संविदा कर्मियों पर नहीं छोड़ सकते सुरक्षा- सुप्रीम कोर्ट
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 31 वर्षीय महिला के साथ हुई घटना के बाद देश के कई हिस्सों में अभी भी विरोध प्रदर्शन चल रहा है। वहीं, डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार सुप्रीम कोर्ट के सामने कटघरे में खड़ी है जहां शीर्ष अदालत ने कड़े सवालों से बंगाल सरकार की बोलती बंद कर दी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने दागे सवाल पर सवाल
बंगाल सरकार के वकील के रूप में, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान अस्पतालों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए राज्य सरकार के कदमों को सूचीबद्ध किया, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि अस्पताल में सुरक्षा ड्यूटी पर संविदा कर्मचारी और नियमित पुलिसकर्मी क्यों नहीं थे। मुख्य न्यायाधीश ने इस तथ्य की ओर भी इशारा किया कि डॉक्टर के दुष्कर्म-हत्या का आरोपी संजय रॉय एक संविदाकर्मी ही था, जिसकी अस्पताल के हर कोने तक निर्बाध पहुंच थी।
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि क्या अस्पतालों में तैनात नए सुरक्षाकर्मी महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार के तरफ से ड्यूटी करने वाले पुलिसकर्मी या संविदकर्मी ही थे। सिब्बल ने जवाब दिया कि वे पुलिसकर्मी थे और स्पष्ट किया कि सुरक्षा ड्यूटी पर संविदा कर्मचारी एक अल्पकालिक उपाय था और उनकी जगह नियमित पुलिसकर्मी लेंगे।
संविदाकर्मी की पहुंच पूरी परिसर तक
मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कहा कि आप जानते है कपिल सिब्बल, वास्तव में क्या हुआ था। आरोपी संविदाकर्मी था। यदि आप संविदात्मक लोगों का एक और समूह रखने जा रहे हैं। तो इन संविदात्मक लोगों को सात दिनों के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा और फिर वे अस्पताल में इधर-उधर घूमते रहेंगे। इन संविदा कर्मचारियों के रात में अस्पताल में घूमने से युवा डॉक्टरों, विशेषकर महिला डॉक्टरों को क्या सुरक्षा मिलेगी?
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “महिला डॉक्टरों में असुरक्षा की भावना है। उन्हें नहीं पता कि ये लोग कौन हैं।” सिब्बल ने जवाब दिया कि सीआईएसएफ कर्मी वर्तमान में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में तैनात हैं और जूनियर डॉक्टर, जो ‘काम बंद’ विरोध पर हैं, ड्यूटी में शामिल हो सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया, “सीआईएसएफ वहां थोड़े समय के लिए रहेगी।” सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार तब तक व्यवस्था कर लेगी।
पुलिस चौकी के बावजूद, एफआईआर में देरी हुई
मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सरकार से कहा कि जब आप संविदा कर्मचारियों को सुरक्षा सौंपते हैं, खासकर अस्पतालों में, जहां लोग 36 घंटे ड्यूटी पर होते हैं, तो समस्या होती है। वस्तुतः महिला डॉक्टरों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। इस पर सिब्बल ने कहा कि हर अस्पताल में एक पुलिस चौकी है, तो मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया कि पुलिस चौकी के बावजूद, एफआईआर में देरी हुई।
जब सिब्बल ने जवाब दिया कि यदि अदालत चाहेगी तो राज्य सरकार रतिरर साथी (नाइट ड्यूटी पर लोग) को भंग कर देगी, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह अदालत की इच्छा का सवाल नहीं है, हम शासन के प्रभारी नहीं हैं। सिब्बल ने कहा कि अदालत को राज्य मशीनरी पर कुछ भरोसा होना चाहिए।
कम उम्र की लड़कियां आती हैं मेडिकल की पढ़ाई के लिए
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि युवा छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आते हैं। उन्होंने कहा कि ये सीधे 12वीं कक्षा की युवा लड़कियां हैं जो पांच साल के लिए वहां रहेंगी। हम 18-23 साल की उम्र के युवाओं के साथ काम कर रहे हैं। वे विशेष रूप से कमजोर हैं और उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्य के 45 मेडिकल कॉलेजों में नियमित पुलिसकर्मियों को ड्यूटी पर तैनात किया जाना चाहिए।