डेयरी उत्पादन बढ़ाने के लिए क्या उपाय हो सकते है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सहकारिता मंत्रालय ने श्वेत क्रांति 2.0 के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का अनावरण किया, जिसका उद्देश्य महिला किसानों को सशक्त बनाना तथा रोज़गार के अवसर सृजित करना है।
श्वेत क्रांति 2.0 के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: यह महिला सशक्तीकरण और कुपोषण के खिलाफ संघर्ष के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की एक पहल है।
- यह वर्ष 1970 में डॉ. वर्गीज कुरियन द्वारा शुरू की गई श्वेत क्रांति के अनुरूप है, जो डेयरी की कमी वाले देश को दुग्ध उत्पादन में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने पर केंद्रित है।
- श्वेत क्रांति को ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से भी जाना जाता है।
- श्वेत क्रांति 2.0 के अंतर्गत लक्ष्य: डेयरी सहकारी समितियों द्वारा पहल के 5वें वर्ष के अंत तक प्रतिदिन 100 मिलियन किलोग्राम दुग्ध की खरीद को सक्षम बनाना।
- इसका उद्देश्य सहकारी समितियों द्वारा खरीद को वर्तमान 660 लाख लीटर प्रतिदिन से बढ़ाकर 1,000 लाख लीटर करना है।
- मार्गदर्शिका की शुरुआत (SOP): 200,000 नई बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (MPAC) के गठन के लिये मार्गदर्शिका (SOP) की शुरुआत की गई है।
- इससे उन पंचायतों में नई सहकारी समितियों को बढ़ावा मिलेगा जहाँ कृषि, मत्स्य पालन और डेयरी से संबंधित गतिविधियों के लिये सहकारी समितियाँ नहीं हैं।
- इसे सहकारिता मंत्रालय ने नाबार्ड और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के सहयोग से तैयार किया है।
- महिला सशक्तीकरण: डेयरी क्षेत्र में काफी संख्या में महिलाएँ कार्यरत हैं, अकेले गुजरात में इसका 60,000 करोड़ रुपए का कारोबार है।
- इस पहल से महिलाओं को औपचारिक रोज़गार में शामिल करके सशक्त बनाया जाएगा।
- कुपोषण से निपटना: दुग्ध की उपलब्धता बढ़ने से सबसे बड़ा लाभ गरीब और कुपोषित बच्चों को मिलेगा।
- इससे बच्चों के लिये पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करके कुपोषण के खिलाफ संघर्ष को मज़बूती मिलेगी।
- मौजूदा और आगामी योजनाओं के साथ एकीकरण: यह योजना डेयरी प्रसंस्करण और अवसंरचना विकास निधि (DIDF) और राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD) जैसी मौजूदा सरकारी योजनाओं पर आधारित होगी।
- सहकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये पशुपालन और डेयरी विभाग के तहत एक नया चरण, NPDD 2.0 भी प्रस्तावित है।
- ‘सहकारी समितियों के बीच सहयोग’ पहल का विस्तार: सरकार ने ‘सहकारी समितियों के बीच सहयोग’ पहल का देशव्यापी विस्तार शुरू किया, जिसे गुजरात में सफलतापूर्वक चलाया गया।
- यह डेयरी किसानों को रुपे किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ब्याज मुक्त नकद ऋण तक पहुँच प्रदान करने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाएँ पहुँचाने के लिये माइक्रो-एटीएम वितरित करने पर केंद्रित है।
- PACS कम्प्यूटरीकरण: प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के कम्प्यूटरीकरण के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) शुरू की गई है ताकि PACS का आधुनिकीकरण किया जा सके, जिससे इनका अधिक कुशल और पारदर्शी संचालन सुनिश्चित हो सके।
भारत में दुग्ध उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है?
- वैश्विक रैंकिंग: भारत विश्व का शीर्ष दुग्ध उत्पादक है, जिसका उत्पादन वर्ष 2022-23 के दौरान 231 मिलियन टन तक पहुँच गया।
- वर्ष 1951-52 में देश में सिर्फ 17 मिलियन टन दुग्ध का उत्पादन होता था।
- शीर्ष दुग्ध उत्पादक राज्य: बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (BAHS) 2023 के अनुसार, शीर्ष पाँच दुग्ध उत्पादक राज्य यूपी (15.72%), राजस्थान (14.44%), मध्य प्रदेश (8.73%), गुजरात (7.49%), और आंध्र प्रदेश (6.70%) हैं जो देश के कुल दुग्ध उत्पादन में 53.08% का योगदान करते हैं।
- प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता: राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता 459 ग्राम/दिन है, जो वैश्विक औसत 323 ग्राम/दिन से अधिक है।
- हालाँकि इसमें महाराष्ट्र के 329 ग्राम से लेकर पंजाब में 1,283 ग्राम तक के रूप में भिन्नता देखने को मिलती है।
- पशुधन के अनुसार दुग्ध उत्पादन: कुल दुग्ध उत्पादन में से लगभग 31.94% की हिस्सेदारी देशी भैंसों की है उसके बाद 29.81% संकर नस्ल के मवेशियों की है। बकरी के दुग्ध का हिस्सा 3.30% और विदेशी गायों का हिस्सा 1.86% है।
- कृषि और पशुधन क्षेत्र में डेयरी का योगदान: दुग्ध उत्पाद (दुग्ध, घी, मक्खन और लस्सी) ने वर्ष 2022-23 में कृषि, पशुधन, वानिकी और मत्स्य पालन क्षेत्रों के कुल उत्पादन मूल्य के लगभग 40% में योगदान दिया।
- इसका मूल्य 11.16 लाख करोड़ रुपए था, जो कृषि क्षेत्र में अनाज की तुलना में व्यापक योगदानकर्त्ता है।
श्वेत क्रांति 2.0 की आवश्यकता क्या है?
- दुग्ध उत्पादकता में वृद्धि करना: विदेशी/संकरित पशुओं का औसत उत्पादन केवल 8.55 किलोग्राम/पशु/दिन है और देशी पशुओं के लिये यह 3.44 किलोग्राम/पशु/दिन है।
- पंजाब में उत्पादन 13.49 किलोग्राम/पशु/दिन (विदेशी/संकर नस्ल) है लेकिन पश्चिम बंगाल में केवल 6.30 किलोग्राम/पशु/दिन है।
- दुग्ध उत्पादन की वार्षिक वृद्धि दर में गिरावट को रोकना: इसकी वृद्धि दर वर्ष 2018-19 के 6.47% से घटकर वर्ष 2022-23 में 3.83% हो गई, जो दुग्ध उत्पादन में वृद्धि दर में मंदी का संकेत है।
- दुग्ध उपभोग पैटर्न का औपचारिकीकरण: कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 63% बाज़ार में आता है; शेष उत्पादकों द्वारा अपने उपभोग के लिये रखा जाता है।
- बाज़ार में बिकने वाले दुग्ध का लगभग दो तिहाई हिस्सा असंगठित क्षेत्र से संबंधित है।
- संगठित क्षेत्र में सहकारी समितियों की हिस्सेदारी काफी अधिक है।
- भारत में दुग्ध सबसे अधिक खाद्य व्यय वाला उत्पाद है: ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति दुग्ध पर औसत मासिक व्यय 314 रुपए है जो सब्जियों, अनाज और अंडों जैसे अन्य खाद्य पदार्थों से अधिक है।
- इसी प्रकार शहरी भारत में दुग्ध पर व्यय 466 रुपए था जो फलों, सब्जियों, अनाज और माँस पर व्यय से अधिक था।
- दुग्ध की बढ़ती कीमतों पर रोक: चारा और आहार सहित बढ़ती इनपुट लागत के कारण पिछले पाँच वर्षों में दुग्ध की अखिल भारतीय कीमत 42 रुपए से बढ़कर 60 रुपए प्रति लीटर हो गई है।
- इस बात की चिंता है कि कीमतों में और वृद्धि से मांग में कमी आ सकती है क्योंकि उपभोक्ताओं के लिये दुग्ध खरीदना महंगा हो सकता है।
- मीथेन उत्सर्जन: पशुओं के गोबर और जठरांत्रीय उत्सर्जन से होने वाले उत्सर्जन की मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन में लगभग 32% हिस्सेदारी है, जो ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख कारण है।
श्वेत क्रांति 2.0 के तहत दुग्ध उत्पादन किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है?
- आनुवंशिक सुधार: सेक्स-सॉर्टेड (SS) वीर्य के प्रयोग से उच्च दुग्ध उत्पादकता वाली मादा बछड़ियों (जैसे कि कांकरेज और गिर) के जन्म की संभावना 90% तक बढ़ सकती है, जिससे भविष्य में दुग्ध उत्पादक गायों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
- सेक्स-सॉर्टेड (एसएस) वीर्य से वांछित लिंग की संतानों का उत्पादन संभव होता है, उदाहरण के लिये केवल मादा बछड़े।
- भ्रूण स्थानांतरण (ET) प्रौद्योगिकी: ET प्रौद्योगिकी उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता (HGM) वाली गायों की उत्पादकता को और बढ़ा सकती है क्योंकि इससे कई भ्रूणों का उत्पादन किया जा सकता है और उन्हें विभिन्न सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
- इस विधि के माध्यम से एकल HGM गाय प्रति वर्ष संभावित रूप से 12 बछड़े पैदा कर सकती है, जबकि सामान्य प्रजनन के माध्यम से पूरे जीवनकाल में 5-7 बछड़े पैदा होते हैं।
- इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक: आईवीएफ तकनीक में अपरिपक्व अंडों को निकाला जाता है, प्रयोगशाला में निषेचित किया जाता है और फिर सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया जाता है।
- इससे प्रति वर्ष प्रति दाता गाय 33-35 बछड़े पैदा कर सकती है जिससे उच्च दुग्ध उत्पादन के साथ गाय की आबादी में तेजी से वृद्धि हो सकती है।
- कम लागत पर पोषण और आहार: आनुवंशिक सुधार के साथ-साथ, पशु पोषण में हस्तक्षेप, आहार लागत को कम करने के लिये आवश्यक है।
- अमूल गुजरात में एक संपूर्ण मिश्रित राशन (TMR) संयंत्र स्थापित कर रहा है, जो पशुओं के लिये मक्का, ज्वार और जई घास से बने किफायती तैयार चारा मिश्रण का उत्पादन करेगा।
- TMR ऐसी आहार विधि है जिसमें गायों के लिये चारे, अनाज, प्रोटीन, खनिज और विटामिन को एक पोषक तत्व युक्त आहार में मिलाया जाता है।
- आहार की गुणवत्ता में सुधार: फलियाँ और अनाज जैसे आसानी से पचने वाले चारे उपलब्ध कराने से किण्वन का समय कम हो जाता है, जिससे मीथेन का उत्पादन कम होता है।
- विशिष्ट फीड योजक मीथेन उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार सूक्ष्मजीवों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
- उत्सर्जित मीथेन का उपयोग बायोगैस उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
पशुधन से संबंधित योजनाएँ कौन सी हैं?
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF)
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
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