दिव्य, अद्भुत, अलौकिक स्वाद वाला खरना का प्रसाद
छठ पूजा के दूसरे दिन छठी मैया के शुभागमन पर बनने वाला स्वाद से भरपूर प्रसाद
✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सनातनी परंपरा में भगवान को भोग लगाया जाता है। वह भोग जब प्रसाद के रूप में मिलता है तो दिव्य, अद्भुत, अलौकिक स्वाद की अनुभूति कराता है। अब संदर्भ आस्था का आए या श्रद्धा का या हो कारण ईश्वरीय शक्ति का लेकिन प्रसाद का स्वाद अद्भुत अनुभूति तो कराता ही है।
बचपन से ही सालभर इंतजार खरना के प्रसाद का ही रहता आया है। छठी मैया के शुभागमन पर बनने वाले इस प्रसाद के दिव्य स्वाद की अनुभूति तो वहीं कर सकता है जो उसे प्राप्त कर पाता है। क्या अद्भुत और अलौकिक स्वाद होता है खरना के प्रसाद का? हालांकि बचपन में जब यह प्रसाद मां चाची आदि बनातीं थीं, तब हम अपने परिवार के बच्चों के साथ धमाचौकड़ी मचाते थे तब प्रसाद ग्रहण करते थे। अब हमारे बच्चे धमाचौकड़ी मचाते हैं और हम प्रसाद बनने का इंतजार करते हैं । निश्चित तौर पर स्वर्गीय शारदा सिन्हा के मधुर छठ गीतों के साथ।
छठ पूजा श्रद्धा का त्योहार और आस्था का आयोजन होता ही है। साथ ही, स्वाद से भी गहरा नाता इस पूजा का रहता है। छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाए से होती है और पहले दिन लौकी की सब्जी विशेष तौर पर बनाई जाती है। छठ में विशेष तौर पर बनने वाले ठेकुए और खजूर की तो बात ही अलग होती है। छठ पूजा के दूसरे दिन खरना का प्रसाद बनता है।
खरना का सामान्य आशय पवित्रता और शुद्धता के वरण से होता है। पहले दिन छठव्रती दिन भर निर्जल उपवास रहकर शाम को खरना का विशेष प्रसाद बनाते हैं। इसमें घी लगी रोटी, साठी के चावल में गुड़ मिलाकर बनाया गया खीर या रसियाव, सिंघाड़ा, केला और अन्य फल शामिल होता है। इस दिन माना जाता है कि छठी मैया का शुभागमन होता है। उनके स्वागत में यह प्रसाद तैयार होता है। इसके बाद छत्तीस घंटे का निर्जल उपवास छठ व्रती शुरू करते हैं।
खरना से आत्मिक शुद्धि के भी प्रयास होते हैं। छठ व्रती नकारात्मक मानवीय अवधारणाओं यानी ईर्ष्या, द्वेष, निंदा आदि से दूर रहने का हरसंभव प्रयास करते हैं और मानसिक शुद्धता की स्थिति को प्राप्त कर छठी मैया का निरंतर स्मरण करते रहते हैं।
फिर अगले दिन संध्या में अस्ताचल और उसके अगले दिन उदीयमान आदित्यदेव को श्रद्धापूर्ण अर्घ्य। फिलहाल आज खरना संपन्न, छठी मैया हमारे घर में पधार चुकी हैं।
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