बिहार का विकसित होना विकसित भारत की संकल्पना की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है-विकास वैभव

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी में ‘विकसित भारत की संकल्पना और बिहार’ विषय पर माननीय कुलपति संजय श्रीवास्तव जी की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में #LetsInspireBihar अभियान के संदेशों को साझा करने का अवसर प्राप्त हुआ ।

संबोधन के क्रम में अभियान के संदेशों को विस्तारपूर्वक साझा करते हुए विकास वैभव ने कहा कि 2047 तक विकसित भारत की संकल्पना में बिहार की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और इसके दो प्रमुख कारण हैं । प्रथम कारण यह है कि चूंकि बिहार आज देश का अत्यंत पिछड़ा क्षेत्र है, जहाँ से उत्कृष्ट शिक्षा एवं उचित रोजगार की प्राप्ति हेतु जनसंख्या के एक बड़े भाग को राज्य से बाहर पलायन करना पड़ता है,

अतः जब तक बिहार उस रूप में विकसित एवं स्थापित नहीं हो जाता, जिसमें शिक्षा, रोजगार अथवा स्वास्थ्य के लिए किसी व्यक्ति को अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं हो, तब तक विकसित भारत की संकल्पना सार्थक नहीं हो सकती । बिहार का विकसित होना विकसित भारत की संकल्पना की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है ।

दूसरा कारण प्राचीन काल से ही सर्वत्र स्थापित रही बिहार की उत्कृष्ट नैसर्गिक क्षमता है जिसमें वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति का सामर्थ्य विद्यमान है परंतु प्राप्ति हेतु हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास की यात्रा में बिहार का हर वर्ग अपना संपूर्ण योगदान कर सके । हमें ध्यान रखना होगा कि संपूर्ण बिहार के बृहत सृजनात्मक एवं सार्वभौमिक योगदान के अभाव में संकल्पना सार्थक नहीं हो सकेगी ।

हमें यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि बिहार की भूमि प्राचीन काल से ही ज्ञान, शौर्य एवं उद्यमिता की प्रतीक रही है और यह कि हम उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के वंशज हैं जिनमें अखंड भारत के साम्राज्य को स्थापित करने की क्षमता तब थी जब न आज की भांति विकसित मार्ग थे, न सूचना तंत्र और न उन्नत प्रौद्योगिकी । यह हमारे पूर्वजों के चिंतन की उत्कृष्टता ही थी जिसने बिहार को ज्ञान की उस भूमि के रूप में स्थापित किया जहाँ वेदों ने भी वेदांत रूपी उत्कर्ष को प्राप्त किया । ज्ञान की परंपरा ने ही कालांतर में ऐसे विश्वविद्यालयों को स्थापित होते देखा जहाँ संपूर्ण विश्व के विद्वान अध्ययन हेतु लालायित रहते थे ।

उर्जा निश्चित आज भी वही है, आवश्यकता केवल चिंतन की है कि उर्जा का प्रयोग हम कहाँ कर रहे हैं । आवश्यकता जातिवाद, संप्रदायवाद, लिंगभेद आदि लघुवादी संकीर्णताओं से परे उठकर राष्ट्रहित में सकारात्मक योगदान समर्पित करने की है । शिक्षा, समता एवं उद्यमिता के मंत्रों के साथ योगदान तथा पूर्वजों की बृहत् दृष्टि के धारण के साथ निश्चित ही हम सामुहिक रूप में उज्ज्वलतम भविष्य का निर्माण कर सकते हैं ।

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