हिंदी भारतीय ज्ञान परंपरा की संवाहिका है- प्रो. संजय श्रीवास्तव,कुलपति।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार में राजभाषा कार्यान्वयन समिति, हिंदी विभाग और भारतीय ज्ञान परंपरा समिति द्वारा आयोजित हिंदी पखवाड़ा-2024 सह अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन समारोह बुद्ध परिसर स्थित बृहस्पति सभागार में सोमवार को संपन्न हुआ ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति एवं मुख्य संरक्षक प्रो. संजय श्रीवास्तव ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का एक सुदृढ आधार दर्शन रहा है। पिछले पांच हजार वर्षों से निरंतर यह ज्ञान परंपरा पूरे विश्व को लाभान्वित कर रही है। श्रुति परंपरा एवं ऋषि परंपरा से यह निरंतर आगे बढ़ती रही। यह कई प्रकार के समस्याओं का समाधान करती है, कई विकारों से आपको दूर रखती है। ये सनातनता के सुदृढ़ता का आधार है। यही कारण है कि सनातन को अन्य प्रकार से विकसित नहीं किया जा सकता है। यह एक स्वतंत्र प्रक्रिया है। एक वैज्ञानिक एवं एक दार्शनिक आधार पर हमें इसे कालजयी मानते है। हिंदी भारतीय ज्ञान परंपरा की संवाहिका है। हिंदी एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में संचरण करती रहती है।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से पधारे हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि विचार- विमर्श भारतीय ज्ञान परंपरा की थाती है। भारत भूगोल नहीं भावना है, यहां ज्ञान व्यवहारिक है, परंपरा प्रवाह है, हिंदी भाषा नहीं बोलियां का गुच्छा है। भारतीय ज्ञान परंपरा की एक ग्राह्यता है जो भाषा में अधिक मिलती है। हमारा यह दायित्व है कि हम उसे विभिन्न शब्दों से समृद्ध करें। भारतीय ज्ञान परंपरा में सभी प्रकार की सभ्यता एवं संस्कृति आकर एकाकार हो जाती है। हिंदी भाषा व्यावहारिकता को ग्रहण करती है।

कार्यक्रम में संरक्षक के तौर पर मानविकी व भाषा संकाय के अध्यक्ष प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने कहा कि वेद भारतीय ज्ञान परंपरा की गंगोत्री है। सौ वर्षों तक निरोगी काया के साथ जीवित रहना ही भारतीय ज्ञान परंपरा है। हम अपने ज्ञान परंपरा को अक्षुण नहीं रख पाये, यह हमारी असफल रही है। हम सभी भाषाओं का सम्मान करके हिंदी को और अधिक समृद्ध कर सकते है,क्योंकि हिंदी का विकास हम तभी कर पाएंगे जब हम दूसरे भाषा के साथ समन्वय कर सकेंगे।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर दरभंगा से पधारे ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. प्रभाकर पाठक ने कहा कि हमारे ज्ञान परंपरा में वर्तमान का विशेष महत्व है। ज्ञान परंपरा में शरीर का विशेष स्थान है। इसको सुदृढ रखने के लिए हमारे शास्त्रों में विशेष ज्ञान की बातें कही गई है क्योंकि एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ्य मस्तिष्क का वास होता है जो विभिन्न प्रकार के ज्ञान का भंडार होता है। हमारे ज्ञान परंपरा में शरीर के सुरक्षा की भी बातें की गई है। जीवन-मृत्यु की साधना हमारे ज्ञान परंपरा में सन्निहित है।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में आभासी माध्यम से बुसान यूनिवर्सिटी आॅफ फॉरेन स्टडीज दक्षिण कोरिया से विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में जुड़ी डॉ. यन् तू सोन उर्फ सूर्या ने कहा कि भारतीय शिक्षण प्रणाली में हिंदी के लिए मानक पाठ्यक्रम नहीं था, जबकि इसके लिए एक मानक पाठ्यक्रम की आवश्यकता है। विभिन्न प्रकार की शैक्षणिक प्रणालियों के आ जाने से हिंदी में पठन-पाठन सरल हो गया है। हम किसी देश की सांस्कृतिक विरासत को अंग्रेजी भाषा में नहीं देख सकते, इसलिए यह कहना कि केवल अंग्रेजी से भारत में काम चल जाएगा, यह सत्य नहीं है। हिंदी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और हिंदी शैक्षणिक वातावरण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम पर अवश्य बल दिया जाना चाहिए।

कार्यक्रम के संयोजक, हिंदी विभागाध्यक्ष एवं राजभाषा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि विश्व में भारत के ज्ञान परंपरा का सबसे अधिक योगदान है। भारतीय ज्ञान परंपरा का हम उपयोग विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों में करें तो यह देश की प्रगति के लिए लाभदायक होगा। अंग्रेजी शासन एवं विज्ञान की केंद्रीयता ने हमारे ज्ञान की परंपरा को बाधित किया। देशी भाषा के स्रोत की अपेक्षा की गई। विभिन्न प्रकार के कारणों से हमारे ज्ञान की परंपरा को नीचा दिखाने की कोशिश की गई। अंग्रेजों ने भारतीय ज्ञान परंपरा को अवरूद्ध किया। हिंदी भाषा के विकास को भी अवरूद्ध किया गया। यही कारण है की नई शिक्षा नीति ने भारतीय भाषाओं पर ध्यान दिया है। हिंदी के माध्यम से हम भारतीय ज्ञान परंपरा को संचित कर सकते है इसलिए हिंदी आज अधिक महत्वपूर्ण है।

वहीं हिंदी पखवाड़ा-2024 के तहत कई कार्यक्रमों का आयोजन विश्वविद्यालय में किया गया। इसमें भाग लेने वाले विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया।
इसमें स्वरचित का पाठ प्रतियोगिता में मनीष कुमार दिवाकर, लोकेश पाण्डेय, संजीत कुमार, निखिल पाण्डेय को पुरस्कृत किया गया। जबकि निबंध लेखन प्रतियोगिता में संजीत कुमार, अनुराग कुमार आनंद, राजनंदनी गुप्ता, रूपेश आदर्श को पुरस्कार मिला।

वहीं भाषण प्रतियोगिता में रश्मि सिंह, लोकेश पाण्डेय, निखिल पाण्डेय, कुलदीप कुमार को पुरस्कार दिया गया।
राजभाषा प्रश्न प्रतियोगिता जो कर्मचारी के लिए थी, उसमें सुनील पाण्डेय, मनीष जायसवाल, बबलू कुमार, अभिषेक ठाकुर, मनीष मिश्रा को पुरस्कृत किया गया।

इससे पहले कार्यक्रम में सर्वप्रथम सभी अतिथियों के द्वारा मां सरस्वती और महात्मा गांधी के प्रतिमा के समक्ष पुष्प अर्पित कर दीप प्रज्वलन करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। शोधार्थी लोकेश पाण्डेय ने सरस्वती वंदना का पाठ किया।
सभी मंचस्थ अतिथियों को पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्र व प्रतीक चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया।
हिंदी विभाग में स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष की छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में सभी का स्वागत विभाग के आचार्य प्रो.राजेंद्र बडगूजर ने किया।
मंच का सफल संचालन हिंदी विभाग में सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के ही सहायक आचार्य डॉ. श्यामनंदन ने किया।
इस अवसर पर विभिन्न संकाय के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष, आचार्य एवं सहायक आचार्य,शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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