शिक्षा प्रणाली में मदरसों की भूमिका क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया है कि मदरसों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में व्यापकता का अभाव है। इस प्रकार यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के आदेशों का उल्लंघन करता है।

  • आयोग का तर्क है कि इन संस्थानों में प्रयुक्त पाठ्य पुस्तकें इस्लाम की सैद्धांतिक प्रधानता पर केंद्रित शिक्षाओं का प्रचार करती हैं।
  • मदरसा शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जो मुख्य रूप से इस्लामी शिक्षाओं से जुड़ा एक शैक्षणिक संस्थान है।
  • इस्लाम की प्रारंभिक शताब्दियों में मस्जिदें शिक्षा के केंद्र के रूप में कार्य करती थीं। हालाँकि 10वीं शताब्दी तक मदरसे अलग-अलग संस्थानों के रूप में विकसित हो गए, जो इस्लामी दुनिया में धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों तरह का ज्ञान प्रदान करते थे।
    • मदरसों के सबसे पुराने दस्तावेज़ी साक्ष्य खुरासान और ट्रांसोक्सानिया जैसे क्षेत्रों से प्राप्त होते हैं, जिनमें वर्तमान पूर्वी तथा उत्तरी ईरान, मध्य एशिया एवं अफगानिस्तान शामिल हैं।
  • बड़े मदरसे अक्सर आवासीय सुविधाएँ प्रदान करते थे, विशेष रूप से आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिये।

उत्तर प्रदेश में मदरसों से संबंधित हालिया घटनाक्रम क्या हैं?

  • मार्च, 2024 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को “असंवैधानिक” घोषित कर दिया।
  • न्यायालय का निर्णय इस आधार पर था कि यह अधिनियम संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत” का उल्लंघन करता है और अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) के तहत गारंटीकृत मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • NCPCR ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने वाली अपीलों के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय में अपनी दलील दी। 
  • NCPCR ने सिफारिश की है कि सभी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूलों में दाखिला दिया जाए।

  नोट: 

  • वर्ष 2023 में लगभग 1.69 लाख छात्र उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित परीक्षाओं में शामिल हुए, जो मुख्यधारा की शिक्षा में कक्षा 10 और 12 के स्तर के समकक्ष हैं।
  • उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में संस्कृत शिक्षा के लिये एक अलग बोर्ड स्थापित है, जो मदरसा प्रणाली के समानांतर कार्य करता है।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004

  • इस अधिनियम का उद्देश्य उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों (इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों) के कार्यप्रणाली को विनियमित और संचालित करना था।
  • इसने उत्तर प्रदेश में मदरसों की स्थापना, मान्यता, पाठ्यक्रम और प्रशासन के लिये एक रूपरेखा प्रदान की।
  • इस अधिनियम के तहत राज्य में मदरसों की गतिविधियों की देखरेख और पर्यवेक्षण के लिये उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई।

भारत में मदरसों की स्थिति क्या है?

भारत में मदरसों की संख्या:

  • वर्ष 2018-19 तक भारत में कुल 24,010 मदरसे थे, जिनमें से 19,132 को मान्यता प्राप्त थी, जबकि 4,878 गैर-मान्यता प्राप्त थे।
    • मान्यता प्राप्त मदरसे राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड से संबद्ध होते हैं, जबकि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे दारुल उलूम नदवतुल उलमा (लखनऊ) और दारुल उलूम देवबंद जैसे प्रमुख मदरसों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन करते हैं।
  • देश में सबसे अधिक मदरसे उत्तर प्रदेश में हैं, जहाँ 11,621 मान्यता प्राप्त और 2,907 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, जो भारत के कुल मदरसों का 60% है।
    • राजस्थान में मदरसों की संख्या दूसरे स्थान पर है, जहाँ 2,464 मान्यता प्राप्त हैं और 29 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं।
    • ग़ौरतलब है कि दिल्ली, असम, पंजाब, तमिलनाडु और तेलंगाना सहित कुछ राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में कोई भी मदरसा मान्यता प्राप्त नहीं है।

भारत में मदरसों की श्रेणियाँ:

  • मदरसा दरसे निज़ामी: ये सार्वजनिक धर्मार्थ संस्थानों के रूप में कार्य करते हैं और इन्हें राज्य स्कूल शिक्षा पाठ्यक्रम का पालन करना आवश्यक नहीं है।
  • मदरसा दरसे आलिया: ये राज्य मदरसा शिक्षा बोर्डों से संबद्ध हैं, जैसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड।
    • भारत में 20 से अधिक राज्यों ने अपने स्वयं के मदरसा शिक्षा बोर्ड स्थापित किये हैं, जिनका प्रशासन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
    • इन बोर्डों के अंतर्गत मान्यता प्राप्त मदरसों में शिक्षकों और अधिकारियों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है।

शिक्षा और पाठ्यक्रम:

  • भारत में बड़ी संख्या में मदरसा बोर्डों ने NCERT पाठ्यक्रम को अपनाया है, जिसमें गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेज़ी और समाजशास्त्र जैसे अनिवार्य विषय शामिल हैं।
  • पाठ्यक्रम: मदरसों में शिक्षा मुख्यधारा के स्कूल और उच्च शिक्षा की संरचना को प्रतिबिंबित करती है, जिसमें छात्र मौलवी (कक्षा 10 के समकक्ष), आलिम (कक्षा 12 के समकक्ष), कामिल (स्नातक डिग्री के समकक्ष) तथा फाज़िल (मास्टर डिग्री के समकक्ष) जैसे विभिन्न स्तरों से आगे बढ़ते हैं।
  • शिक्षण का माध्यम: धर्मार्थ मदरसा दरसे निजामी में शिक्षण का माध्यम अरबी, उर्दू और फारसी है, जबकि मदरसा दरसे आलिया में राज्य पाठ्यपुस्तक निगमों द्वारा प्रकाशित या राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा निर्धारित पाठ्यपुस्तकों का उपयोग किया जाता है।
  • मुख्य विषयों के अलावा छात्र वैकल्पिक पेपर चुन सकते हैं, जिसमें संस्कृत या दीनियत (धार्मिक अध्ययन, जिसमें कुरान और अन्य इस्लामी शिक्षाएँ शामिल हैं) में से कोई एक चुन सकते हैं। संस्कृत पेपर में हिंदू धार्मिक ग्रंथ एवं शिक्षाएँ शामिल हैं।

वित्तपोषण:

  • मदरसों के लिये वित्त पोषण का प्राथमिक स्रोत संबंधित राज्य सरकारों से आता है तथा मदरसों/अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPEMM) के तहत केंद्र सरकार से पूरक सहायता भी मिलती है।
    • SPEMM देश भर के मदरसों और अल्पसंख्यक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे उनके शैक्षिक विकास तथा समर्थन में सुविधा होती है।
    • इसकी दो उप-योजनाएँ हैं:
      • मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPQEM): यह शैक्षिक मानकों में सुधार पर केंद्रित है।
      • अल्पसंख्यक संस्थानों का बुनियादी ढाँचा विकास (IDMI): यह बुनियादी ढाँचे में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • अप्रैल 2021 में अधिक सुव्यवस्थित प्रशासन के लिये SPEMM को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से शिक्षा मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था।

शिक्षा से संबंधित पहल क्या हैं?

  • सर्व शिक्षा अभियान (SSA)
  • राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान
  • राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA)
  • राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संवर्धित शिक्षा कार्यक्रम
  • प्रज्ञाता
  • मध्याह्न भोजन योजना
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
  • पीएम श्री स्कूल

भारतीय शिक्षा प्रणाली में मदरसों की क्या भूमिका है?

  • सांस्कृतिक संरक्षण: ऐतिहासिक रूप से मदरसों ने भारत में मुस्लिम समुदायों के बीच इस्लामी संस्कृति, विश्वासों और मूल्यों को संरक्षित करने तथा प्रसारित करने का काम किया है, जिससे पहचान एवं सामुदायिक भावना को बढ़ावा मिला है।
  • शिक्षा और साक्षरता: मदरसे मुस्लिम बच्चों के लिये एक शैक्षिक मंच प्रदान करते हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ औपचारिक स्कूली शिक्षा तक पहुँच सीमित है।
    • हालाँकि शिक्षा की गुणवत्ता और मुस्लिम समुदायों में तुलनात्मक रूप से कम साक्षरता दर के बारे में चिंताएँ हैं, जिसके कारण कई छात्र माध्यमिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पाते हैं।
  • विचारधारा पर प्रभाव: कुछ मदरसों की आलोचना चरमपंथी विचारधाराओं और राष्ट्र-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने के लिये की जाती है, जो देश के भीतर सामाजिक विभाजन तथा सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने में संभावित रूप से योगदान करते हैं, जबकि मदरसे सकारात्मक मूल्यों को बढ़ावा दे सकते हैं
  • कानूनी और वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: मदरसों का अस्तित्व धर्मनिरपेक्षता और शिक्षा वित्तपोषण में समानता के बारे में सवाल उठाता है।
    • आलोचकों का तर्क है कि सार्वजनिक धन का उपयोग धार्मिक शिक्षा के समर्थन के लिये नहीं किया जाना चाहिये ताकि एकरूपता और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित हो सके।
  • एकीकरण की चुनौतियाँ: मदरसों के कई स्नातकों को व्यावसायिक कौशल और आधुनिक शिक्षा की कमी के कारण व्यापक कार्यबल में एकीकृत होने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शैक्षिक दृष्टिकोण अक्सर मुख्यधारा के समाज से अलगाव की ओर ले जाता है, जिससे ऊपर की ओर गतिशीलता और सामाजिक सामंजस्य के अवसरों में बाधा उत्पन्न होती है।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण: मदरसों में व्यावसायिक और कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करना ताकि छात्रों को व्यावहारिक कौशल से युक्त किया जा सके, जिससे वे नौकरी के बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम हो सकें।
  • गुणवत्ता मानक और मान्यता: आधुनिक शैक्षिक प्रथाओं के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये मान्यता प्रणाली सहित मदरसों के लिये नियामक ढाँचे और गुणवत्ता मानकों की स्थापना करना।
  • न्यायसंगत वित्तपोषण: सभी शैक्षणिक संस्थानों को सहायता प्रदान करने वाली निष्पक्ष वित्तपोषण नीतियों को लागू करना तथा यह सुनिश्चित करना कि सार्वजनिक निधियों से धार्मिक विचारधाराओं को बढ़ावा दिये बिना शैक्षणिक गुणवत्ता और बुनियादी ढाँचे में वृद्धि हो।
  • सामुदायिक सहभागिता: समग्र शिक्षा और साक्षरता के महत्त्व पर ज़ोर देने के लिये माता-पिता, सामुदायिक नेताओं तथा गैर सरकारी संगठनों के साथ जागरूकता एवं सहयोग को बढ़ावा देना, परिवारों को अपने बच्चों के लिये औपचारिक शिक्षा को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करना।

 

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