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मीडिया का उपयोग जनमत बनाने में नहीं बल्कि जनमत को नियंत्रित करने में हो रहा है : डॉ प्रभात

मीडिया का उपयोग जनमत बनाने में नहीं बल्कि जनमत को नियंत्रित करने में हो रहा है : डॉ प्रभात

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श्रीनारद मीडिया, दरभंगा, (बिहार):

राजनीतिक चिंतक सह विश्लेषक एवं पूर्व निदेशक आकाशवाणी (पूर्णिया) डॉ. प्रभात नारायण झा ने डिजिटल युग की पत्रकारिता को सरोकार के साथ प्रचार का सशक्त माध्यम बताया और कहा कि मीडिया का उपयोग अब जनमत बनाने में नहीं बल्कि जनमत को नियंत्रित करने मे हो रहा है।

डॉ. झा ने ख्यातिलब्ध पत्रकार एवं समाजसेवी स्वर्गीय राम गोविंद प्रसाद गुप्ता की 89वीं जयंती के अवसर पर सागर सभागार में आयोजित “डिजिटल युग में पत्रकारिता की भूमिका और चुनौतियां” विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि उदंत मार्तंड शुरू हुई हिंदी पत्रकारिता डिजिटल युग में चहुंमुखी हो गई है। इसका ध्येय-उद्देश्य सब बदल गया है। अब इसका वास्ता सिर्फ सरोकार से नहीं रह गया है बल्कि यह प्रचार का भी सशक्त माध्यम है।

राजनीतिक विश्लेषक ने बताया कि पत्रकारिता में बदलाव की शुरुआत 1991 के उदारवादी दौर से हुई। विदेशी पूंजी प्रवाह से पत्रकारिता में विज्ञापन का दखल बढ़ा और मानवीय सरोकार प्रभावित होने लगा। जो डिजिटल युग में इस कदर हावी हो गया है कि पत्रकारिता से मानवीय संवेदना गायब हो गई है। डिजिटल प्लेटफार्म पर खबरों का प्रसारण व्यवसायिक हितों के अनुरूप हो रहा है।

पूर्व निदेशक ने कहा कि डिजिटल मीडिया एक माध्यम है। इसका सही या गलत उपयोग करने का विवेक लोगों में उत्पन्न करने की आवश्यकता है। आज डिजिटल मीडिया की गिरफ्त में फंसकर एक ही परिवार के लोग अलग-थलग हो गए है। हर कोई मोबाइल थामे अपने-आपको विशिष्ट समझ रहा है। अत्यधिक डिजिटल माध्यम के उपयोग से लोगों की चेतना प्रभावित हो रही हैं और विचारधाराओं में परिवर्तन हो रहा है। इससे बचाव की जरूरत है। इसके लिए सामाजिक संस्थानों, मीडिया एवं बुद्धिजीवियों को पहल करनी होगी।

प्रख्यात पत्रकार एवं टाइम्स आफ स्वराज के संपादक संतोष सिंह ने कहा कि डिजिटल युग में पत्रकारिता भरोसे के संकट से जूझ रही हैं। खबर देखकर लोगों को यकीन नहीं होता है। लोग उसकी पुष्टि पत्रकारिता के दूसरे माध्यम से करते है। इस विषम स्थिति के बावजूद डिजिटल युग की पत्रकारिता स्थापित हो चुकी हैं। भले ही विश्वसनीयता की कमी हो पर व्यापकता की वजह से इसने प्रिंट एवं दृश्य दोनों मीडिया माध्यम को प्रभावित किया है।

श्री सिंह ने फेक न्यूज के लिए राजनीतिक दलों को जिम्मेवार करार दिया और कहा कि विभिन्न राजनीति दलों के प्रतिनिधियों ने आईटीसेल बना रखा है। जो अपने दलहित में फेंक न्यूज का प्रसारण करते हैं। फेक न्यूज के कारण ही डिजिटल मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहा है। इससे अराजकता की स्थिति भी उत्पन्न हुई है। जिसकी वजह से पत्रकारिता पर सवाल उठने लगा है।

उन्होंने बताया कि लोकतंत्र तभी तक स्वस्थ है जबतक पत्रकारिता स्वतंत्र है। स्वतंत्र पत्रकारिता ही सत्ता को चुनौति दें सकती हैं। इसलिए डिजिटल युग की पत्रकारिता को विश्वसनीय बनाने की आवश्यकता है। विशिष्ट वक्ता पूर्व पत्रकार सह जदयू विधायक डा. विनय कुमार चौधरी ने कहा कि डिजिटल मीडिया ने हर व्यक्ति को पत्रकार बना दिया है। खबरों का प्रसार तेज गति हो रहा है पर आमलोगों को आज भी भरोसा प्रिंट मीडिया पर ही हैं। जिसका कारण डिजिटल मीडिया पर भ्रामक खबरों का प्रसारण है। इसके बावजूद डिजिटल मीडिया का दायरा विस्तृत है। इससे मिडिया संस्थानों का अधिपत्य समाप्त हुआ है और खबरों के प्रसारण की गति तेज हो गई। उन्होंने बताया कि डिजिटल युग में भी पत्रकारिता की अहमियत बनी हुई है। जरूरत इसे सजाने-संवारने की है। जिसके लिए सक्षम लोगों को आगे आना होगा।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद डॉ. कृष्ण कुमार ने कहा कि डिजिटल मीडिया दोधारी तलवार सदृश्य है। इसका जिस तरीके से इस्तेमाल होगा परिणाम वैसा ही सामने आएगा।

संगोष्ठी को ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय के संकाय अध्यक्ष डॉ प्रेम मोहन मिश्रा, शिक्षाविद डॉक्टर विद्यनाथ झा, मनोवैज्ञानिक डॉक्टर गौरी शंकर राय ने भी संबोधित किया। संगोष्ठी का संचालन प्रो.सतीश सिंह ने किया। जबकि अतिथियों का स्वागत पत्रकार प्रदीप कुमार गुप्ता ने किया। विषय प्रवेश डॉ. रामचंद्र चंद्रेश और धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद गुप्ता ने किया।

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