देवलोक से पहुंचते हैं 300 से अधिक देवी-देवता,क्यों?

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कुल्लू दशहरा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी में मनाया जाता है

भगवान रघुनाथ की मूर्ति को 1650 में अयोध्या से कुल्लू लाया गया था

रघुनाथ के सम्मान में देवी-देवताओं का महाकुंभ कुल्लू दशहरा मनाया जाता है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में दशहरा उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव नवरात्रि के अंतिम दिन राणव वध दशहरा के अगले दिन से शुरू होता है। सात दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है।

भगवान रघुनाथ की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जिले भर के 332 देवी-देवताओं को प्रशासन की ओर से निमंत्रण दिए जाते हैं। सभी देवी-देवता भगवान रघुनाथ से मिलने आते हैं।

देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का रविवार को आगाज हो गया है। सात दिनों तक इसकी धूम रहेगी। पूरे इलाके में भक्तिमय माहौल बना रहेगा। देव समागम के प्रति अटूट आस्था के चलते रथ खींचने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। देश-विदेश से भी लोग पहुंचते हैं।

कुल्लू दशहरा की विशेषता

खास बात है कि इस दशहरे उतस्व के दौरान कोई रामलीला नहीं होती है और ना ही रावण का दहन होता है। कुल्लू दशहरा का बहुत मान्यता है। यह हर साल मनाया जाता है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से शुरू होता है। इस बार 13 अक्टूबर से कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज हुआ है। 19 अक्टूबर को इसका समापन होगा

परंपरा के पीछे क्‍या है राज?

इस परंपरा के पीछे भी राज छुपा हुआ है। 17वीं शताब्‍दी में राजा जगत सिंह अयोध्‍या से भगवान रघुनाथ की एक मूर्ति अपने साथ कुल्‍लू ले आए थे, फिर उन्‍होंने उस मूर्ति को कुल्‍लू के महल मंदिर में स्‍थापित कर दी थी।

300 से अधिक देवी-देवता लेते हैं भाग

मान्यता है कि इस उत्‍सव में 300 से अधिक देवी-देवता भाग लेने आते हैं। साथ ही श्री रघुनाथ भगवान को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। दशहरा का यह उत्‍सव माता हिडिम्‍बा के आगमन से शुरू होता है।

उत्सव के दौरान अलग-अलग राज्‍यों के सांस्‍कृतिक दल और विदेशों से लोक नर्तक अपनी अद्भुत प्रस्तुतियां प्रस्‍तुत करते हैं। इस दौरान यहां उत्‍सव में भाग लेने देश और विदेश से भारी संख्‍या में पर्यटक आते हैं।

क्‍या है कुल्‍लू दशहरा का इतिहास?

कुल्लू दशहरा का इतिहास साढ़े तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है। कहा जाता है कि राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी में एक गरीब ब्राह्मण रहता था।

उस गरीब ब्राह्मण ने राजा जगत सिंह की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया था। ब्राह्मण के इस आत्मदाह का दोष राजा पर लगा, जिसकी वजह से राजा को एक असाध्य रोग भी हो गया था।

374 साल पुराना अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए है। भगवान रघुनाथ की मूर्ति को 1650 में अयोध्या से कुल्लू लाया गया था। रघुनाथ के सम्मान में देवी-देवताओं का महाकुंभ कुल्लू दशहरा मनाया जा रहा है। तब से लेकर 1960 तक जिले के सैकड़ों देवी-देवता अपने ही खर्चे पर दशहरा उत्सव में भाग लेते आए हैं। दशहरा के लिए देवता के देवलू घर से ही राशन लेकर आते थे। दूरदराज से आने वाले देवी-देवताओं को आने-जाने में 12 से 15 दिनों का समय लगता था।

पंजाब सरकार ने दिया था 10,000 रुपये नजराना
1960 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने देवी-देवताओं को नजराना राशि भेंट की थी। बताया रहा है कि उस वक्त दशहरा में पहुंचे करीब 200 देवताओं को 10,000 रुपये बतौर नजराना दिया गया था। प्रत्येक देवता को यह राशि 20 से लेकर 30 रुपये तक वितरित हुई थी। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा की पहचान देवी-देवताओं से है और महाकुंभ को देखने के लिए देश-विदेश से भी बड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं।

कई विदेशी शोधकर्ता भी विशेष रूप से कुल्लू पहुंचते हैं। इस साल दशहरा उत्सव समिति ने 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया है। बाह्य सराज, आनी, निरमंड और सैंज की शांघड़ घाटी के दूरस्थ इलाकों के देवी-देवता 150-200 किमी का पैदल सफर कर पहुंचते हैं। जिला देवी-देवता कारदार संघ दोत राम ठाकुर ने कहा कि 310 सालों तक देवताओं को नजराना नहीं मिलता था।

देश के साथ दिखेगी विदेशी संस्कृति
दशहरा में करीब 25 देशों के कलाकार भाग ले रहे हैं। इसमें इंडोनेशिया, थाईलैंड, उज्बेकिस्तान, म्यांमार, रूस, अमेरिका और किर्गिस्तान के कलाकार भाग लेंगे। वहीं, आईसीसीआर का संयुक्त सांस्कृतिक दल भी प्रस्तुति देगा। वहीं उतराखंड, असम, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के सांस्कृतिक दल भी दशहरा में अपने कार्यक्रम देंगे। रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम में शाहिद माल्या, कुलविंदर बिल्ला, ट्रेप बैंड, शारदा पंडित, हिमालयन रूट्स, गुरनाम भुल्लर, कुमार साहिल, नीरज श्रीधर और बांबे वाइकिंग जैसे कलाकार और बैंड उत्सव में लोगों का मनोरंजन करेंगे।

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