हैदराबाद के भारत में विलय की 76वीं वर्षगाँठ मनाई गई

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

  • हैदराबाद को भारतीय संघ के लिये सुरक्षा खतरा बनने से रोकने के लिये ऑपरेशन पोलो शुरू किया गया था ।

हैदराबाद के भारत में विलय से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • हैदराबाद की पृष्ठभूमि: हैदराबाद दक्षिण भारत में एक बड़ी स्थल-रुद्ध रियासत थी जिसमें वर्तमान तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र शामिल था।
    • इसकी अधिकांश जनसंख्या हिंदू (87%) थी जबकि इसके शासक निज़ाम उस्मान अली खान मुस्लिम थे, जिन्हें मुस्लिम अभिजात वर्ग का समर्थन प्राप्त था।
    • निज़ाम और इत्तेहादुल मुस्लिमीन (अखिल भारतीय मुस्लिम एकता परिषद) ने हैदराबाद की स्वतंत्रता के लिये प्रयास किया तथा वे चाहते थे कि यह राज्य भारत तथा पाकिस्तान के बराबर स्वायत्त हो।
  • निज़ाम द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा: जून 1947 में निज़ाम उस्मान अली खान ने एक फरमान जारी कर ब्रिटिश द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरण के बाद हैदराबाद के स्वतंत्र रहने के इरादे की घोषणा की थी।
    • भारत ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हैदराबाद का स्थान भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
    • इस आलोक में अस्थायी स्टैंडस्टिल समझौते (यथास्थिति बनाए रखने के लिये) पर हस्ताक्षर किये  गए, लेकिन हैदराबाद फिर भी भारत में शामिल नहीं हुआ।
  • हैदराबाद की स्वतंत्रता की ओर कदम: निज़ाम ने पाकिस्तान को 200 मिलियन रुपए दिये थे तथा वहाँ एक बमवर्षक स्क्वाड्रन तैनात किया था, जिससे भारतीयों में संदेह की भावना और भी प्रबल हुई।
    • हैदराबाद ने भारतीय मुद्रा पर प्रतिबंध लगा दिया तथा पाकिस्तान से हथियार आयात किये और अपनी सैन्य शक्ति का विस्तार किया।
    • आस्ट्रेलियाई एविएटर सिडनी कॉटन को निज़ाम ने हैदराबाद में हथियारों की तस्करी के लिये रखा था।
  • रजाकारों की भूमिका: रजाकार, इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (अखिल भारतीय मुस्लिम एकता परिषद) से संबद्ध मिलिशिया थे, जिसका नेतृत्व कासिम रजवी करते थे तथा ये मुस्लिम शासक वर्ग को किसी भी विद्रोह से बचाने के लिये कार्य करते थे।
    • रजाकारों द्वारा हिंदुओं के विरुद्ध अत्याचारों सहित विपक्ष का हिंसक दमन करने से तनाव और भी बढ़ गया।
    • उन्होंने उन हैदराबादी मुसलमानों को भी लक्ष्य बनाया जो भारत में विलय के पक्ष में थे।
  • राजनीतिक आंदोलन: आंतरिक रूप से हैदराबाद को तेलंगाना में कम्युनिस्ट विद्रोह का सामना करना पड़ा। यह एक किसान विद्रोह था जिसे निज़ाम रोक नहीं सका, जिससे उसकी स्थिति और कमज़ोर हो गई।
  • अंतर्राष्ट्रीय अपील: निज़ाम ने ब्रिटिश समर्थन मांगा और बाद में इसमें भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस से संबद्ध हैदराबाद राज्य कॉन्ग्रेस ने भारत में हैदराबाद के एकीकरण हेतु राजनीतिक आंदोलन शुरू किया था।
  • मेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन तथा संयुक्त राष्ट्र को शामिल करने का प्रयास किया, लेकिन उनके प्रयास असफल रहे।
    • अगस्त 1948 में माउंटबेटन द्वारा बातचीत के माध्यम से समाधान के प्रयास विफल होने के बाद , निज़ाम ने आसन्न भारतीय आक्रमण की आशंका के चलते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपील की।
  • ऑपरेशन पोलो (हैदराबाद पुलिस कार्रवाई): निज़ाम के साथ वार्ता का हल न निकलने के कारण सरदार पटेल चिंतित हो रहे थे।
    • 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना ने आंतरिक कानून और व्यवस्था की चिंताओं का हवाला देते हुए हैदराबाद में सैन्य अभियान “ऑपरेशन पोलो” शुरू किया।
    • इसे “पुलिस कार्रवाई” कहा गया क्योंकि यह भारत का आंतरिक मामला था।
    • 17 सितंबर, 1948 को निज़ाम ने प्रधानमंत्री मीर लाइक अली और उनके मंत्रिमंडल को बर्खास्त करके औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया।

हैदराबाद के भारत में विलय का क्या महत्त्व है?

  • भारत की एकता और अखंडता: निज़ाम और रजाकारों के विरोध के बावजूद हैदराबाद के भारत में एकीकरण से भारतीय संघ की एकता, अखंडता एवं स्थिरता मज़बूत हुई।
  • पंथनिरपेक्षता की जीत: यह न केवल एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक जीत थी बल्कि पंथनिरपेक्षता की भी जीत थीक्योंकि इसमें भारत के साथ एकीकरण के क्रम में भारतीय मुसलमानों का समर्थन भी उजागर हुआ।
    • भारत के पक्ष में भारतीय मुसलमानों की भागीदारी से पूरे देश में सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  • आगे के संकट को रोका जाना: चल रही वार्ता के बावजूद हैदराबाद की सरकार ने संघर्ष की तैयारी करते हुए हथियारों का आयात जारी रखा।
    • तत्काल सैन्य कार्रवाई से उग्रवाद जैसी स्थिति को रोका जा सका, जो विदेशी शक्तियों की मदद से दशकों तक रह सकती थी।
  • बल प्रयोग: हथियारों के आयात और विदेशी शक्तियों की भागीदारी ने भारत के लिये हैदराबाद मुद्दे को हल करने की तात्कालिकता को बढ़ा दिया, जिसे अब एक संभावित सुरक्षा खतरे के रूप में देखा जा रहा था
    • ऑपरेशन पोलो से प्रदर्शित हुआ कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के लिये बल प्रयोग करने से पीछे नहीं हटेगा।
  • भारत की सफल कूटनीति: इससे भारत की कूटनीतिक और सैन्य रणनीतियों का संयोजन (विशेष रूप से हथियारों की आपूर्ति को रोकना) प्रदर्शित हुआ
    • उदाहरण के लिये, लंदन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के. कृष्ण मेनन के प्रयासों से हैदराबाद में हथियारों को सीमित किया गया था

रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल की क्या भूमिका थी?

  • अंतरिम सरकार में भूमिका (2 सितंबर, 1946): सरदार पटेल को गृह, राज्य और सूचना एवं प्रसारण विभाग आवंटित किये गये, जिससे स्वतंत्रता से पूर्व ही भारत के प्रशासन में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका देखी गई।
  • नेहरू की स्वीकृति: स्वतंत्रता से दो सप्ताह पूर्व (1 अगस्त, 1947 को) जवाहरलाल नेहरू ने पटेल को अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया और उन्हें “मंत्रिमंडल का सबसे मज़बूत स्तंभ” बताया।
  • लॉर्ड माउंटबेटन के साथ सहयोग: पटेल एवं माउंटबेटन ने मिलकर कार्य किया तथा राजकुमारों को भारत में विलय के लिये सहमत करने में कूटनीति और दबाव का उपयोग किया।
    • उन्होंने रियासतों को स्वतंत्र अस्तित्व के खतरों के प्रति आगाह किया।
  • राज्य विभाग का गठन (5 जुलाई, 1947): पटेल ने राज्य विभाग का गठन किया और वी.पी. मेनन को इसका सचिव नियुक्त किया।
    • इस विभाग का उद्देश्य रक्षा, विदेशी मामलों और संचार में राज्यों के हितों को सुरक्षित करना तथा साझा हितों के लिये स्थिर समझौतों को बनाए रखना था।
  • प्रलोभन और दंडात्मक दृष्टिकोण: विलय के लिये बातचीत करने का दायित्व पटेल पर था, उन्होंने दबाव तथा आश्वासन के बीच संतुलन बनाते हुए एक समझौतापूर्ण एवं कूटनीतिक रुख अपनाया।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने जूनागढ़ के लिये अपनी सभी सीमाएँ बंद कर दीं और वस्तुओं तथा डाक की आवाजाही पर रोक लगा दी, जिसके कारण जूनागढ़ को भारत सरकार के साथ समझौता हेतु उसे आमंत्रित करना पड़ा।
      • बाद में जनमत संग्रह कराया गया जिसमें 99% लोगों ने भारत में शामिल होने के पक्ष में मतदान किया।
  • मैत्री और समानता के लिये अपील: पटेल ने शासकों को स्वतंत्र भारत में मित्र के रूप में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया तथा इस बात पर बल दिया कि अलग-अलग संस्थाओं के रूप में संधियाँ करने की अपेक्षा, मिलकर कानून बनाना बेहतर है।
  • भारत के भूभाग पर एकीकरण का प्रभाव: विभाजन के दौरान भारत को 3.6 लाख वर्ग मील क्षेत्र और 81.5 मिलियन लोगों को खोना पड़ा लेकिन रियासतों के एकीकरण के माध्यम से 5 लाख वर्ग मील क्षेत्र तथा 86.5 मिलियन लोगों के रूप में इसकी भरपाई हुई।
  • ऑपरेशन पोलो ने हैदराबाद के विलय को सुरक्षित किया, जिससे 212,000 वर्ग किलोमीटर तथा17 मिलियन लोग जुड़ गए। सरकारी आँकड़े, विभाजन के बाद भारत के क्षेत्रफल को 5 लाख वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत करने में पटेल के प्रयासों को उजागर करते हैं, जो कि “भारत के लौह पुरुष” के रूप में उनकी भूमिका को स्थापित करते हैं।
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