ट्रूडो साहब कहने से नहीं, सबूत देना पड़ता है!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर हत्याकांड की जांच के मामले में कनाडा भारत के कुछ महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के जरिए दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है लेकिन इससे भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आने वाला है। भारत पहले भी कई बार यह स्पष्ट कर चुका है कि कनाडा ने निज्जर हत्यांकाड मामले में भारत को कोई सबूत नहीं दिए हैं। कनाडा हो या न्यूजीलैंड या कोई और भारत बिना ठोस सबूत के अपना रुख नहीं बदलेगा। यह बात भारत ने दो दिन पहले कनाडा के उच्चायुक्त को निष्कासित करने के दिन भी कही थी।
आरोप के साथ सबूत भी होने चाहिए
उधर, पिछले 24 घंटे के भीतर न्यूजीलैंड, ब्रिटेन के बाद बुधवार को ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने भी निज्जर हत्याकांड जांच मामले में कनाडा का समर्थन देने संबंधी बयान जारी किया है। ये देश फाइव आइज (पांच देशों के जासूसी नेटवर्क का संगठन) के सदस्य भी हैं। इस बारे में पूछने पर सूत्रों का कहना है कि देश चाहे कनाडा हो या न्यूजीलैंड या कोई और, भारत इस बात पर नहीं जाएगा कि किस देश ने क्या कहा है। सिर्फ आरोप गंभीर है, यह कह देने से कोई मामला गंभीर नहीं हो जाता। उसके लिए सबूत देने होते हैं।
भारत की इमेज को खराब करने की रणनीति
विदेश मंत्रालय ने दो दिन पहले 14 अक्टूबर 2024 को अपने आधिकारिक बयान में कहा था कि सितंबर 2023 में आरोप लगाने के बाद और हमारी तरफ से कई बार आग्रह किये जाने के बावजूद अभी तक कनाडा की तरफ से हमें कोई भी सबूत नहीं दिया गया है। इस बात में कोई शक नहीं है कि जांच की आड़ में राजनीतिक लाभ के लिए भारत की इमेज को खराब करने की जानबूझ कर रणनीति बनाई गई है।
भारत-कनाडा विवाद में अमेरिका की एंट्री
वॉशिंगटन में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर से जब कनाडा-भारत के बीच चले रहे कूटनीतिक तनाव के बारे में पूछा गया तो उनका जबाव था कि कनाडा ने जो आरोप लगाये हैं वह बेहद गंभीर हैं। हम यह चाहते हैं कि भारत सरकार इस बारे में पूरी गंभीरता दिखाए और जांच में मदद करे। हालांकि उन्होंने (भारत) ऐसा नहीं किया है। हम दोनों देशों से इस बारे में सहयोग करने की अपील करते हैं।
पन्नु हत्याकांड की हो रही जांच
बताते चलें कि अमेरिका ने भी भारत पर आरोप लगाये हैं कि यहां की एजेंसियों ने खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नु की हत्या की साजिश रची है। इस बारे में अमेरिका ने चेक रिपब्लिक में गिरफ्तार एक भारतीय (निखिल गुप्ता) का प्रवर्तन भी किया है और इस मामले में भारत सरकार ने भी एक जांच समिति गठित की है। अभी भारतीय जांच दल इस बारे में आगे पड़ताल करने के लिए अमेरिका की यात्रा पर है।
ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने भी दी प्रतिक्रिया
ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि कनाडा की तरफ से लगाये गये आरोपों को लेकर हमारी चिंताएं हैं। हम सैद्धांतिक तौर पर सभी देशों की संप्रभुता का आदर करते हैं और यह मानते हैं कि वहां कानून व्यवस्था का आदर होना चाहिए।
इसके पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी एक बयान जारी कर कहा है कि हम कनाडा के साथ लगातार संपर्क में है। हम कनाडा की न्यायिक व्यवस्था व कानून का आदर करते हैं। अगला सही कदम यहीं होगा कि भारत भी कनाडा की कानून प्रक्रिया में मदद करे। न्यूजीलैंड की तरफ से भी इसी तरह का बयान जारी किया गया था।
अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो और मिडिल ईस्ट फोरम में नीति विश्लेषण के निदेशक माइकल रुबिन ने तर्क दिया है कि खालिस्तानी तत्वों से केवल कनाडा को ही नहीं, अमेरिका को भी खतरा है।
अमेरिका स्थित नेशनल सिक्योरिटी जर्नल में ‘खालिस्तानी चरमपंथ: अमेरिका और कनाडा में बढ़ता खतरा’ नामक संपादकीय लेख में माइकल रुबिन ने कहा कि खालिस्तानी तत्वों की गतिविधियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मंदिरों में तोड़फोड़ पर चुप्पी क्यों?
उन्होंने कहा कि अमेरिकी लोग ईरानी छात्रों द्वारा तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जा करने या लीबियाई आतंकवादियों द्वारा बेनगाजी में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास पर हमला करने को आक्रोश के साथ याद करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि खालिस्तानी आतंकवादियों ने सैन फ्रांसिस्को में भारत के वाणिज्य दूतावास पर दो बार हमला किया है। राष्ट्रीय मीडिया अमेरिका के चर्चों पर इस्लामी हमलों को घृणा अपराध बताता है, लेकिन जब खालिस्तानी चरमपंथी मेलविले, न्यूयॉर्क से लेकर सैक्रामेंटो, कैलिफोर्निया और हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ करते हैं, तो वे चुप रहते हैं।
नई पीढ़ी को बचाने की चुनौती
रुबेन ने आगे तर्क दिया कि खालिस्तानी समर्थकों ने कई स्थानीय संस्थानों पर कब्जा कर लिया है और हिंसा की संस्कृति फैला रहे हैं। व्हाइट हाउस और विदेश विभाग कुछ कॉलेज परिसरों की बेतुकी हरकतों को नियंत्रित नहीं कर सकते। हर कारण की वैधता नहीं होती, लेकिन कुछ को गले लगाने से और अधिक हिंसा की संभावना होती है। जैसे-जैसे खालिस्तानी समर्थक कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में फैल रहे हैं, वे स्थानीय संस्थानों पर कब्जा कर, नई पीढ़ी को हिंसा की संस्कृति सिखा रहे हैं।
धार्मिक पक्षपात के आरोप
तीन दशक पहले कुछ विश्लेषकों ने अलकायदा की अवधारणा को समय पर नहीं नकारा और वे अमेरिका के लिए खतरा बन गया। आज खालिस्तानियों को लेकर भी यही हो रहा है। उस समय काउंसिल ऑन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस या इस्लामिक सोसाइटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका जैसे मुस्लिम ब्रदरहुड द्वारा संचालित संगठनों ने इस्लामी चरमपंथ की किसी भी आलोचना को ‘इस्लामोफोबिक’ करार दिया था। आज खालिस्तानी उग्रवादी संगठन का विरोध करने वालों पर धार्मिक पक्षपात के वही आरोप लग रहे हैं।
खालिस्तानियों से बढ़ता खतरा
- रुबेन ने आगे तर्क दिया कि संयुक्त राज्य अमेरिका को ऐसे जाल में नहीं फंसना चाहिए।
- किसी भी रूप में और किसी भी धर्म से उत्पन्न होने वाला उग्रवाद खतरा ही पैदा करता है।
- खालिस्तानी उग्रवाद अपने पाकिस्तानी समर्थन के साथ एक गंभीर और बढ़ता हुआ खतरा बन सकता है।
ट्रूडो ने बहुत बड़ी गलती की
एएनआई से बात करते हुए पेंटागन के पूर्व अधिकारी ने कहा कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तान आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत के संबंध होने का आरोप लगाकर बहुत बड़ी गलती की है। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री ट्रूडो ने बहुत बड़ी गलती की है। उन्होंने इस तरह से आरोप लगाए हैं, जिसका वे खुद अपनों का समर्थन नहीं ले पा रहे हैं।
आतंकवादी को क्यों पनाह दे रहा कनाडा
उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि पीएम ट्रूडो बिना सोचे समझे आरोप लगा रहे हैं और उनके पास सरकार के खिलाफ लगाए गए आरोपों का समर्थन करने के लिए सबूत नहीं हैं। ऐसे में उन्हें यह बताना होगा कि यह सरकार एक आतंकवादी को क्यों पनाह दे रही है? निज्जर कोई प्लंबर नहीं था, ठीक उसी तरह जैसे ओसामा बिन लादेन इंजीनियर नहीं था। उसके हाथ कई हमलों में खून से सने थे। प्रधानमंत्री ट्रूडो ने यह मुद्दा उठाया है, लेकिन उनके कहने का मतलब क्या था, इस पर आम सहमति नहीं थी।
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