मुख्य न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने के बाद कौन से पद धारण कर सकते है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नहीं कर सकते वकालत की प्रैक्टिस
भारत के संविधान के अनुसार मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्याय को बनाए रखने और संविधान की रक्षा करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनके कार्यकाल के दौरान निष्पक्षता और सुचिता बनी रहे, इसके लिए संविधान में प्रावधान है कि रिटायरमेंट के बाद चीफ जस्टिस वकालत की प्रैक्टिस नहीं कर सकते।
सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर प्रतिबंध लगाने के पीछे का कारण नैतिक आधार है। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता को बनाए रखने और उस पर जनता के विश्वास को कायम रखने का प्रयास किया जाता है। सेवा के बाद प्रैक्टिस पर प्रतिबंध के पीछे विचार है कि ऐसे किसी भी संदेह को खत्म कर दिया जाए कि न्यायाधीश ने अपने कार्यकाल के दौरान करियर को फायदा पहुंचाने वाला कोई फैसला किया होगा। साथ ही यह भी माना जाता है कि सेवा के बाद अगर जज प्रैक्टिस करते हैं तो यह उनके पद और गरिमा के अनुरुप नहीं होगा।
क्या होते हैं विकल्प
जजों के रिटायर होने के बाद वकालत की प्रैक्टिस पर प्रतिबंध होता है, लेकिन ऐसे अनगिनत क्षेत्र होते हैं, जहां सेवानिवृत्त जज अपनी सेवा दे सकते हैं और अपने अनुभव को साझा कर सकते हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
- मध्यस्थता: सेवानिवृत्त जज अक्सर ऐसे मामलों में मध्यस्थता कराते हैं, जहां जटिल कानूनी मामलों को सुलझाने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत होती है। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को मध्यस्थ के रूप में सेवा करने की अनुमति देता है।
- आयोगों के प्रमुख: सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राष्ट्रीय हरित अधिकरण जैसे आयोगों के प्रमुख बन सकते हैं और अक्सर बनाए भी जाते हैं। इसके माध्यम से वह अपने अनुभवों को राष्ट्रीय महत्व और प्रशासनिक न्यायाधिकरण के मुद्दों पर लागू करते हैं।
- शैक्षणिक योगदान: कई सेवानिवृत्त न्यायाधीश लॉ कॉलेजों में अध्यापन कार्य करते हैं। या फिर व्याख्यान या प्रकाशनों के लेखन के माध्यम से अपना ज्ञान साझा करते हैं।
- सार्वजनिक सेवा: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को राज्यपाल या सरकारी समितियों के सदस्य जैसे संवैधानिक पदों पर नियुक्त किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ का अखिरी वर्किंग डे था। वह 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। अपने दो वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने अनुच्छेद 370 हटाने के तरीके को वैध करार देने से लेकर इलेक्टोरल बॉन्ड को रद करने तक कई ऐतिहासिक फैसले लिए।
अनुच्छेद 370 को हटाना वैध
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाए के केंद्र सरकार के फैसले को वैध करार दिया था। इसे 2019 में भारत की संसद द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को संवैधानिक तौर पर स्वीकृति के रूप में देखा गया था।
रद किया इलेक्टोरल बॉन्ड
सीजेआई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए रद कर दिया था। पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को चुनावी बॉन्ड जारी करने पर तुरंत रोक लगाने के साथ चुनाव आयोग (ईसीआई) को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर राजनीतिक बॉन्ड का विवरण प्रकाशित करने का भी आदेश दिया था।
जेलों में भेदभाव पर रोक
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने भारत में जेलों के भीतर जाति-आधारित भेदभाव को असंवैधानिक करार देते हुए जेल मैनुअल को तुरंत संशोधित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने माना था कि जाति-आधारित काम का आवंटन संविधान का उल्लंघन है।
बाल विवाह के मामले पर दिशा-निर्देश
देश में बाल विवाह में वृद्धि का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कई निर्देश जारी किए थे।
नागरिकता कानून की धारा 6ए वैध करार दी गई
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने 4-1 के बहुमत के फैसले में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। धारा 6ए, बांग्लादेश से असम आए प्रवासियों की नागरिकता से जुड़ी है।
दोबारा नीट-यूजी परीक्षा की अनुमति से इन्कार
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने ने नीट-यूजी 2024 परीक्षा को रद करने या दोबारा कराने से इन्कार कर दिया था। सीजेआई ने कहा था कि ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जिसके आधार पर ये निष्कर्ष निकाला जा सके कि परीक्षा के रिजल्ट में गड़बड़ी हुई है, या व्यवस्था फेल हो गई है।
अडानी-हिंडनबर्ग विवाद
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अडानी-हिंडनबर्ग विवाद में जांच के लिए कोई एसआईटी या विशेषज्ञों का समूह बनाने से इन्कार कर दिया था। पीठ ने कहा था कि किसी तीसरे पक्ष के संगठनों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता है।
मणिपुर यौन उत्पीड़न मामला
मणिपुर महिला यौन हिंसा से जुड़े वीडियो के प्रसारित होने के बाद सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए तीन महिला न्यायाधीशों वाली एक समिति का गठन किया था, जिसे महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित जानकारी एकत्र करने का काम सौंपा गया था।
सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामले
सीजेआई चंद्रचूड़ ने देश के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को निर्देश दिया था कि वे सांसदों और विधायकों के लिए खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के तेज निस्तारण की निगरानी के लिए स्वत: संज्ञान मामले दर्ज करें।
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