जनगणना को लेकर स्टालिन, चंद्रबाबू, रेवंत तनाव में आये

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्र सरकार ने जनगणना कराने का फैसला कर लिया है। ये 2025 में शुरू होकर 2026 तक चलेगी। अब सरकार इसमें जातिगत जनगणना कराएगी या नहीं ये कंफर्म नहीं है। विपक्ष ने इसे लेकर सरकार से सवाल भी पूछे हैं। जनगणना वास्तव में कैसे की जाती है, इसका परिसीमन, महिला संसद कोटा से संबंध है। जाति जनगणना लोगों की जरूरत है या फिर इसकी मांग सिर्फ और सिर्फ एक सियासी या चुनावी जिद है।

1881 से 1931 तक अंग्रेजों ने छह बार जाति जनगणना करवाई। 1941 में भी जाति की गिनती हुई लेकिन डेटा प्रकाशित नहीं किया गया। 1951 में स्वतंत्र भारत की पहली सरकार ने एससी-एसटी को छोड़कर बाकी जाति की गिनती रोक दी। 2011 में केंद्र ने जाति जनगणना को मंजूरी दी, लेकिन डेटा जारी नहीं किया। 2011 की जनगणना में 46 लाख जातियों और उपजातियों का पता चला था। तब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 की सरकार थी।

दक्षिण के राज्य टेंशन में क्यों आए?

जनगणना में संप्रदाय के बारे में भी पूछा जाएगा। मान लीजिए कर्नाटर राज्य जहां वोक्कालिंगा और लिंगायत समुदाय है उसके बारे में पूछा जाएगा। दक्षिण की विभिन्न राज्य सरकारों ने सार्वजनिक रूप से इसजनगणना के दौरान लोगों से पूछे जाने वाले सवाल तैयार कर लिए गए हैं. इनमें क्या परिवार का मुखिया या अन्य सदस्य अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति से संबंधित हैं. परिवार के सदस्यों की कुल संख्या, परिवार की मुखिया महिला है या नहीं? परिवार के पास कितने कमरे हैं?

परिवार में कितने विवाहित जोडे़ हैं? क्या परिवार के पास टेलीफोन, इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल, दोपहिया, चारपहिया वाहन है या नहीं आदि सवाल शामिल किए गए हैं चिंता को उठाया है। इसमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और एनडीए की सहयोगी टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू का भी नाम शामिल है। उन्होंने राज्य के लोगों से आबादी के प्रभाव का जिक्र है। इसके साथ ही अधिक बच्चे पेदा करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इस मामले में सरकार के सूत्रों ने कहा कि वे इस चिंता से अवगत हैं और कोई भी उपाय जो दक्षिणी राज्यों को नुकसान पहुंचा सकता है, उससे बचा जाएगा।

2025 की जनगणना से नया सेंसस चक्र शुरू हो जाएगा। नई साइकिल 2025 के बाद 2035 और इसके बाद 2045 की होगी।  1881 से हर दस साल बाद होने वाली जनगणना 2021 में होनी थी, जो 3 साल से अधिक देरी से शुरू होने की संभावना है।

महिला आरक्षण का मुद्दा भी है महत्वपूर्ण

84वें संविधान संशोधन की भाषा कहती है कि परिसीमन केवल वर्ष 2026 के बाद ली गई पहली जनगणना के आंकड़ों पर ही हो सकता है। इससे पता चलता है कि जनगणना का जनसंख्या गणना भाग 2026 के बाद किया जाना है। इसलिए, यदि जनगणना अभ्यास अगले साल शुरू होना है और सरकार 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए परिसीमन प्रक्रिया शुरू करना चाहती है। मौजूदा प्रावधान में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है। 16वें वित्त आयोग की सिफारिशें यहां एक महत्वपूर्ण तत्व हो सकती हैं।

वित्त आयोग, हर पांच साल में गठित एक निकाय, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के हस्तांतरण की सिफारिश करता है। 16वें वित्त आयोग को अगले साल के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। इसके अलावा, संसद ने पिछले साल 128वें संविधान संशोधन को मंजूरी दी, जिसमें महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं। हालाँकि, यह परिसीमन अभ्यास के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की सीटों में संशोधन के बाद ही प्रभावी होगा।

 

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