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सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर 20 वर्ष पुराना फैसला क्यों पलट दिया?

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 सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से दिया फैसला

एससी-एसटी कोटे में क्या-क्या बदलाव होंगे?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था को प्रभावित करने वाला ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कोटे में कोटा यानी आरक्षण के भीतर आरक्षण पर मुहर लगाई है। इतना ही नहीं कोर्ट ने एससी, एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर भी बल दिया है।

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से दिए फैसले में कहा कि एससी, एसटी वर्ग के ही ज्यादा जरूरतमंदो को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्य एससी, एसटी वर्ग में उपवर्गीकरण कर सकते हैं। सर्वोच्च अदालत ने बीस साल पुराने पांच न्यायाधीशों के ईवी चिनैया (2004) मामले में दी गई व्यवस्था को गलत ठहरा दिया है।

कोर्ट ने 2004 का फैसला पलटा

ईवी चिनैया फैसले में पांच न्यायाधीशों ने कहा था कि एससी, एसटी एक समान समूह वर्ग हैं और इनका उपवर्गीकरण नहीं हो सकता। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ ने इस मुद्दे पर लंबित करीब दो दर्जन याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है।

पंजाब के मामले पर चल रही थी सुनवाई

मुख्य मामला पंजाब का था, जिसमें एससी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों में से पचास फीसद सीटें वाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए आरक्षित कर दी गईं थी। पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सात न्यायाधीशों के पीठ के समक्ष विचार का मुख्य मुद्दा यही था कि क्या एससी, एसटी वर्ग का उपवर्गीकरण किया जा सकता है ताकि आरक्षण का लाभ उसी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे।

ऐतिहासिक फैसले की अहम बातें

  • संविधान पीठ ने एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान के लिए नीति बनाने को कहा।
  • उपवर्गीकरण वाली जातियों को सौ प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
  • वर्गीकरण तर्कसंगत सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए।
  • कम प्रतिनिधित्व और ज्यादा जरूरतमंद साबित करने वाले आंकड़ों को एकत्र करने की जरूरत।
  • आरक्षण नीति के पुनर्वलोकन और उत्थान का कोई और तरीका खोजने पर भी कोर्ट का जोर।

565 पेज का है पूरा फैसला

इस मामले में ईवी चिनैया का पांच न्यायाधीशों का फैसला था, जो कहता है कि एससी, एसटी वर्ग में उपवर्गीकरण नहीं किया जा सकता। ईवी चिनैया का फैसला पांच जजों का होने के कारण यह मामला विचार के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया था। सात में से छह न्यायाधीशों ने बहुमत का फैसला सुनाया है। कुल फैसला 565 पृष्ठ का है, जिसमें छह अलग-अलग फैसले दिये गए हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्वयं और जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से फैसला दिया, जबकि जस्टिस गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अलग से दिए फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस गवई के फैसले से सहमति जताई है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने बहुमत से असहमति जताने वाला फैसला दिया है।

क्रीमीलेयर की पहचान पर जोर

जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में पूरा जोर एससी एसटी आरक्षण में ज्यादा जरूरतमंदों को लाभ देने के लिए राज्यों को एससी, एसटी के उपवर्गीकरण के अधिकार पर दिया है, जबकि जस्टिस गवई ने उपवर्गीकरण की व्यवस्था से सहमति जताते हुए अपने अलग से दिये फैसले में ज्यादा जोर एससी, एसटी में क्रीमीलेयर की पहचान कर उन्हें बाहर करने की नीति बनाने की जरूरत पर दिया है। बाकी के न्यायाधीशों ने जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस गवई के फैसलों से सहमति जताते हुए अपने अलग अलग तर्क दिये हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा है कि राज्य को एससी, एसटी वर्ग के उपवर्गीकरण का अधिकार है। एससी, एसटी के उपवर्गीकरण को संवैधानिक और सही ठहराते हुए उन्होंने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता ) उन वर्गों के उपवर्गीकरण की इजाजत देता है, जो समान स्थिति में नहीं हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 16(4) (सरकारी नौकरियों में आरक्षण ) के लिए उपवर्गीकरण करने के लिए राज्य की नौकरियों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़े होने चाहिए, जो कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के संकेत देते हों।

‘नई व्यवस्था बनाने की जरूरत’

चीफ जस्टिस ने कहा कि ऐतिहासिक साक्ष्य दर्शाते हैं कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से विषम वर्ग हैं और राज्य अनुच्छेद 15(4) और 16(4) में मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अनुसूचित जाति का उपवर्गीकरण कर सकता है, लेकिन ये वर्गीकरण तर्कसंगत सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए और तर्कसंगत सिद्धांत का उपवर्गीकरण के उद्देश्य से संबंध होना चाहिए।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि ईवी चिनैया फैसले में अनुसूचित जाति वर्ग के उपवर्गीकरण की मनाही करने वाली व्यवस्था को खारिज किया जाता है। जस्टिस गवई ने अलग से दिये फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ से पूर्ण सहमति जताते हुए मुद्दे को महत्वपूर्ण कहते हुए क्रीमीलेयर की पहचान और उसे बाहर करने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य को एससी और एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए अनिवार्य रूप से नीति बनानी चाहिए ताकि उन्हें आरक्षण का लाभ लेने से बाहर किया जा सके।

100 फीसदी सीटों का नहीं हो सकता उपवर्गीकरण

उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि संविधान में दिये गए समानता के सिद्धांत को प्राप्त करने का सिर्फ यही एकमात्र तरीका है। ज्यादा जरूरतमंदों को लाभ देने के लिए एसीसी वर्ग में उपवर्गीकरण की कानून में इजाजत है। हालांकि उन्होंने भी कम प्रतिनिधित्व और ज्यादा जरूरतमंद साबित करने वाले आंकड़ों को एकत्र करने की बात कही है। जस्टिस गवई ने फैसले में स्पष्ट किया है कि उपवर्गीकरण करते वक्त राज्य सौ फीसद सीटें उपवर्गीकरण के लिए आरक्षित नहीं कर सकता। राज्य अन्य जातियों को पूरे तौर पर बाहर नहीं कर सकता।

इसका मतलब है कि राज्यों के पास ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए उपवर्गीकरण का अधिकार है, लेकिन इसके तहत एससी जाति के कुछ वर्गों तक ही आरक्षण का लाभ सीमित नहीं किया जा सकता, उसे मूल वर्ग और उपवर्ग दोनों को आरक्षण का लाभ देना होगा। जस्टिस गवई ने फैसले में कहा है कि एम. नागराज और दविन्दर सिंह के पूर्व फैसलों में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू करने की दी गई व्यवस्था सही कानून है, लेकिन साथ ही कहा है कि एससी और एसटी से क्रीमी लेयर बाहर करने के मानक अन्य पिछड़ा वर्ग की क्रीमी लेयर से भिन्न होंगे।

अन्य न्यायाधीशों ने जताई सहमति

जस्टिस पंकज मित्तल ने जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस गवई के फैसले से सहमति जताते हुए अपने अलग से दिये फैसले में आरक्षण नीति के पुनर्वलोकन और उत्थान का कोई और तरीका खोजने पर बल दिया और मौजूदा तरीके को जाति व्यवस्था को पुनर्जीवित करने वाला बताया है। हालांकि उन्होंने एससी, एसटी के उपवर्गीकरण और क्रीमी लेयर की पहचान के फैसलों से सहमति जताई है।

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बताया संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ

जस्टिस विक्रम नाथ उपवर्गीकरण और क्रीमीलेयर की पहचान के मूल फैसलों से सहमति जताते हुए कहा है कि क्रीमीलेयर की पहचान के मानक अन्य पिछड़ा वर्ग से भिन्न होने चाहिए। जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने मूल फैसलों से सहमति जताते हुए अलग से फैसला दिया है। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने बहुमत से असहमति जताते हुए कहा है कि एससी, एसटी का उपवर्गीकरण संवैधानिक प्रविधानों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 341 और अनुच्छेद 342 में जारी राष्ट्रपति की सूची में कोई भी बदलाव सिर्फ संसद कर सकती है, राज्यों को यह अधिकार नहीं है।

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