K पर लागू होता है।
    • SC ने सहमति व्यक्त की कि राष्ट्रपति राज्य विधानसभा को भंग करने सहित अपरिवर्तनीय परिवर्तन कर सकते हैं, लेकिन ये शक्तियाँ न्यायिक और संवैधानिक जाँच के अधीन हैं।
    • न्यायालय ने माना कि J&K का संविधान निष्क्रिय है क्योंकि भारतीय संविधान अब पूरी तरह से जम्मू और कश्मीर पर लागू होता है।

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की आवश्यकता क्यों थी?

  • एकीकरण और विकाससंसाधनों, बुनियादी ढाँचे के विकास और आर्थिक अवसरों तक बेहतर पहुँच को सक्षम करने तथा क्षेत्र को शेष भारत के साथ करने हेतु।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: भारत सरकार द्वारा बेहतर नियंत्रण और सख्त सुरक्षा उपायों के माध्यम से क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी प्रयासों को प्रोत्साहित करने हेतु।
  • भेदभाव को समाप्त करना: भारतीय कानूनों के तहत महिलाओं, दलितों और अन्य हाशिये पर स्थित समूहों के लिये समान अधिकार एवं अवसर सुनिश्चित करने के लिये, जिससे सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिले।
  • कानूनी एकरूपता: पूरे भारत में एक समान कानून लागू करके कानूनी भ्रम और असमानताओं को समाप्त करने के लिये जिससे सभी नागरिकों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित हो सकें।
  • जनसांख्यिकीय परिवर्तन: बाह्य निवेश को प्रोत्साहित कर क्षेत्र को आर्थिक और सामाजिक रूप से स्थिर करने के साधन के रूप में विकसित करने के लिये, हालाँकि जनसांख्यिकीय परिवर्तनों तथा संपत्ति के अधिकारों के संबंध में भी चिंताएँ विद्यमान रहीं।
  • राजनीतिक स्थिरता: इस कदम का उद्देश्य एक स्थिर राजनीतिक माहौल को बढ़ावा देना, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को फिर से स्थापित करना और स्थानीय शासन में सुधार करना था।

अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण का क्या प्रभाव पड़ा है?

  • कानूनों में एकरूपता:
    • निवास कानूनों में बदलाव: अप्रैल 2020 में, केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के लिये निवास खंड पेश किया, जिसमें निवास और भर्ती नियमों को फिर से परिभाषित किया गया। इससे कोई भी व्यक्ति जो जम्मू-कश्मीर में 15 वर्ष  से रह रहा है या जिसने 7 वर्ष  तक शिक्षा ग्रहण की है और जम्मू-कश्मीर में कक्षा 10वीं/12वीं की परीक्षा दी है, वह पहले से जारी स्थायी निवासी प्रमाणपत्रों की जगह अधिवास प्रमाण पत्र के लिये पात्र हो गया।
    • भूमि कानूनों में बदलाव: सरकार ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर में 14 भूमि कानूनों में संशोधन किया, जिनमें से 12 को निरस्त कर दिया गया, जिसमें जम्मू और कश्मीर भूमि अलगाव अधिनियम, 1938 और बिग लैंडेड एस्टेट्स एबोलिशन एक्ट, 1950 शामिल हैं, जिसने गैर-स्थायी निवासियों को अलग करके स्थायी निवासियों के लिये भूमि जोत की रक्षा की थी।
      • हाल ही में, जम्मू-कश्मीर (J&K) सरकार ने पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थियों (WPR) और  वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान विस्थापित व्यक्तियों को स्वामित्व अधिकार प्रदान किये।
    •  भारतीय न्याय संहिता (BNS) (जिसे पहले IPC कहा जाता था) लागू हुई: जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा निरस्त होने के साथ ही सभी केंद्रीय कानून प्रासंगिक हो गए और राज्य का संविधान अप्रचलित हो गया।
      • रणबीर दंड संहिता को IPC (अब BNS) से प्रतिस्थापित कर दिया गया तथा जम्मू-कश्मीर में अभियोजन शाखा को कार्यकारी पुलिस से अलग कर दिया गया।
    • राज्य जाँच एजेंसी (SIA) की स्थापना: नवंबर 2021 में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने आतंकवाद से संबंधित मामलों की त्वरित और प्रभावी जाँच एवं अभियोजन के लिये राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) तथा अन्य केंद्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय करने हेतु एक विशेष एजेंसी के रूप में राज्य जाँच एजेंसी (SIA) की स्थापना की।
  • हिंसा में कमी: अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों, स्थानीय उग्रवादियों की भर्ती और आतंकवादी हत्याओं में उल्लेखनीय कमी आई है तथा पिछले पाँच वर्षों में पथराव, अलगाववादी हड़ताल व हिंसक विरोध प्रदर्शन लगभग समाप्त हो गए हैं।
  • नवीन  भागीदारी: जम्मू-कश्मीर ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में 35 वर्षों में अपना सबसे अधिक मतदाता मतदान दर्ज किया, जिसमें कश्मीर घाटी में वर्ष 2019 की तुलना में 30 अंकों की वृद्धि देखी गई। वर्ष 2024 के संसदीय चुनाव अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद केंद्रशासित प्रदेश में पहला बड़ा चुनाव था।   
  • इस क्षेत्र में पर्यटन में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई, जिसने वर्ष 2023 में 21.1 मिलियन से अधिक आगंतुकों को आकर्षित किया और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला।
  • इस क्षेत्र में पर्यटन में असाधारण वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2023 में 21.1 मिलियन से अधिक आगंतुकों को आकर्षित किया, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। कोविड-19 और अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पर्यटन में वृद्धि हुई, जिसके और बढ़ने की उम्मीद है।
  • व्यापार और निवेश: वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर ने विभिन्न क्षेत्रों में 5,656 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया।
    • फरवरी 2021 में शुरू की गई औद्योगिक विकास के लिए नई केंद्रीय क्षेत्र योजना ने वर्ष 2020-21 में 310 निवेश, 2021-22 में 175 और 2022-23 में 1,074 निवेश को बढ़ावा दिया।
    • लेफ्टिनेंट गवर्नर ने बताया कि दो वर्षों के भीतर 66,000 करोड़ रुपए के निजी निवेश प्रस्ताव आए।
  • बेहतर बुनियादी अवसरंचना: सरकार ने जम्मू-कश्मीर में बुनियादी अवसरंचना के विकास में भी महत्त्वपूर्ण निवेश किया है। इसमें नई सड़कों, पुलों, सुरंगों और विद्युत लाइनों के निर्माण जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं।
    • इन सुधारों से लोगों के लिये क्षेत्र में यात्रा करना और व्यापार करना आसान हो गया है।

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में क्या नई चुनौतियाँ उत्पन्न हुई?

  • राजनीतिक अस्थिरता और शासन संबंधी मुद्दे: 500 से अधिक राजनीतिक नेताओं की नजरबंदी और संचार व्यवस्था पर प्रतिबंध के कारण शासन में शून्यता उत्पन्न हो गई तथा स्थानीय अलगाव बढ़ गया।
  • सुरक्षा चिंताएँ और उग्रवाद: उग्रवादी गतिविधियों में पुनरुत्थान के कारण अधिक भर्ती हुई और सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ गईं, जिसके परिणामस्वरूप मुठभेड़ों व नागरिक हादसों की संख्या में वृद्धि हुई।
    • उदाहरण: हाल ही में जम्मू में भारतीय सेना और तीर्थयात्रियों के काफिले पर आतंकवादी हमला।
    •  जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का नया रुझान स्थानीय आतंकवादियों की ओर झुकाव, आधुनिक तकनीक का बढ़ता प्रयोग तथा पूर्वी लद्दाख में सैन्य तैनाती स्थानीय खुफिया तंत्र का कमज़ोर होना दर्शाता है।
  • सामाजिक-आर्थिक व्यवधान: लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकुचन हुआ, विशेष रूप से पर्यटन क्षेत्र में 2020 में 80% से अधिक की गिरावट आई, जिससे बेरोजगारी और युवाओं में  असंतोष बढ़ा।
  • मानवाधिकार उल्लंघन: बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लिये जाने, सुरक्षा बलों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जाने के मामले सामने आए, जिससे स्थानीय स्तर पर आक्रोश बढ़ा।
  • लद्दाख में प्रशासनिक चुनौतियाँ: विभाजन के कारण लद्दाख में प्रशासनिक समस्याएँ उत्पन्न हुईं, जिसमें अपर्याप्त अवसंरचना और शासन व्यवस्था शामिल है। लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद विकास में अधिक स्वायत्तता और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण पाने के लिये छठी अनुसूची के तहत शामिल किये जाने तथा पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने की माँग कर रही है।
  • सांस्कृतिक और पहचान संबंधी चिंताएँ: बाहरी लोगों के आने से सांस्कृतिक मिश्रण और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के भय को लेकर क्षेत्रीय दलों ने स्थानीय लोगों के लिये भूमि एवं नौकरी की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ व्यक्त कीं।
  • समयसीमा और चुनाव: सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2024 तक चुनाव कराने का सुझाव दिया है। मुख्य कार्यों में एक स्पष्ट समयसीमा निर्धारित करना, रसद और सुरक्षा चुनौतियों पर काबू पाना तथा निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना शामिल है।
    • राज्य की स्थिति में सुचारू रूप से परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिये व्यापक राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • सुरक्षा और मानवाधिकार: नागरिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, सुरक्षा संबंधी चिंताओं का समाधान किया जाए और शांति को बढ़ावा देने के लिये स्वतंत्र रूप से किसी भी मानवाधिकार उल्लंघन की जाँच की जाए।
  • आर्थिक और सामाजिक एकीकरण: आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन और अवसंरचना में सुधार पर ध्यान देने की आवश्यकता है। भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन सद्भावना’ के माध्यम से सामाजिक सामंजस्य और संवाद को बढ़ावा देने के साथ ही शेष शिकायतों का समाधान किया जाना चाहिये।

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