स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क्या अंतर है ?

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स्वतंत्रता का अर्थ क्या है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोल कर फहराया जाता है, जिसे *ध्वजारोहण कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है।जबकि

26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है।

15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं।

जबकि

26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं

स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है। जबकि गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है।

आग्रह है ये अंतर अपने बच्चों को जरूर बताएं।

स्वतंत्रता का अर्थ क्या है?

स्वतंत्रता का अर्थ केवल पराधीनता की बेड़ियों से मुक्ति के स्मरण का उत्सव नहीं है। स्वतंत्रता कर्त्तव्य का बोध कराती है। एक पराधीन व्यक्ति वह होता है जिसका कर्तव्य दूसरे के द्वारा बाधित होता है। वह यह निर्णय नहीं कर सकता कि हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है। जब किसी के कर्त्तव्यों का निर्धारक कोई दूसरा बन जाए इस ही पराधीनता कहते हैं।

पराधीन व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों का निर्धारक स्वयं नहीं होता। स्वाधीनता का अभिप्राय ही यही है कि व्यक्ति अपने स्वतः निर्धारक बन जाए। राष्ट्र के लिए भी ऐसा ही है। राष्ट्र की स्वाधीनता का अर्थ है राष्ट्रीय कर्त्तव्यों का निर्धारण यानी तंत्र का विकास। यह राष्ट्रीय कर्त्तव्यों का विकसित तंत्र ही राष्ट्र को स्वतंत्र बनाता है।

यथार्थ भें स्वतंत्रता का कोई दिवस नहीं होता। स्वतंत्रता एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति को क्षण-क्षण अपनी स्वतंत्रता यानी कर्त्तव्यों का बोध होना चाहिए तभी स्वतंत्रता सफल है अन्यथा अंग्रेजों की पराधीनता से मुक्ति को स्मरण करने मात्र से स्वतंत्रता चरितार्थ नहीं हो सकती। 15 अगस्त 1947 को देश स्वाधीन हुआ था, लेकिन वह कितना स्वतंत्र हो पाया यह विचारणीय है। देश को स्वतंत्रता की अहर्निश साधना की आवश्यकता है, जिससे राष्ट्रीय कर्त्तव्यबोध का जागरण हो सके।

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