चन्द्रशेखर की स्मृति अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देती है

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चंदू को विचारधारा ने नहीं सीवान की तत्कालिन पारिस्थिति ने मार डाला

जन्मदिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

शहीद चंद्रशेखर की पहचान एक छात्र छात्र नेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर बनी। वे दो बार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र – संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने अपने ओजस्वी वक्तृत्व कला और व्यापक विजन से अल्प समय में ही सबको प्रभावित किया था परंतु उनके मूल में रचनात्मक मन था। बिहार में सीवान के बिंदुसार में उनकी समाधि स्थल का निर्माण कार्य शुरू हो गया है। उनकी स्मृति अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देती है । आज अगर वे जीवित होते तो 60 साल के होते।

चंदू का जन्म सीवान जिले के बिंदुसार गाँव में 20 सितंबर 1964 को हुआ था।  इनकी माता का नाम श्रीमती पार्वती देवी और पिता का नाम श्री जीवन प्रसाद था । वे अपने माता पिता की इकलौती संतान थे । मित्र उन्हें प्यार से चंदू कहा करते थे । जीवन प्रसाद जी सेना में थे। जब चंद्रशेखर आठ वर्ष के थे तभी उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया। माँ पार्वती देवी ने माँ के साथ पिता की भी भूमिका निभायी। वे एक साहसी महिला थी । चन्द्रशेखर की हत्या के बाद उन्होंने बहादुरी से लड़ाई लड़ी ।

चंदू की प्रारंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल तिलैया में हुई थी। उनका गाँव शहर से नजदीक था । सैनिक विद्यालय की पढ़ाई ने उनके व्यक्तित्व निर्माण में भूमिका निभाई । स्नातकोत्तर (राजनीति शास्त्र) तक की पढ़ाई उन्होंने सीवान के डी० ए० वी० स्नातकोत्तर महाविद्यालय से पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली में गए। वहाँ पर उन्होंने पर एम. फिल. किया। यह शोध हिंदी में ‘ लोकप्रिय संस्कृति का द्वंद्वात्मक समाजशास्त्र संदर्भः बिदेसिया’ नाम से पुस्तका प्रकाशित हुआ। उनके पीएच.डी. का विषय था – ‘बिहार में नवजागरण की समस्याएँ ‘। उनका पी-एच. डी. पूरा नहीं हो सका |

चंदू में असंगठित लोगों को संगठित करने तथा उनके संघर्ष का नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी। 1995 में दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में आयोजित संयुक्त युवा सम्मेलन में वे भारतीय प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए। वहाँ उन्होंने कम समय में ही ऑस्ट्रेलिया का तथा तीसरी दुनिया के देशों से आए प्रतिनिधियों के बीच संवाद स्थापित कर ग्रुप बना लिया। सबके विचार – विमर्श के बाद उन्होंने अमेरिका के साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ एक प्रस्ताव तैयार किया।

इस प्रस्ताव प्रस्ताव को समय की कमी का बहाना बना कर सम्मेलन में रखने नहीं दिया गया। इसके खिलाफ चंद्रशेखर के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया सहित तीसरी दुनिया के देशों से आए युवाओं ने सम्मेलन का बहिष्कार किया। इसके पश्चात उन्होंने वहाँ के भूमिगत वामपंथी छात्र नेताओं से भेंट की और वहाँ पर छात्रों की एक बड़ी रैली को संबोधित किया।

चंदू को कविताएं लिखने का शौक था, उन्होंने लगभग 17 वर्ष की उम्र में तिलैया के सैनिक स्कूल में कविता लिखी। उन्होंने 1981 में कविताएं लिखी थी जहां उनके शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी थी। वह अंग्रेजी में कविताएं भी लिखा करते थे। परन्तु हिंदी में उनकी वाणी में जबरदस्त ओज था। चंद्रशेखर की कविताएं अभी तक अप्रकाशित है या कहीं-कहीं एक-दो शीर्षकों से छपकर निकली है।

चंदू की हत्या 31 मार्च 1997 को बिहार में सीवान नगर के जेपी चौक पर तत्कालिन पारिस्थितियों से उपजे अपराधियों ने कर दी।

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