पश्चिम एशिया के मुद्दों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पश्चिम एशिया में भारत के सामरिक हितों के लिये क्षेत्रीय तनावों की जटिलताओं का समाधान करने के लिये संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भारत के लिये मुद्दा आधारित राजनय और बहुपक्षीय सहयोग को प्राथमिकता देना आवश्यक होगा ताकि वह संघर्ष से ग्रस्त इस क्षेत्र में एक स्थिर शक्ति के रूप में उभर सके, जिससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में योगदान करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों का संरक्षण कर सके।
भारत के इज़रायल के साथ संबंध गहरे हुए हैं, जबकि ईरान के साथ उसके संबंधों में सहयोग और तनाव दोनों की झलक मिलती है। व्यापक संघर्ष से भारत के आर्थिक हितों, ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- ऊर्जा सुरक्षा और तेल आयात: पश्चिम एशिया भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो इसके कच्चे तेल के आयात का 60% से अधिक आपूर्ति करता है।
- वर्ष 2022-23 में इराक रूस के बाद भारत को दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। इस क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता के कारण प्रायः तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ सकता है।
- ब्रेंट क्रूड आयल की कीमतें 80-85 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रही हैं, जिससे भारत की आयात लागत और मुद्रास्फीति प्रभावित हो रही है।
- इन जोखिमों को कम करने के लिये भारत सक्रिय रूप से अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता ला रहा है, जिसमें रूस, अमेरिका और लैटिन अमेरिका के साथ समझौते शामिल हैं।
- भारत पहले ही पश्चिम एशियाई संघर्षों के प्रभावों को अनुभव कर चुका है, क्योंकि इस क्षेत्र से कच्चे पेट्रोलियम आयात में इसकी हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022 में 34% से घटकर वित्त वर्ष 2023 में 30.9% और वित्त वर्ष 2024 में लगभग 23% हो गई है।
- प्रवासी भारतीयों से प्राप्त विप्रेषण: पश्चिम एशिया में 80 लाख से अधिक संख्या में प्रवासी भारतीय धन विप्रेषण का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
- वर्ष 2021 में, भारत को लगभग 87 बिलियन अमरीकी डॉलर का विप्रेषण प्राप्त हुआ, जिसमें से लगभग 50% खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों से प्राप्त हुआ।
- सऊदी अरब में “सऊदीकरण” नीति के कारण उत्पन्न आर्थिक मंदी इन विप्रेषणों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है तथा केरल जैसे राज्यों के उन परिवारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है जो इस आय पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- कोविड-19 महामारी के कारण अनेक भारतीय कामगारों को घर लौटना पड़ा और यद्यपि स्थिति सामान्य हो गई है, परंतु जारी क्षेत्रीय संघर्षों के कारण नौकरी की स्थिरता और विप्रेषण प्रवाह को खतरा बना रह सकता है।
- व्यापार संबंध और आर्थिक प्रभाव: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापार साझेदारों में से एक है।
- वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत-GCC द्विपक्षीय व्यापार 161.59 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा। भारत का निर्यात 56.3 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा।
- क्षेत्रीय अस्थिरता के कारण व्यापार संबंधों में कोई भी व्यवधान भारत के निर्यात क्षेत्र और खाड़ी में खाद्य आपूर्ति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- इसके अतिरिक्त, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ भारत के व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते का उद्देश्य व्यापार में वृद्धि करना है, परंतु भू-राजनीतिक तनावों के कारण इसमें बाधा आ सकती है।
- समुद्री सुरक्षा और व्यापार मार्ग: होर्मुज़ जलडमरूमध्य और बब अल-मन्देब जैसे सामरिक समुद्री मार्ग भारत के व्यापार तथा ऊर्जा आयात के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- इन जलमार्गों पर समुद्री डकैती या राज्य प्रायोजित हमलों से भारत की व्यापार सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
- होर्मुज़ जलडमरूमध्य एक महत्त्वपूर्ण चोकपॉइंट बना हुआ है। अप्रैल 2024 में ईरान द्वारा इज़राइल से जुड़े एक मालवाहक पोत को ज़ब्त करना, जिसमें 17 भारतीय नागरिक सवार थे, इस स्थिति में भारत की भागीदारी को रेखांकित करता है।
- आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा: पश्चिम एशिया में अस्थिरता ISIS, अल-कायदा और हिज्बुल्लाह जैसे चरमपंथी संगठनों के लिये आधार का निर्माण करता है, जो कभी-कभी भारत सहित दक्षिण एशिया से रंगरूटों की भर्ती करते हैं।
- FATF की हालिया रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में ISIS और अलकायदा से संबंधित समूहों से भारत के लिये आतंकवादी खतरे पर प्रकाश डाला गया है।
- सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध: भारत और पश्चिम एशिया के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध द्विपक्षीय संबंधों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं:
- भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी (लगभग 200 मिलियन) का निवास स्थान है, जिससे पश्चिम एशिया में विकास, विशेष रूप से इस्लामी पवित्र स्थलों के संबंध में, घरेलू महत्त्व का हो गया है।
- भू-राजनीतिक संरेखण और महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता: पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव, विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से, भारत के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहा है, विशेषकर तब जब चीन, ईरान और सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ कर रहा है।
- क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव, जिसका उदाहरण मार्च 2023 में ईरान-सऊदी अरब के बीच संबंधों में मध्यस्थता है, भारत के सामरिक हितों के लिये चुनौती है।
- जुलाई 2022 से I2U2 समूह (भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका) में भारत की भागीदारी इसकी पश्चिम एशिया नीति में एक नए चरण का प्रतीक है, परंतु इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ सामंजस्य को संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है।
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