छठ पूजा और हमारी दहा नदी।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नदियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। यह भारत के समाज की रूपक है। इसके किनारे कितनी सभ्यताओं का बसावट हुआ एवं वह उजड़ भी गई। हमारे पर्व-तीज-त्यौहार इनके तटों पर सदियों से होते आ रहे है। हमारे अस्तित्व के लिए यह सहायक रूप से सदैव उपस्थिति रहती है। छठ पूजा हमारे समाज में सूर्य के उपासना के साथ-साथ प्रकृति की भी पूजा है। छठ पूजा के अवसर पर हमारी दहा नदी के तट पर लाखों श्रद्धालु अपने इष्ट देवता की आराधना करते हुए उत्सव का भरपूर आनंद लेते है। गोपालगंज सीवान एवं छपरा जिले में लगभग सौ किलोमीटर लंबे मार्ग में प्रवाहित होने वाली यह नदी हमारे पर्व-त्यौहार की साक्षी बन गई है। दहा नदी के किनारे की घाटों की सफाई करते हुए पूजा हेतु उपयुक्त बनाया गया है। जनमानस को सचेत करते हुए यह छठ पूजा हमें सदैव स्वच्छ होने का संदेश देती है।

नदी की प्रासंगिकता क्या हो सकती है,हम इन त्योहारों में समझ गए है। बिहार में छठ पूजा, त्यौहार एवं पर्व तक सीमित नहीं है, यह जनमानस के उत्कृष्ट आनंद का प्रतिबिंब है। प्रकृति पूजा के साथ-साथ अपने पांच तत्वों में से एक जल की प्रासंगिकता को चरितार्थ करता यह त्यौहार जनमानस के चेतना का अभिव्यक्ति भी है। इस त्यौहार से इतनी मान्यताएं एवं लोक कथाएं जुड़ी हुई हैं कि यह पर्व श्रद्धा एवं विश्वास का प्रतीक बन गया है। विशाल, विशिष्ट एवं विहंगम घाट पर जनमानस का सांध्य एवं प्रातः के समय उमड़ा जन सैलाब ऊर्जा के प्रतीक सूर्य को नदी के माध्यम से नमन करने अपने को धन्य हो जाता है।


वर्ष भर कल-कल बहती कभी कम कभी अधिक प्रवाह से बढ़ती हमारी दहा नदी जीवन में सदैव आगे बढ़ने का संदेश देती है। कूड़ा फेंकने, मल-मूत्र त्यागने से नदी दूषित नहीं होती वरन हम स्वंय को दूषित करते है। क्योंकि मां की गोद में बच्चों के द्वारा मल-मूत्र त्यागने से मां मलिन नहीं होती, उसी प्रकार हमारी नदी भी कभी दूषित नहीं होती,वरन वह कुछ समय के लिए वह प्रदूषित आवश्यक हो जाती है, परंतु पुनः अपने गंतव्य की और अग्रसर होती रहती है। हमारी दहा नदी जिसे वाण गंगा भी कहा जाता है, इसका उद्गम स्थल गोपालगंज जिले में सासामुसा प्रखंड के घोराघाट स्थल से है।

यह अपनी यात्रा डोमडीह, धनगाही, डुमरिया, रसौती, खानपुर, इटवा पुल जीन बाबा, बदहजमी, जिगना, नारापति, मुल्लूपुर, बासोपाॅली, हकाम,टरवाॅ, सीवान नगर, कंधवारा, पकवलिया, रेनुआ, गोसोपाली, टेढ़ी घाट, फाजिलपुर, सिंगही, दरवेशपुर, मोहम्मदपुर, आन्दर, पियाउर, उसरी, हसनपुरा, चैनपुर, रामगढ़, नोनिया पट्टी, बघौना गांव के क्षेत्र से होते हुए छपरा जिले में मांझी प्रखंड के अंतर्गत ताजपुर के निकट घाघरा सरजू नदी में मिल जाती है।
दहा नदी यह संदेश देती है कि हमारे जीवन का अभिप्राय आगे बढ़ना है।

“दहा नदी तू केवल जल का बहता सोत नहीं,
तुम हम सब की आनंद की अनुभूति हो,
चीर निरंतर कल-कल में तू सदैव प्रवाहमय रहे,
कामना करते हम सभी परम पिता से
यही हम सब की अभिलाषा है।”

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