अपनी देसी पकौड़ी रिकवच की बात ही कुछ और है।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अलग अलग राज्यों में अलग अलग नाम से जाना जाता है। बनाने की विधि हर जगह की लगभग एक जैसी है बस थोड़ा बहुत ही अंतर होता है, पतोड़, पितोड़, पातरा, रिकवच जैसे नामों से जाना जाने वाला ये पकवान हमारे उत्तर प्रदेश में सोहिना नाम से नाम जाना जाता है।

पुराने समय में पकवान कभी कभार ही बनता था जिस दिन बनता था उस दिन घर में त्यौहार जैसा माहौल रहता था। कभी कभार बनने के पीछे कारण था। इसे बनाना बहुत मेहनत का कार्य होता था। जिस दिन सोहिना बनता था उस दिन घर की सभी महिलाओ को रसोई संभालनी पड़ती थी।
अब आप लोग सोच रहे होंगे लो भला! इसमें क्या मेहनत लगती है?पत्ते लावो बेसन लपेटो बना लो। नहीं, नहीं! हमारे यहां ये बेसन में नहीं बनता है ये उड़द और चने की दाल पीसकर फिर बनाया जाता है।

रात भर दोनों दाल को भिगोकर, सुबह मसल मसल कर दालो को धोया जाता था ताकि सारे छिलके उतर जाये। जब लगभग सारे छिलके उतर जाते थे तब सिल बट्टे पर इस दाल को बारीक़ पीसते थे। पीसी हुई दाल को दालपीठी कहा जाता है। भुना जीरा पाउडर, काली मिर्च पाउडर, हींग, नमक दाल की पीठी में डालकर अच्छी तरह से मिलाया जाता था। हम जैसे चटोरे बच्चे नमक टेस्ट करने के लिए ललचाये बैठे रहते थे। हमारी हथेली पर थोड़ी सी दालपीठी मिलती थी कहा जाता था कि चखकर बताओ नमक मिर्च सब पता चल रहा है। हम सब चटकारे लेकर टेस्ट करके बताते थे तब सोहिना बनाने की प्रक्रिया आगे बढ़ती थी।

पहले के समय में भोजन बनाते समय कभी टेस्ट नहीं किया जाता था माना जाता था कि इससे रसोई जूठी हो जाती है। बिन टेस्ट किये ही हमारी माताओं का हिसाब किताब इतना पक्का होता था कि शायद ही कभी नमक मिर्च कम ज्यादा हुई हो।
हां! तो दाल पीठी तैयार होने के बाद एक सदस्य जाकर खेत से अरवी के कोमल कोमल पत्ते काटकर लाता था। ये काम बड़ी सावधानी से करना पड़ता था क्योंकि अरवी के कटे पत्तों से जो पानी निकलता था उसका दाग कपड़ों में लग जाय तो कभी छूटता नहीं था।

एक एक पत्ते अच्छी तरह से धोकर रखे जाते थे। एक तरफ चूल्हे पर किसी बड़े पतीले में पानी चढ़ा दिया जाता था। उस पतीले पर बिन पेदे की एक सिकहुली ( टोकरी )सूती कपड़ा बिछाकर रखी जाती थी या फिर पतली पतली लकड़ी की टहनी तोड़कर इस तरह रख देते थे कि भाप भी निकलती रहे और सोहिना भी न गिरे।
दूसरी तरफ घर की सबसे अनुभवी महिला एक बड़ा सा परात (थाली )उल्टा करके उस पर पत्ते बिछाकर दालपीठी अच्छी तरह से लगाती थी लगभग दो तीन पत्ते को ऊपर नीचे रखकर दाल पीठी लगाई जाती थी फिर सावधानी पूर्वक उसे मोड़ दिया जाता था और पहले से ही पतीले में उबलने के रखे पानी के ऊपर टोकरी में रखकर भाप से पका लिया जाता था।

कुछ लोगो को सिर्फ भाप से ही पके हुए सोहिना अच्छे लगते है तो कुछ लोगो को तले हुए। कुछ टुकड़े बिन तले रखकर बाकियों को तल लिया जाता है।
इस सोहिना को आप खटाई की तीखी चटपटी चटनी से खाइये आहा! क्या गजब का स्वाद होता है। दाल पीठी से थोड़ी दाल बचा ली जाती थी और सोहिना तलने के बाद बचे तेल में मेथी दाना, साबुत सूखी लाल मिर्च, हींग का तड़का लगाकर दाल को पानी में घोलकर कड़ाही में डाल कर आवश्यकतानुसार हल्दी,नमक,खटाई डालकर उबाल आने के बाद अच्छी तरह से पकाकर कढ़ी बनाई जाती है जिसे हमारी तरफ” लपटा” कहते है। जब लपटा पक जाये तब बिन तला हुआ सोहिना लपटा अर्थात कढ़ी में डाल दे और चावल के साथ आनंद ले।

हमारे यहां सोहिना के साथ लपटा, चावल ही बनाने का रिवाज़ है इसे इसी तरह से ही खाया जाता है।

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